Thursday, 10 August 2017 10:15 AM
VIVEK KUMAR
मेयर व 110 पार्षदों का कार्यकाल 10 अगस्त की शाम को खत्म हो जाएगा। सदन की पहली मीटिंग से कार्यकाल को माना गया था और लखनऊ नगर निगम में सदन की पहली मीटिंग 11 अगस्त 2012 को हुई थी। इसके बाद नगर निगम में प्रशासक कार्यकाल लग जाएगा और कार्यकारिणी व सदन के निर्णय लेने का अधिकार प्रशासक को हो जाएगा।
जुलाई 2012 में नगर निगम सदन का गठन किया गया था। अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान नगर निगम सदन ने ऐसे कोई निर्णय नहीं लिए, जिसका प्रभाव शहर में दिखा हो। धरातल पर कूड़ा प्रबंधन योजना नहीं आ पाई तो शहर अतिक्रमण से मुक्त नहीं हो सका। शहर सीवर,पेयजल और सफाई समस्या से जूझता रहा। सफाई में देश में 269 नंबर पा सके।
आवारा पशुओं के लिए कान्हा उपवन के अलावा कोई अतिरिक्त ठिकाना नहीं बन सका। नगर निगम की अनुपयोगी संपत्तियों का उपयोग करने की योजना भी सदन में रह गई। इसके लिए बनाई गई कमेटी कोई निर्णय देने के बजाय बैठक ही करती रही। इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने से लेकर महिला कॉलेज बनाने की योजना कारगर साबित नहीं हो सकी।
यहां फेल रहा सदन: - जेएनयूआरएम के अंतर्गत ट्रांसगोमती में पड़ी सीवर लाइन चालू कराने में पीछे रहे। आज भी सीवर लाइन चालू नहीं हो पाई है।
- शहर के कई इलाकों में पेयजल संकट दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। पार्षद निधि से लगे सबमर्सिबल पंप समय से पहले ही खराब हो गए।
- अतिक्रमण हटाने और पटरी दुकानदारों के लिए फेरी नीति लागू कराने की दिशा में कोई निर्णय नहीं लिए गए।
- अनियोजित कालोनी रोकने के बजाय पार्षदों ने ऐसी कॉलोनियों में अपनी विकास निधि लगाकर उसे बढ़ावा देने का काम किया।
- नई कैटल कॉलोनी बनाने की दिशा में भी सदन ने कोई योजना नहीं बनाई।