Monday, 14 August 2017 10:20 AM
VIVEK KUMAR
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स पर शुरुआत से ही चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसर मेहरबान रहे।
अगर समय रहते अफसरों ने इस कंपनी पर कार्रवाई की होती तो 62 लोगों की जान नहीं जाती। इस कंपनी ने वर्ष 2013 में ही लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट के निर्माण में टेंडर की शर्तों का उल्लंघन किया था।
निर्माण कार्य में देरी के कारण इस कंपनी को तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. सतीश कुमार ने कड़ी चेतावनी भी दी थी, लेकिन सरकार में बैठे अफसरों ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
लखनऊ की कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड को वर्ष 2013 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के पीडियाट्रिक विभाग में 100 बेड के मस्तिष्क ज्वर वार्ड में ऑक्सीजन गैस पाइपलाइन की स्थापना का ठेका दिया गया था।
टेंडर की शर्तों के अनुसार इस कंपनी को दो महीने में काम पूरा करना था, लेकिन कंपनी ने तय समय में काम पूरा नहीं किया। इस पर मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. सतीश कुमार ने आपत्ति जताई।
तब इस कंपनी ने नवंबर 2013 में काम पूरा करने का आश्वासन दिया। इसके बावजूद कंपनी नवंबर 2013 में काम पूरा नहीं कर सकी। जब दिसंबर 2013 में भी काम पूरा नहीं हुआ तो प्रधानाचार्य ने कंपनी को कड़ी चेतावनी दी।
हालांकि 24 दिसंबर 2013 को लिखे पत्र में प्रधानाचार्य ने 15 दिन में काम करने को कहा। साथ ही, ऐसा न करने पर कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने की बात भी लिखी।
प्रधानाचार्य ने इसकी प्रतिलिपि महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा के साथ ही डीएम व सीएमओ को भेजी थी।
उधर, महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा ने भी अपनी समीक्षा में यह पाया था कि पुष्पा सेल्स समय पर लिक्विड गैस प्लांट की स्थापना नहीं कर सकी। इसके लिए कंपनी को लापरवाह माना था।
मगर, कंपनी के खिलाफ अफसरों ने कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि नियमानुसार अगर कोई कंपनी टेंडर की शर्तों का उल्लंघन करती है तो उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है, लेकिन सरकार के साथ नजदीकियों के कारण उस समय के अफसरों ने इस कंपनी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया।