Saturday, 24 October 2020 00:00
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लखनऊ। पुलिस महानिदेशक एवं एडीजी अभिसूचना के आदेश को दरकिनार करते हुए आज भी एलआईयू कर्मी पासपोर्ट जांच के नाम पर आवेदक के घर जाते हैं, एवं जॉच के नाम पर आवेदक से सुविधा शुल्क लेकर रिपोर्ट लगाने का कार्य करते हैं, जबकि इस संदर्भ में पुलिस महानिदेशक का स्पष्ट आदेश है कि कोई भी एलआईयू कर्मी आवेदक की घर जांच करने के लिए नहीं जाएंगे, आवेदक के द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों के आधार पर ही रिपोर्ट लगाएंगे, लेकिन वसूली के लत के मारे बेशर्म होकर एलआईयू कर्मी जांच के नाम पर आवेदक के घर जाते हैं और धन उगाही करते हैं।
आपको बताते चलें कि यह वसूली का खेल सम्पूर्ण प्रदेश में चल रहा है, उदाहरण के तौर पर बताना चाहूंगा कि आमतौर पर प्रत्येक जिले में 1000 से 3000 आवेदन प्रतिमाह आते हैं, यदि इस आंकड़ों को गंभीरता पूर्वक अपने एक जिले में 5 से 10 लाख की वसूली प्रतिमाह नजर आती है, वह भी सिर्फ पासपोर्ट सत्यापन के नाम पर, आखिर के पैसा कहां जाता है एक जांच का विषय है।
वसूली का यह खुलासा एक्टिविस्ट डॉ नूतन ठाकुर के पुलिस महानिदेशक के नाम पर लिखे एक पत्र से हुआ, जिसमें डॉ नूतन ठाकुर ने पासपोर्ट जाँच के नाम पर एलआईयू विभाग द्वारा सम्पूर्ण प्रदेश में की जा रही अवैध वसूली पर अंकुश लगाये जाने की मांग की है। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक एच.सी. अवस्थी को भेजी शिकायत पत्र में डॉ नूतन ठाकुर ने अनुरोध किया है कि तत्कालीन उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने 04 नवम्बर 2011 को जारी एक आदेश में एलआईयू कर्मियों को पासपोर्ट जाँच के लिए आवेदक के घर नहीं जाने तथा कार्यालय के अभिलेखों के आधार पर ही अपनी आख्या देने के निर्देश दिए थे, जिसका अनुपालन करते हुए एडीजी अभिसूचना ने अभिसूचना विभाग को पालन करने हेतु बार-बार निर्देश भी दिए।
डॉ नूतन ठाकुर ने कहा कि इसके बाद भी उत्तर प्रदेश में सिर्फ देवरिया जिला को छोड़ कर सम्पूर्ण प्रदेश में एलआईयू कर्मी सत्यापन के नाम पर आवेदक के घर जा रहे हैं, जहाँ वह रुपया 1000-2000 की उगाही करते हैं, इस उगाही में रु० 300-500 एलआईयू के इंचार्ज को मिलता है, प्रत्येक जिले में औसतन पासपोर्ट के 1000-3000 आवेदन प्रति माह आते हैं. इस तरह प्रत्येक जिले में औसत 5-10 लाख रुपये प्रति माह की वसूली मात्र पासपोर्ट सत्यापन के नाम पर हो रही है. उन्होंने कहा कि यह वसूली केवल जिले के एसपी तथा उनके ऊपर के अफसरों के आँखें मूंदे रहने के कारण हो रही है। अतः उन्होंने पुलिस महानिदेशक से इस आदेश का वास्तविक अनुपालन कराये जाने की मांग की है।
गड़बड़ी का डर दिखा वसूल लेते रुपए
पुराने पासपोर्ट के रिन्युअल, नए पासपोर्ट के आवेदन पर पुलिस और एलआईयू की रिपोर्ट महत्वपूर्ण होती है। दोनों विभागों में आवेदक की जांच का प्राविधान भी बना हुआ है। आवेदक को सूचना देने के बहाने थाने बुलाया जाता है। इसके बाद उनसे सौदेबाजी शुरू कर दी जाती है। आवेदक की स्थिति, पासपोर्ट की जरूरत और उसके जुगाड़ के आधार पर रेट शुरू होता है। इस दौरान तरह-तरह का डर दिखाया जाता है। ताकि आवेदक आसानी से जेब ढीली कर सकें। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि जांच में पुलिस की ओर से न तो आवेदक की फोटो प्रमाणित की जाती है। न ही उसके किसी सिग्नेचर की जरूरत होती है। थानों पर मौजूद रजिस्टर को खंगालकर आवेदक के संबंध में रिपोर्ट लगाने की जिम्मेदारी पुलिस की है।
पुलिस इस बात की आख्या देती है कि आवेदक के खिलाफ पहले से कोई मुकदमा है या नहीं। उसके खिलाफ कभी कोई निरोधात्मक कार्रवाई की गई थी या नहीं। इसी बहाने पर पुलिस कर्मचारी पासपोर्ट आवेदकों को चूना लगाते हैं। पार्षद, प्रधान से फोटो लगे सर्टिफिकेट सहित आवेदक को थाने बुलाया जाता है। अगर आवेदक घर पर मौजूद नहीं है तो उसके रिश्तेदारों से डबल रकम मांगी जाती है। इसकी शिकायत सामने आने पर कई बार कार्रवाई हो चुकी है।