Thursday, 14 January 2021 00:00
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चुनाव के दौरान लोगों को इस बात की उम्मीद थी कि नीतीश कुमार के रहते बिहार में कानून व्यवस्था पर मुस्तैदी रहती है। लेकिन इस बार ऐसा देखने को मिल नहीं रहा है। बिहार में लगातार अपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं। विपक्ष का निशाना सीधा-सीधा नीतीश कुमार पर है।
बिहार में पिछले एक-दो सालों से नीतीश कुमार के लिए कानून व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती बनती जा रही है। हालांकि जबसे नीतीश कुमार ने सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है तब से अपराधियों पर नियंत्रण को लेकर उनसे लगातार सवाल पूछे जा रहे हैं। चुनाव के दौरान लोगों को इस बात की उम्मीद थी कि नीतीश कुमार के रहते बिहार में कानून व्यवस्था पर मुस्तैदी रहती है। लेकिन इस बार ऐसा देखने को मिल नहीं रहा है। बिहार में लगातार अपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं। विपक्ष का निशाना सीधा-सीधा नीतीश कुमार पर है। नीतीश की सहयोगी भाजपा भी लगातार उन्हीं से सवाल पूछ रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार इतने कमजोर कैसे हो गए हैं? बिहार में अगर नीतीश कुमार 15 सालों से ज्यादा समय से सत्ता में है तो इसका कारण भी कानून व्यवस्था ही है क्योंकि 2005 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने सबसे पहला काम बिहार में अपराधिक घटनाओं पर नियंत्रण लगाने का किया था। हालांकि पिछले चार-पांच सालों में ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा है।
सवाल यही है कि बिहार में नीतीश कुमार का राज है फिर भी अपराधी इतने बेखौफ क्यों हैं? बाकी जिलों को तो छोड़िए अब राजधानी पटना भी सुरक्षित नहीं है जहां दिनदहाड़े किसी की भी हत्या कर दी जाती है। ताजा मामला इंडिगो एयरलाइंस के स्टेशन मैनेजर रूपेश कुमार की हत्या का ही ले लीजिए। पिछले दिनों पटना के वीवीआईपी इलाके में उनकी हत्या उस समय कर दी जाती है जब वह अपने ऑफिस से घर आ रहे थे। इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार में अपराधी कितने बेखौफ हैं। भले ही नीतीश कुमार विधि व्यवस्था को लेकर 5 से 7 बैठकें कर चुके हैं लेकिन नतीजे जमीन पर दिखाई नहीं दे रहे हैं। पिछले दिनों हमने यह भी देखा था कि कैसे बिहार में बड़े पैमाने पर पुलिस अधिकारियों के तबादले हुए थे लेकिन उसका भी असर कुछ जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा है। सवाल वही का वही रह जाता है कि आखिर नीतीश अपराधिक घटनाओं को रोकने में इतने नाकाम क्यों साबित हो रहे हैं?
रूपेश कुमार की हत्या के बाद से भाजपा भी उनसे लगातार सवाल पूछ रही है। भाजपा के कई नेताओं ने तो इस मामले को नीतीश कुमार से सीबीआई जांच कराने की मांग कर दी हैं। हालांकि इस मामले में पुलिस के कह रही है कि वह अपराधियों के करीब है। लेकिन आजकल बिहार में एक कहावत अब खूब प्रचलित हो रहा है। कहां जा रहा है कि आपकी जान बिहार में इसलिए नहीं बची है कि पुलिस मुस्तैद है, बल्कि इसलिए बची है कि आप अपराधियों के निशाने पर नहीं है। इस बार तो भाजपा ने लगातार गृह मंत्रालय छोड़ने के लिए नीतीश कुमार पर दबाव बनाया था। हालांकि नीतीश कुमार इस पर डटे रहे। लेकिन बिहार के गृह मंत्रालय में उन्होंने कई बदलाव जरूर किए पर उसका असर नहीं दिख रहा। विपक्ष निशाना साध रहा तो भाजपा कानून व्यवस्था को लेकर दबाव बना रही। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या बिहार पुलिस का काम सिर्फ शराब वाली वाहनों को पकड़ना और फोटो खींचाना ही रह गया है? क्या बिहार पुलिस सिर्फ वाहन चेकिंग के लिए है? भले ही पटना के वीवीआईपी इलाके में किसकी हत्या के लिए हम बिहार पुलिस की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं लेकिन कहीं ना कहीं निशाना सीधे-सीधे सरकार के मुखिया नीतीश कुमार पर ही हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि अपराधियों में शराबबंदी के बाद से पुलिस के रवैए को लेकर खौफ नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। कई इलाकों में तो पुलिस और शराब कारोबारियों के जुगलबंदी की भी खबर आती है। लोग यह भी आरोप लगा रहे हैं कि बिहार में अपराधी पुलिस संरक्षण में है। यह भी कहा जा रहा है कि इस बार जब से नीतीश कुमार सत्ता में आए हैं और ऊपर से नीचे तक अधिकारियों को पदस्थापित भी किया है लेकिन कानून व्यवस्था को लेकर उनके अंदर इच्छाशक्ति ही नहीं है। नीतीश कुमार ने अपने पहले ही बैठक में पेट्रोलिंग का आदेश दिया था लेकिन वह होता नजर नहीं आ रहा। अगर होता तो पटना के वीआईपी इलाके में किसी की हत्या नहीं कर दी जाती। नीतीश पुधले 15 वर्षों से ज्यादा समय से बिहार के सत्ता में है लेकिन इस बार उनके लिए मुश्किलें कुछ ज्यादा है। कानून व्यवस्था को लेकर वह अपने और विपक्ष दोनों के निशाने पर हैं।