Saturday, 16 January 2021 00:00
AWAZ PLUS MEDIA HOUSE
उनका कहना है की सकुबाई सिर्फ एक घर में काम करने वाली महिला की कहानी ही नहीं है बल्कि हर उस महिला की कहानी है जो जीवन के कठिन दौर से गुज़र कर भी मुस्कुराना नहीं छोड़ती।
वरिष्ठ अभिनेत्री सरिता जोशी कहती हैं, सकुबाई हर उस महिला की कहानी है जो कभी हिम्मत नहीं हारती। इस जनवरी ज़ी थिएटर पेश कर रहा है नादिरा ज़हीर बब्बर का उत्कृष्ट नाटक 'सकुबाई' एयरटेल स्पॉटलाइट पर वरिष्ठ अभिनेत्री, संगीत नाटक अकादेमी एवं पदमश्री विजेता सरिता जोशी इस नाटक की एकमात्र पात्र हैं और बड़ी खूबी से घर में काम करने वाली एक सेविका की भूमिका निभाती हैं। पर उनका कहना है की सकुबाई सिर्फ एक घर में काम करने वाली महिला की कहानी ही नहीं है बल्कि हर उस महिला की कहानी है जो जीवन के कठिन दौर से गुज़र कर भी मुस्कुराना नहीं छोड़ती।
वे कहती हैं, "जब मैंने पहली बार ये नाटक पढ़ा तो मुझे हर वह महिला याद आयी जिसने मेरे घर में भोजन पकाया, मेरी बेटियों की देखभाल में मेरी मदद की, मेरे घर की देख भाल की. मुझे उनकी गरिमा, उदारता और पीड़ा याद आयी। मुझे उस सेविका की याद आयी जो मेरे घर सफ़ेद वस्त्र पहन कर काम करने आती थी क्योंकि मेरी ही तरह उसने भी अपने पति को खो दिया था। एक वक़्त था जब मैंने भी रंगीन वस्त्र पहनने छोड़ दिए थे पर फिर अपनी बेटियों की खातिर मैंने सफ़ेद वस्त्रों को त्याग दिया।मैंने उस महिला को कुछ रंगीन साड़ियां भेंट में दी और धीरे धीरे उसने रंगों को अपना लिया. सकुबाई भी ऐसी ही है और जीवन में बहुत कुछ खो कर भी वह मुस्कुराती रहती है और बेहद ज़िंदादिल है।"
जोशी के अनुसार सकुबाई को जीवंत करना उनके लिए एक लम्बी यात्रा जैसा था. वे कहती हैं, "किसी भी पात्र को निभाना पूरी ज़िन्दगी के निचोड़ को धारण करने जैसा होता है। मैंने सकुबाई को इस तरह तराशा जैसे कोई एक मूर्ति बनता है या एक तस्वीर में रंग भरता है। मैंने अपनी सारी यादें सकुबाई की भूमिका में भर दी है। उसकी चाल, उसके हाव भाव और वेश भूषा को मैंने असल ज़िन्दगी से ही चुराया है।"
ज़ी थिएटर के टेलीप्लेज़ के बारे में जोशी का कहना है, "इस महामारी के दौरान, टेलीप्लेज़ बहुत कारगर साबित हुए खासकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए जिनके लिए मनोरंजन के सभी साधन सीमित थे।"