--आयुर्वेद अस्पताल में फार्मासिस्ट के पद पर तैनात थे पिता मो. जावेद
--राजोपट्टी में आवासीय परिसर को औषधीय पौधों से सजाया था उनके दादा नुरुल हसन व पिता मो जावेद ने
--देश विदेश के कई औषधीय पौधे है इनके बागीचे में
अमित सौरभ, सीतामढ़ी। किसी ने ठीक ही कहा है पुत्र सुपुत्र हो तो वह पूर्वजो की विरासत को बढ़ाएंगे ,इसे सच करने में लगे है शहर के राजोपट्टी निवासी तीन भाई। आयुर्वेद में विश्वास व औषधीय पौधों के प्रति लगाव पर्यावरण संरक्षण की चाहत व तीन पीढ़ियों से मिले विरासत को बढ़ाने में लगे है व्यवसायई पुत्र।
शहर से सटे राजोपट्टी निवासी आकिब जावेद अपने दो भाईयो के साथ मिलकर अपने पूर्वजों की निशानी के रूप में लगाई गई औषधीय पौधों के बागीचे को संवारने में लगे है। मूल रूप से व्यवसायी आकिब जावेद व छोटा भाई साकिब जावेद ,एवं गुलाम नबी उर्फ आले बताते है कि उनके पिता मो. जावेद ने औषधीय पौधों की बागवानी के जरिए पर्यावरण की रक्षा का अलख जगाया था। डेढ़ कटठा़ जमीन में उन्होंने तमाम फलों के अलावा कई औषधीय पौधे लगाए थे। वे रुन्नीसैदपुर प्रखंड के बघारी के मूल निवासी थे वे शहर के राजोपट्टी अंसारी रोड में रहते हैं। मो जावेद रघुनाथपुरी में आयुर्वेद अस्पताल में फार्मासिस्ट थे व दादा नुरुल हसन भी औषधीय पौधों की खेती करते थे। तीनो भाईयों ने उनके सानिध्य में ही बागवानी शुरू की। उनका मकसद पर्यावरण संरक्षण के साथ लोगों को जागरूक करना है।
ये पौधे हैं आकर्षण के केंद्र
उनके बागीचे में सफेद तुलसी, स्याह तुलसी, रुद्राक्ष, प्रह्लाद, बड़ी व छोटी इलायची, दालचीनी, तेजपत्ता, आलू बुखारा, व्हाइट जामुन, चेरी, सेब, नाशपाती, मैंगो स्टार, पपीता, आम, केला, अमरूद, हरफरौरी, खीरा का पेड़, मौसमी, ऑल स्पाइस, जायफल, अंजीर, हींग, कागजी बेल, जैतून, बेदाना, कैराना, बालम खीरा, साइकस, चाइनीज बैंबू और भंगरिया जैसे औषधीय पौधे हैं। सेब की एक नस्ल अरब से मंगवाई है। वे अन्य प्रदेशों से पौधे लाकर अपनी बागीचे में लगाते हैं।
बॉटनिकल गार्डन जैसी तस्वीर
उनके आवासीय परिसर में फैली बागवानी बॉटनिकल गार्डन जैसी लगती है। यहां न केवल भारतीय, बल्कि विदेशी औषधीय पौधे भी हैं। उनका क्या महत्व है, किस बीमारी में कौन से पौधे का उपयोग करना है, इसकी जानकारी उन्हें विरासत में मिली है। वे खुद तो दवा के रूप में और लोगो को भी आयुर्वेद अपनाने की सलाह भी दे रहे है
शुगर फ्री केला और सिंदूर का पेड़ देखने आते लोग
इनके बाग में वैसे तो सौ से अधिक औषधीय पेड़-पौधे हैं। लेकिन, केले की अलग-अलग प्रजातियां आकर्षण का केंद्र हैं। यहां शुगर फ्री केला है। छोटे आकार वाले इस केले की कलम हैदराबाद से मंगवाई है। केले की एक और प्रजाति है, जिसमें ऊपर की ओर फल निकलता है। इसी बाग में फूल झाडू़ का पेड़ है। खीरे का पेड़ भी आकर्षण है। इतना ही नहीं कर्पूर और सिंदूर का पेड़ भी लोग देखने आते हैं।
व्यवसाय के काम के बाद निकालते समय
गुलाम नबी उर्फ आले बताते हैं कि जब भी कही से किसी औषधीय पौधों की जानकारी मिलती, जाकर लाते हैं। पौधों की कटाई, बोवाई और सिंचाई तीनो भी मिलकर खुद करते है। मूल रूप से इनकी महुआ गाछी में एजेंसी है। एजेंसी का काम करते हुए सुबह-शाम बागवानी के लिए वक्त निकलते हैं। परिवार के लोग भी सहयोग करते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता कमर अख्तर बताते हैं कि उनका आवास एक बागवान है, जिसमें देश-विदेश के औषधीय पौधे पर्यावरण की रक्षा का संदेश दे रहे। तीनो भाइयों को विरासत में मिले इस बागीचे को संवारते हुए हमेशा देखा जा सकता है।