
कोर्ट रूम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई ने फैसला पढ़कर सुनाया। इस दौरान उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस को भी गंभीर अपराध माना। उन्होंने कहा कि इस अपराध से जुड़े दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से अयोध्या-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर शनिवार को फैसला सुनाया। कोर्ट ने विवादित जमीन रामलला को दी है जबकि पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन मुस्लिम पक्ष को देने का फैसला किया है।
कोर्ट ने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय होगा। हिन्दू विवादित स्थल को ही भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं और मुस्लिम भी इस स्थान के बारे में यही कहते हैं।
बेंच ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे मिली संरचना इस्लामिक नहीं थी लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यह साबित नहीं किया कि क्या मस्जिद निर्माण के लिये मंदिर गिराया गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई ने वकीलों और पत्रकारों से खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में इस बहुप्रतीक्षित फैसले के मख्य अंश पढ़कर सुनाये और इसमें उन्हें 45 मिनट लगे। इस दौरान उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस को भी गंभीर अपराध माना। उन्होंने कहा कि इस अपराध से जुड़े दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।
सीजेआई ने कहा ‘1934 और 1992 में मस्जिद क्षतिग्रस्त करना और 1949 में मंदिर में मूर्तियां रखना गैर-कानूनी था। 1949 में मस्जिद में मूर्तियों का रख गया जिससे मुसलमानों को गलत तरीके से मस्जिद से दूर किया गया जो कि 450 साल पहले बनाई गई थी। मुस्लिमों को सार्वजनिक स्थल को अवैध तरीके से नष्ट किया गया।’
बहरहाल कोर्ट की इस टिप्पणी से साफ है कि बाबरी मस्जिद ढहाना कानून का उल्लंघन है। यानि कि ढांचे को गिराने से जुड़े केस में जिन नेताओं के खिलाफ ट्रायल चल रहा है उन्हें सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक फैसले राहत मिलती नहीं दिख रही है।
बता दें कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे 13 नेताओं के नाम शामिल हैं। ऐसे में इनकी मुश्किलों बढ़ती हुई दिख रही हैं।