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अयोध्या फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘मूर्ति को नुकसान पहुंचा देने से कानूनी अधिकार नहीं होते खत्म’

अयोध्या के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मूर्तियों के विध्वंस को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि किसी परिसर में यदि मूर्ति को नुकसान पहुंचाया जाए तो इससे संपत्ति पर कानूनी अधिकार खत्म नहीं हो जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि मूर्ति को खंडित कर देने भर से संपत्ति पर इसके भक्तों, पूजा करनेवालों और विश्वास रखनेवालों के कानूनी अधिकार को समाप्त किए जाना नहीं मान सकते हैं।

संविधान पीठ के 5 जजों जस्टिस रंजन गोगोई (फैसले के वक्त चीफ जस्टिस), जस्टिस एस. ए. बोबडे (मौजूदा चीफ जस्टिस), जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने अयोध्या फैसले पर कहा, ‘मूर्ति रखने का उद्देश्य धार्मिक भावना की अभिव्यक्ति के लिए होता है और जिसके ऊपर कानूनी संरक्षण तय होता है। यदि मूर्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है तो यह पवित्र उद्देश्य के खत्म होने और इस कारण से कानूनी अधिकार समाप्त होने का आधार नहीं हो सकता है।’

5 जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में इसकी व्याख्या करते हुए कहा, ‘मूर्ति की स्थापना पवित्र उद्देश्य और भावना की अभिव्यक्ति के तौर पर है तो यह कानूनी दायरे में है। इस कारण से राज्य की जिम्मेदारी है कि वह इस संपत्ति की रक्षा करे। ऐसी परिस्थिति में भी यह संरक्षण मिलना चाहिए जब किसी संस्थान की मौजूदगी इसमें न हो।’

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उन संपत्तियों का आधार दिया जो बिना मूर्तियों के भी विभिन्न मंदिरों से जुड़े हैं। कोर्ट ने विभिन्न पूजा समतियों के द्वारा समय-समय पर गणेश, दुर्गा और दूसरे मूर्तियों की पूजा के लिए जमा किए जानेवाले फंड का हवाला दिया। ऐसी समितियों द्वारा फंड जमा कर समारोह आयोजित करने के बाद मूर्तियों को जल में विसर्जित करने की परंपरा रही है।

कोर्ट ने मूर्तियों को जल में विसर्जित करने की परंपरा का हवाला देते हुए कहा, ‘धार्मिक परंपरा का पालन करते हुए मूर्तियों को आम तौर पर पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि पानी में विसर्जित कर देने की इस परंपरा के कारण इसके पीछे की श्रद्धा और उद्देश्य भी साथ में खत्म हो जाते हैं।’

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रिपोर्ट- आवाज प्लस डेस्क

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