पहलगाम हमले को भुला दिया? शहीद की पत्नी का बीसीसीआई से सवाल

भारत और पाकिस्तान के बीच होने जा रहे एशिया कप क्रिकेट मैच को लेकर एक ओर जहां क्रिकेट प्रेमियों में उत्साह है, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़ा एक भावनात्मक और देशभक्ति से ओत-प्रोत विरोध भी सामने आया है। यह विरोध किसी राजनीतिक पार्टी या संगठन से नहीं, बल्कि एक शहीद की पत्नी की पीड़ा से उपजा है।

कानपुर निवासी शुभम द्विवेदी, जो 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में मारे गए थे, उनकी पत्नी ऐशन्या द्विवेदी ने बीसीसीआई के इस फैसले पर सवाल खड़े किए हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच खेलने की अनुमति कैसे दी जा सकती है जब पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने कुछ ही महीने पहले 26 निर्दोष भारतीयों की जान ले ली थी।

ऐशन्या ने एक वीडियो जारी कर कहा:

“हम सुनते थे लोग जल्द ग़म भूल जाते हैं, लेकिन सिर्फ 3 महीने में? यह बहुत ही शर्मनाक है। कैसे हो सकता है कि जिन आतंकियों ने हमारे देशवासियों को मार डाला, उनके देश के साथ हम क्रिकेट खेलें?”

उन्होंने सीधे तौर पर बीसीसीआई से पूछा कि क्या देश की सुरक्षा और शहीदों की शहादत से बढ़कर क्रिकेट है? उनके अनुसार, पाकिस्तान से क्रिकेट मैच खेलना उन शहीदों का अपमान है जो आतंकवाद का शिकार हुए। उन्होंने देशवासियों से अपील की है कि वे इस मैच का बहिष्कार करें और अपने विरोध को दर्ज करें।

पहलगाम हमला क्या था?

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के बाइसरन घाटी, पहलगाम में पाँच आतंकियों ने 26 भारतीय पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं। हमले में ज़्यादातर हिंदू श्रद्धालु मारे गए थे, लेकिन एक ईसाई पर्यटक और एक स्थानीय मुस्लिम भी आतंक का शिकार हुए। इस हमले की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन पर डाली गई थी। उस समय देशभर में शोक और आक्रोश की लहर दौड़ गई थी।

ऐशन्या की अपील का असर

सोशल मीडिया पर ऐशन्या द्विवेदी का वीडियो वायरल हो रहा है और कई लोग उनके समर्थन में सामने आ रहे हैं। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लोग हैशटैग #BoycottIndVsPak और #JusticeForPahalgamVictims के साथ इस भावनात्मक विरोध को आवाज़ दे रहे हैं। कई पूर्व सैनिकों, पत्रकारों और आम नागरिकों ने भी इस पर सवाल उठाए हैं कि क्या सिर्फ मनोरंजन के लिए देश के घावों को इतनी जल्दी भुला दिया जाना चाहिए?

क्या कहती है नैतिकता?

ऐशन्या का सवाल केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना को झकझोरने वाला है। वह सिर्फ एक पत्नी नहीं हैं, बल्कि उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं जिनके अपने लोग आतंकवाद का शिकार बने। उनका यह सवाल देश के हर नागरिक से है – “क्या कुछ महीनों की चुप्पी के बाद हम सब कुछ भूल सकते हैं?”

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