
नई दिल्ली: राम मंदिर पर निर्णायक सुनवाई शुरू होने से पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दिया है। इस हलफनामे में अयोध्या की विवादत भूमि से अपना दावा छोड़ने की बात कही गई है। ये हलफनामा मध्यस्थता कमेटी के सदस्य श्रीराम पंचु के जरिए दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम पक्षकारों में से कुछ का मानना है कि राम जन्मभूमि हिंदुओं को देने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन इसके बाद हिंदू किसी अन्य मस्जिद या ईदगाह पर दावा नहीं करें.
राम जन्मभूमि मामले को आपसी रजामंदी से सुलझाने की एक और कोशिश की जा रही है. इस सिलसिले में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने एक बार फिर मध्यस्थता की मांग की है और सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त मध्यस्थता पैनल के अध्यक्ष जस्टिस कलीफुल्ला को पत्र लिखा है.
रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम पक्षकारों में से कुछ का मानना है कि राम जन्मभूमि हिंदुओं को देने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन इसके बाद हिंदू किसी अन्य मस्जिद या ईदगाह पर दावा नहीं करें. साथ ही एएसआई के कब्जे वाली सारी मस्जिदें नियमित नमाज के लिए खोल दी जाएं.
हालांकि सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील इस बात से इनकार कर रहे हैं कि कोई पत्र भेजा गया है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा है कि वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने हो सकता है कि अपनी पर्सनल कैपेसिटी में कुछ भेजा हो सकता है. वकीलों का कहना है एक बार सुनवाई शुरू होने के बाद मध्यस्थता पैनल को भंग कर दिया गया है.
इसके अलावा, निर्वाणी अखाड़ा जिसका नाम मध्यस्थता के लिए सामने आया है, मामले का पक्षकार नहीं है. इसके जिम्मे हनुमानगढ़ी मंदिर का प्रभार है. बोर्ड के वकील ने कहा है कि हो सकता है निर्वाणी अखाड़े ने एक “अराधक” के रूप में एक हस्तक्षेप याचिका दायर की गई हो लेकिन राम जन्मभूमि विवाद में इसे आधिकारिक पक्षकार नहीं माना जा सकता.