
अयोध्या भूमि विवाद मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय सांविधानिक पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
शाम चार बजे तक चली इस सुनवाई के दौरान दिन भर हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष को अपनी अंतिम दलीलें रखने का मौका मिला। इस दौरान कई बार ऐसे मौके आए जब वकीलों के बीच बहस तीखी हुई तो कई बार पीठ भी नाराज हुई। अब फैसला जो भी आए, वकीलों की दलीलें भी इतिहास के पन्नों में तारीख बनकर दर्ज हो गई हैं।
छोटी सी जगह में ही बंटवारा चाहता है मुस्लिम पक्ष
रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन की दलीलें:
वैद्यनाथन: 1885 तक हिंदू-मुस्लिम उस जमीन पर पूजा का दावा करते थे, लेकिन बाद में ब्रिटिश सरकार ने वहां पर रेलिंग बनवा दी। अब मुस्लिम पक्ष बाहरी और आंतरिक अहाते पर विवाद कर रहा है, वो छोटी-सी जगह को बांटना चाहते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़: आपका 1885 के बाद पूजा का क्या आधार है?
वैद्यनाथन: ब्रिटिश हुकूमत की रेलिंग के बाद भी हिंदू लगातार पूजा करते रहे थे, लेकिन बाद में मुगलों ने जबरन मस्जिद बना दी थी।
वैद्यनाथन: विवादित स्थल में 1949 तक अंदर मूर्ति नहीं थी और साप्ताहिक नमाज होती थी। जब जमीन की मालिक तत्कालीन हुकूमत थी और उन्हीं की देखरेख में मस्जिद बनाई गई तो सुन्नी बोर्ड ने उसे कैसे डेडिकेट किया?
जस्टिस नजीर: तभी तो सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि ये वक्फ बाई यूजर है।
वैद्यनाथन: इस बात के प्रमाण हैं कि 16 दिसंबर 1949 के बाद विवादित स्थल पर कोई नमाज अदा नहीं की गई। 22/23 दिसंबर की रात से रामलला वहां विराजमान थे। 23 दिसंबर 1949 को शुक्रवार था, लेकिन मूर्ति होने की वजह से वहां पर नमाज नहीं हो सकी थी। मुस्लिम पक्ष के पास ऐसे कोई सबूत नहीं हैं कि वो साबित कर सके कि जमीन पर उनका हक है। मुस्लिम पक्ष की तरफ से ये दावा किया गया कि वहां 22-23 दिसंबर तक नमाज हो रही थी, लेकिन 1934 तक शुक्रवार की नमाज होती थी।
वैद्यनाथन: मुस्लिम पक्ष ने हमपर कब्जा करने की बात कही है, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। हम बाबर के द्वारा अवैध निर्माण वाली जमीन मांग रहे हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़: वक्फ बोर्ड के जमीन पर हक के दावा पर आप क्या कहेंगे?
वैद्यनाथन: ये लोग मंदिर के दावे को खारिज कर रहे हैं लेकिन जब वहां पर पहले से ही मंदिर था तो ऐसा कैसे कह सकते हैं? जब तक जमीन पर हक ना हो तो मस्जिद नहीं बनाई सकती है।चीफ जस्टिस: अब आपका (वैद्यनाथन) समय पूरा हो गया है, बैठ जाइए। इसपर वैद्यनाथन ने कहा कि सर कुछ मिनट और।
मुगलकाल में हिंदुओं को दिक्कत हुई, ब्रिटिशराज में राहत मिली
गोपाल सिंह विशारद के वकील रंजीत कुमार की दलीलें
गोपाल सिंह विशारद के वकील रंजीत कुमार खड़े हुए तो सीजेआई ने उन्हें कहा कि आपको सिर्फ 2 मिनट ही मिलेंगे। क्योंकि कल आपने दो ही मिनट मांगे थे। इसपर रंजीत कुमार ने कहा कि सर, वो तो कल के लिए दो मिनट थे। अब कैसे बहस पूरी होगी?
रंजीत कुमार: हिंदुओं की ओर से पूजा का अधिकार पहले मांगा गया था, लेकिन मुस्लिम शासन में हिंदुओं को पूजा के अधिकार मिलने में दिक्कत आई थी। हालांकि, जब ब्रिटिश हुकूमत आई तो इस मामले में कुछ राहत मिली।
रंजीत कुमार: जन्मभूमि का महत्व भी कैलास मानसरोवर जैसा है। मैं वहां गया तो देखा कि हिंदू ही नहीं बौद्ध भी उस पर्वत की पूजा उपासना करते हैं। बौद्ध वहां के पत्थरों पर पताका लगाकर उसे ज्वेल ऑफ स्नो या रिन पो छे कहते हैं। पूरा पर्वत बिना किसी प्रतिमा के पवित्र और पूजनीय स्थल माना जाता है।
टाइटल पर विवाद नहीं, हम ही रामलला के सेवायत
निर्वाणी अखाड़ा और महंत धर्मदास की ओर से जयदीप गुप्ता की दलीलें:
जयदीप गुप्ता: टाइटल पर हमारा विवाद नहीं है, हिंदुओं को जो रामलला का अधिकार मिलेगा उसमें हम ही सेवायत होंगे। सेवायत का दावा निर्मोही अखाड़ा का भी है, हमने सूट फाइल नहीं किया है। अभी तो हम ही इकलौते सेवायत दावेदार हैं। जब वहां रिसीवर नियुक्त किए गए तब भी हमारा अखाड़ा ही सेवा, शोभायात्रा और उत्सव का आयोजन और देखरेख करता था, लेकिन बाद में हमें बाहर कर दिया गया। रामलला जन्मस्थान की सेवा का अधिकार हमारा है।
जस्टिस भूषण: लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा को सेवायत माना है।
जयदीप गुप्ता: वह दावा गलत है।
क्या यह किताब रख लूं, बाद में पढ़ूंगा: सीजाआई
अखिल भारतीय हिंदू महासभा की ओर से वकील विकास सिंह की दलीलें:
विकास सिंह ने अतिरिक्त दस्तावेज के तौर पर पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल की किताब पीठ को दी। इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने जोरदार आपत्ति जताई। धवन ने कहा कि इसे ऑन रिकॉर्ड ना लिया जाए, ये नई चीज है। कोर्ट इसे वापस कर दें। जब विकास सिंह ने किताब दी तो चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि क्या वह इसे रख सकते हैं? मैं इसे बाद में पढ़ूंगा। राजीव धवन के विरोध पर विकास सिंह ने कहा कि कोर्ट ने किसी नए कागजातों को लाने पर मनाही की है, लेकिन कोई पार्टी किसी तरह का सुबूत या किताब दे सकती है।
विकास सिंह: हम अयोध्या रीविजिट किताब कोर्ट के सामने रखना चाहते हैं जिसे रिटायर आईपीएस किशोर कुणाल ने लिखी है। इसमें राम मंदिर के पहले के अस्तित्व के बारे में लिखा है। किताब में हंस बेकर का कोट है। चैप्टर 24 में लिखा है कि जन्मस्थान के वायु कोण में रसोई थी। जन्मस्थान के दक्षिणी भाग में कुआं था। बैकर के किताब के हिसाब से जन्मस्थान ठीक बीच में था। उन्होंने किताब का एक नक्शा कोर्ट को दिखाया।
राजीव धवन: (अपने पास मौजूद नक्शे की कॉपी फाड़ दी) हम इसका विरोध करते हैं।
चीफ जस्टिस: इस तरह का माहौल जारी रहा तो कोर्ट सुनवाई अभी खत्म कर देंगे। इस तरह अगर सुनवाई हुई तो जज उठेंगे और चले जाएंगे।
विकास सिंह: पूरे आदर के साथ कहना चाहता हूं कि अदालत का का डेकोरम मैं खराब नहीं कर रहा। भारत सरकार अधिनियम 1858 आया और बोर्ड को खत्म कर दिया गया।
बाबर ने कभी मस्जिद नहीं बनाई, हमेशा से मंदिर ही था
निर्मोही अखाड़ा की ओर से सुशील जैन ने रखी दलीलें:
सुशील जैन: मुस्लिम पक्ष अपना दावा स्थापित करने में फेल रहा है, साबित उन्हें करना है हमें नहीं। उन्होंने 1961 का एक नक्शा दिखाया, जो गलत था। उन्होंने बिना किसी सुबूत के सूट फाइल कर दिया। वहां की इमारत हमेशा से ही मंदिर थी। ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि बाबर ने मस्जिद बनाई थी। रामजन्मभूमि न्यास ने ऐसा क्यों कहा कि बाबर ने मंदिर गिराया और मस्जिद बनाई। हमने हमेशा कहा है कि वह मंदिर ही था। हमने कभी मुस्लिमों को जमीन का हक ही नहीं दिया।
जस्टिस अशोक भूषण: जो सूट दायर किया गया है वह टाइटल का है, इसमें एक्सेस की कोई बात नहीं है।
सुशील जैन: हमारा दावा मंदिर की भूमि, स्थाई संपत्ति पर मालिकाना अधिकार को अधिकार है। मुस्लिम पक्षकारों के इस दावे में भी दम नहीं है कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात बैरागी साधु जबरन इमारत में घुसकर देवता को रख गए थे। ये मुमकिन ही नहीं कि मुसलमानों के रहते इतनी आसानी से वो घुस गए जबकि 23 दिसंबर को शुक्रवार था।
मस्जिद हमारी, सुन्नियों का दावा गलत
शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वकील एमसी धींगरा की दलीलें:
एमसी धींगरा: हमारा विवाद शिया बनाम सुन्नी बोर्ड को लेकर है, इस पर सुन्नियों का दावा नहीं बनता है। वहां पर शिया मस्जिद थी। 1966 में आए फैसले से हमें बेदखल किया गया था। 1946 में दो फैसले आए थे एक हमारे पक्ष में और दूसरा सुन्नी के पक्ष में। 20 साल बाद 1966 में कोर्ट ने हमारा दावा खारिज कर दिया।
इसके बाद अदालत लंच के लिए उठ गई। लंच के बाद 45 मिनट पीएन मिश्रा को और उसके बाद डेढ़ घंटा मुस्लिम पक्षकारों को दिया गया।
लंच के बाद सुप्रीम कोर्ट में बुद्धिस्ट सभा की ओर से वकील रणजीत थॉमस की दलीलें:
चीफ जस्टिस: हम आपको नहीं सुनेंगे। हमने आपको डीटैग कर दिया है। यानी जिन्होंने इस मामले में सिविल अपील दाखिल नहीं की है उनको किसी भी सूरत में नहीं सुना जाएगा।
सुब्रमण्यम स्वामी को सुनने से इनकार
लंच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी को सुनने से भी इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हमने ये कल ही कह दिया था कि किसी और को नही सुनेंगे। कोर्ट ने कहा कि स्वामी के पूजा के अधिकार वाली अपील इससे अलग है।
पूजा के ऐतिहासिक सुबूत हैं, मस्जिद के नहीं
राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने रखी ये दलीलें:
पीएन मिश्रा: ट्रैफन थेलर और निकोलो मनुची जैसे 16वीं सदी में आए विदेशी यात्रियों के वृत्तांत में मंदिर का तो जिक्र है पर मस्जिद का नहीं है, ब्रिटिश गजेटियर में भी राममंदिर का ही जिक्र है। मुस्लिम पक्ष के पास कब्जे को लेकर कोई अधिकार नहीं है, लेकिन हिंदू पक्ष के पास सुबूत हैं। मुगल शासक जहांगीर के समय यात्री विलियम फिंच ने देखा था कि वहां हिंदू पूजा कर रहे थे।1858 के गजेटियर में ये पहली बार सामने आया कि मुस्लिम और हिंदू दोनो वहां प्रार्थना करते थे। उसके पहले मुस्लिम वहां नमाज पढ़ते थे इसके सुबूत नहीं थे।जस्टिस बोबडे: आप इसकी क्रोनोलॉजी बता सकते हैं?
पीएन मिश्रा: 1934 में हमारे पूजा के अधिकार पर पहला हमला हुआ। इस बात के कई सुबूत है कि सैकड़ों की संख्या में साधु थे जो मुस्लिम को नमाज के लिए नहीं जाने देते थे। लिमिटेशन को लेकर कोर्ट के कई फैसले हैं। लिमिटेशन का समय सीमा 6 साल होती है।
फैजाबाद कोर्ट ने भी कहा, वहां हिंदू मंदिर का कोई सुबूत नहीं: मुस्लिम पक्ष
दोपहर ढाई बजे के बाद मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन की दलीलें: डेढ़ घंटे का वक्त मिला
राजीव धवन: धर्मदास ने केवल ये साबित किया कि वे पुजारी है न कि गुरु। इसके अलावा हिंदू महासभा की तरफ से सरदार रविरंजन सिंह, दूसरी विकास सिंह, तीसरा सतीजा और चौथा हरि शंकर जैन के सबूत दिए गए हैं। इसका मतलब है महासभा 4 हिस्सों में बंट गया है, क्या दूसरा महासभा इसका समर्थन करता है? इसके अलावा उन्होंने रंजीत कुमार को जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने पार्टी न बनने का सवाल किया, लेकिन क्या हम किसी को पार्टी बनाएंगे?
राजीव धवन: ये वायरल हो गया है कि मैंने कोर्ट में नक्शा फाड़ा, लेकिन मैंने ये कोर्ट के आदेश पर किया। मैंने कहा था कि मैं इसे फेंकना चाहता हूं तब चीफ जस्टिस ने कहा कि तुम इसे फाड़ सकते हो। इसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने कहा था कि अगर आप फाड़ना चाहें तो फाड़ दें। हिंदू पक्षकारों ने कुरान के हवाले से जो दलीलें दी हैं, वे आधारहीन हैं। हम अपनी जमीन पर कब्जा वापस चाहते हैं। जिन कागजातों की बात हो रही है, उसके चार-चार मतलब हैं। पहला उर्दू, फिर हिंदी जो जिलानी की तरफ से हुआ, फिर एक हिंदी जो हाईकोर्ट जस्टिस अग्रवाल की ओर से किया गया। 2017 में चौथा अनुवाद हुआ। हिंदू पक्ष नवंबर तक क्या कर रहा था? हमने कोर्ट के कहने पर ट्रांसलेशन किया था और कोर्ट में जमा किया था।
जस्टिस चंद्रचूड़: इसपर आपत्ति ये है कि उस ट्रांसलेशन में कुछ ऐसे शब्द हैं, जो असली रूप में हैं ही नहीं।
राजीव धवन: 6 दिसंबर, 1992 को जो नष्ट हुआ, वो हमारी प्रॉपर्टी थी। वक्फ संपत्ति का मतवल्ली ही रखरखाव का जिम्मेदार होता है, उसे बोर्ड नियुक्त करता है। अयोध्या को अवध या औध लिखा गया है, जिसकी जांच सरकार के द्वारा की गई थी।
जस्टिस चंद्रचूड़: अगर हम आपके आधार को देखें तो ये ओनरशिप के कागजात नहीं दर्शाता है।
राजीव धवन: पीएन मिश्रा ने अनुवाद को जायज ठहराया और एक पैरा पढ़ा, लेकिन हम उन्हें पहले सुन चुके हैं। बाबर के द्वारा मस्जिद के निर्माण के लिए ग्रांट और लगान माफी देने के दस्तावेज हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़: ग्रांट से आपके मालिकाना हक की पुष्टि कैसे होती है?
राजीव धवन: जमींदारी और दीवानी के जमाने को देखें तो जमीन के मालिक को ही ग्रांट मिलती थी। इनकी दलील मूर्खतापूर्ण है क्योंकि इनको भूमि कानून की जानकारी नहीं है।
पीएन मिश्रा: मैंने भू कानून पर दो किताबें लिखी हैं और मेरे काबिल दोस्त कह रहे हैं कि मुझे कानून नहीं पता है।
राजीव धवन: आपकी किताबों को सलाम, आप उन पर पीएचडी भी कर लें।
राजीव धवन: यात्रियों की किताबों के अलावा इनके पास टाइटल यानी मालिकाना हक का कोई सुबूत नहीं है। इनकी विक्रमादित्य मंदिर की बात मान भी लें तो भी ये रामजन्मभूमि मंदिर की दलील से मेल नहीं खाता। 1886 में फैजाबाद कोर्ट कह चुका था कि वहां हिंदू मंदिर का कोई सुबूत नहीं मिला। हिंदुओं ने उसे चुनौती भी नहीं दी। हिंदू मंदिर का कोई सुबूत ही नहीं है। 1886 में कमिश्नर ने कहा था कि हिंदुओं के पास इसका अधिकार नहीं है। अगर हिंदू पक्ष 1885 से टाइटल साबित करने में सक्षम हैं, तो मैं इसके जवाब में दो शताब्दियों से अधिक पहले से इस जगह का मालिक हूं।
राजीव धवन: आक्रमणकारियों की बात हो तो सिर्फ नादिर शाह, तैमूर लंग, चंगेज ख्रान और अंग्रेज ही नहीं बल्कि आर्यों तक जाना होगा। ये लोग सिर्फ एक खास तरह के लोगों को ही आक्रमणकारी मानते हैं। आर्यों को आक्रमणकारी मानने से उनको परहेज है। जब मीर कासिम आया तो भारत एक देश नहीं बल्कि टुकड़ों में था। शिवाजी के समय राष्ट्रवाद की धारणा बढ़ी।
जस्टिस चंद्रचूड़: नक्शे से लगता है कि राम चबूतरा अंदर था। हिंदुओं की वहां तक पहुंच भी थी।
राजीव धवन: ये गलत धारणा है। आपने शायद नक्शा गलत पकड़ा हुआ है। अब देखें मस्जिद के दोनों ओर कब्रिस्तान है और हमारी मस्जिद यहां से शुरू होती है। चबूतरा बाहरी अहाते में ही है। चबूतरा भी मस्जिद का हिस्सा है, सिर्फ इमारत ही नहीं बल्कि पूरी जगह ही मस्जिद का हिस्सा है। मस्जिद थी और हमें पुनर्निर्माण का अधिकार है। इमारत भले ही ढहा दी गई लेकिन मालिकाना हक हमारा ही है।
राजीव धवन: हम मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के तहत बाबरी मस्जिद को फिर से बनाने की मांग कर रहे हैं। मस्जिद को दोबारा बनाने का अधिकार है। भले अभी वहां मस्जिद नहीं है लेकिन अभी भी ये जमीन वक्फ की है। हम बाबरी विध्वंस के पहले की स्थिति चाहते हैं।