कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और भारतीय राजनीति के प्रभावशाली चेहरों में शामिल शिवराज पाटिल का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। महाराष्ट्र के लातूर स्थित अपने आवास ‘देवघर’ में उन्होंने अंतिम सांस ली। लंबे समय से उम्र संबंधी बीमारियों से वह जूझ रहे थे। अपने पीछे वह एक बेटा—शैलेश पाटिल, बहू—अर्चना (भाजपा नेता), दो पोतियां और एक विवाहित बेटी छोड़ गए हैं।
साधारण परिवार से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति तक सफर
12 अक्टूबर 1935 को मराठवाड़ा के चकुर गांव में जन्मे शिवराज पाटिल ने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक किया। बाद में बॉम्बे से कानून की पढ़ाई पूरी की। शिक्षा के बाद उनका रुझान सामाजिक और राजनीतिक जीवन की ओर बढ़ा।
1967 में राजनीति में कदम—लातूर बने पहचान
उन्होंने 1967 में नगर पालिका से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। केशवराव और माणिकराव सोनावाने के सहयोग से उन्हें लातूर विधानसभा और बाद में लोकसभा तक पहुंचने का अवसर मिला।
शिवराज पाटिल पंचमसाली लिंगायत समुदाय से थे — एक ऐसा समुदाय जो दक्षिण और पश्चिम भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है।
1972 से 1980 तक वह दो बार महाराष्ट्र विधानसभा के विधायक रहे और कई अहम पदों—उपाध्यक्ष, अध्यक्ष, उप मंत्री इत्यादि—पर रहे।
सात बार लगातार लोकसभा सांसद—दुर्लभ उपलब्धि
1980 से 1999 तक उन्होंने लगातार सात बार लोकसभा चुनाव जीते। इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और बाद में सोनिया गांधी तक—सभी की कोर टीम में उनका दखल रहा।
मंत्री पदों की लंबी सूची—एक प्रभावशाली करियर
वे रक्षा राज्य मंत्री, वाणिज्य मंत्री, विज्ञान व तकनीकी मंत्री, परमाणु ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे महत्वपूर्ण विभाग संभाल चुके थे।
राजीव गांधी सरकार में उन्होंने कार्मिक, रक्षा उत्पादन, नागरिक उड्डयन और पर्यटन जैसे विभागों का नेतृत्व किया।
सोनिया गांधी के नेतृत्व में भी उन्होंने पार्टी की नीतियों, खासकर घोषणापत्र समिति (1999), में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2004 में गृह मंत्री—लेकिन विवाद भी उतने ही बड़े
2004 में मनमोहन सिंह सरकार में उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री बनाया गया—केंद्रीय कैबिनेट का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पद।
लेकिन उनका कार्यकाल लगातार विवादों से घिरा रहा।
— मालेगांव धमाके
— नंदीग्राम हिंसा
— आंतरिक सुरक्षा में लगातार चूक
इन सबने विपक्ष और मीडिया को हमलावर बनाए रखा।
26/11 मुंबई हमला—सबसे बड़ा विवाद
26/11 आतंकी हमलों के दौरान उनके व्यवहार को लेकर जो आरोप लगे, उसने उनकी छवि को गहरा झटका दिया। बैठकें हो रही थीं, देश पर हमला था, और उसी दौरान उनके द्वारा कुछ ही घंटों में तीन बार कपड़े बदलने का मामला सामने आया।
लोग उन्हें “भारत का नीरो” कहने लगे—अर्थात जब देश जल रहा था, तब वह साज-शृंगार में लगे थे।
हमले के बाद स्थितियों के कुप्रबंधन को लेकर उन पर दबाव बढ़ा और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा।
प्रधानमंत्री बनने का ‘छूटा हुआ मौका’
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2004 में यदि वह लातूर से चुनाव नहीं हारते, तो वह प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में सबसे ऊपर होते। परंतु विपक्षी उम्मीदवार को मिले “सहानुभूति वोटों” के कारण वे हार गए—और इतिहास की दिशा बदल गई।
गीता और जेहाद विवाद
2022 में उन्होंने एक कार्यक्रम में गीता की तुलना जेहाद से की, जिससे बड़ा विवाद खड़ा हो गया। आलोचनाओं के बाद भी उन्होंने अपने बयान पर कायम रहने की बात कही, हालांकि कहा कि संदर्भ महाभारत के दुर्योधन के लिए था।
एक लम्बी राजनीतिक यात्रा—उतार–चढ़ाव से भरी
शिवराज पाटिल का जीवन राजनीतिक उपलब्धियों, विवादों, सत्ता, संघर्ष, विचारधारा और आलोचनाओं का मिला-जुला रूप था।
भारत की संसद, कैबिनेट, विदेश यात्राएं, राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियाँ—इन सबके केंद्र में वह कई दशकों तक मौजूद रहे।
उनके निधन के साथ भारतीय राजनीति का एक बड़ा अध्याय समाप्त हो गया।
