26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई आतंकी हमले ने पूरे देश को दहला दिया था। पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकियों ने मुंबई में कहर बरपाते हुए 175 लोगों की जान ले ली थी। इस दर्दनाक हमले के बाद भारत में पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई की मांग जोर पकड़ रही थी। लेकिन अब पूर्व गृहमंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने खुलासा किया है कि भारत ने उस समय हमला करने का विचार किया था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव, विशेषकर अमेरिका के हस्तक्षेप के चलते सैन्य कार्रवाई नहीं की गई।
चिदंबरम का बयान
- तत्कालीन गृहमंत्री चिदंबरम ने बताया कि हमले के दौरान ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बदले की कार्रवाई पर चर्चा हुई थी।
- उनके दिमाग में तत्काल पाकिस्तान को सैन्य जवाब देने का विचार आया था।
- लेकिन अमेरिका की तत्कालीन विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस और कई अन्य वैश्विक नेताओं ने भारत को समझाया कि युद्ध न शुरू करें।
- चिदंबरम ने कहा – “पूरी दुनिया दिल्ली पर दबाव बना रही थी कि युद्ध मत शुरू करो।”
- विदेश मंत्रालय और भारतीय विदेश सेवा (IFS) ने भी सलाह दी कि फिलहाल कूटनीतिक रास्ता बेहतर होगा।
अंतरराष्ट्रीय दबाव का असर
- अमेरिका और पश्चिमी देशों को डर था कि भारत और पाकिस्तान के बीच जंग शुरू हुई तो परमाणु टकराव का खतरा बढ़ जाएगा।
- यही कारण था कि वैश्विक ताकतों ने भारत को संयम बरतने की सलाह दी।
- नतीजतन भारत ने सैन्य जवाबी कार्रवाई रोक दी और कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को घेरने का रास्ता अपनाया।
बीजेपी का पलटवार
- चिदंबरम के इस खुलासे पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने कांग्रेस को घेरा।
- केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने तंज कसते हुए कहा कि यह दिखाता है कि कांग्रेस सरकार विदेशी दबाव में झुक गई थी।
- उन्होंने कहा कि “ऑपरेशन सिंदूर भारत और पाकिस्तान के सैन्य कमांडर के बीच सीधी बातचीत का नतीजा था, न कि किसी तीसरे पक्ष, जैसे अमेरिका का।”
निचोड़
26/11 जैसे बड़े आतंकी हमले के बाद भारत सैन्य कार्रवाई करने की स्थिति में था। लेकिन अमेरिका और अन्य देशों के दबाव के चलते भारत ने संयम दिखाया। उस समय का यह फैसला आज भी राजनीतिक बहस का विषय बना हुआ है—क्या भारत को युद्ध करना चाहिए था या फिर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का रास्ता सही था?
