इंटर कॉलेज में बेहोशी की घटना से हड़कंप: लापरवाह छिड़काव ने छात्रों की जान जोखिम में डाली

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के खानपुर थाना क्षेत्र स्थित कनौना गांव में सोमवार को एक गंभीर और चिंताजनक घटना सामने आई। यहां एक इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले दर्जनों छात्र-छात्राएं अचानक एक के बाद एक बेहोश होकर गिरने लगे, जिससे पूरे स्कूल परिसर में हड़कंप मच गया। यह घटना सुबह स्कूल शुरू होने के कुछ समय बाद हुई, जब कई छात्र-छात्राओं ने सिर दर्द, उलझन और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की, और फिर बेहोश होकर गिर पड़े।

घटना के बाद आनन-फानन में विद्यालय प्रशासन और स्थानीय ग्रामीणों की मदद से सभी बच्चों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पताल भेजा गया। बच्चों की हालत अब खतरे से बाहर बताई जा रही है, लेकिन इस घटना ने स्कूल की व्यवस्थाओं और जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

क्या है मामला?

कॉलेज प्रशासन के अनुसार, हाल ही में क्षेत्र में लगातार बारिश के बाद स्कूल परिसर में मच्छरों और गंदगी की भरमार हो गई थी। संक्रमण की आशंका को देखते हुए शनिवार को पूरे परिसर में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव और फॉगिंग कराई गई थी। विद्यालय प्रबंधन का उद्देश्य था कि छात्रों को मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों से बचाया जा सके।

हालांकि, स्कूल खुलने के पहले ही दिन—सोमवार सुबह—छात्रों की तबीयत बिगड़ने लगी। कुछ ही समय में 15 से अधिक छात्र-छात्राएं एक साथ बेहोश होकर गिर पड़े। इसके बाद स्कूल में अफरा-तफरी मच गई। शिक्षक और स्टाफ बच्चों को अस्पताल ले जाने में जुट गए। मौके पर पहुंचे परिजन भी बेहद घबराए हुए थे और उन्होंने स्कूल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया।

जांच शुरू, प्रशासन की सख्ती

घटना की जानकारी मिलते ही शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य विभाग की टीमें मौके पर पहुंचीं और पूरे कॉलेज परिसर का निरीक्षण किया। जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) विनय कुमार ने कहा कि, “घटना की गंभीरता को देखते हुए जांच के आदेश दे दिए गए हैं। दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बच्चों का स्वास्थ्य हमारी प्राथमिकता है।”

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बच्चों के खून और यूरिन के नमूने लिए गए हैं और जांच रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट होगा कि उनकी तबीयत खराब होने की असली वजह क्या थी। फिलहाल, शुरुआती अनुमान यही है कि कीटनाशक के रासायनिक प्रभाव या अत्यधिक मात्रा में फॉगिंग से यह घटना हुई हो सकती है।

स्थानीय लोगों की चिंता और आक्रोश

गांव के लोगों में इस घटना को लेकर गुस्सा है। उनका कहना है कि विद्यालय में पहले से ही पर्याप्त वेंटिलेशन की कमी है, और अगर फॉगिंग कराई गई थी तो स्कूल को दो दिन बंद रखा जाना चाहिए था। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कीटनाशक के छिड़काव के बाद स्कूल को बिना सफाई और हवा के इंतज़ाम के खोला गया, जिससे रासायनिक तत्व बच्चों के शरीर में चले गए।

कुछ ग्रामीणों और अभिभावकों ने यह भी आशंका जताई है कि फॉगिंग में इस्तेमाल की गई दवा तय मात्रा से अधिक थी, या गुणवत्ता में मिलावट हो सकती है।

क्या यह लापरवाही थी या अनजानी गलती?

इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि स्कूलों में छात्रों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर कितनी गंभीरता से काम किया जा रहा है। बच्चों की तबीयत बिगड़ने के पीछे चाहे जो भी कारण हो, यह स्पष्ट है कि प्रबंधन स्तर पर सावधानी और सतर्कता की कमी रही है।

सिर्फ मच्छरों से बचाव के लिए दवा छिड़काव कराना ही काफी नहीं होता—उसके बाद की सुरक्षा प्रक्रिया, जैसे हवा की निकासी, दवा का प्रभाव खत्म होने तक प्रतीक्षा करना और छात्रों को सुरक्षित वातावरण देना भी उतना ही जरूरी है।

निष्कर्ष

बुलंदशहर की यह घटना केवल एक स्थानीय हादसा नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश और देश के शिक्षण संस्थानों को एक चेतावनी है कि छात्रों की सुरक्षा से जुड़ी कोई भी लापरवाही भविष्य में और गंभीर परिणाम दे सकती है। अब यह देखना होगा कि जांच के बाद कौन दोषी निकलता है और क्या इस घटना से शिक्षा विभाग कुछ सबक लेगा?