बिहार के एडीजी (कानून-व्यवस्था) कुंदन कृष्णन इन दिनों विवादों में हैं। हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा था कि अप्रैल से जून के बीच अपराध बढ़ते हैं क्योंकि यह खेती के दो सीज़न के बीच का खाली वक्त होता है, जब खेतिहर मज़दूर बेरोज़गार हो जाते हैं। कुछ लोग इसी दौरान ‘सुपारी किलिंग’ जैसे अपराधों में लिप्त हो जाते हैं।
उनके इस बयान को किसानों और खेतिहर मज़दूरों को अपराध से जोड़ने वाला माना गया, जिससे राजनीतिक दलों और किसान संगठनों में तीखी नाराज़गी देखी गई। सोशल मीडिया पर भी बयान को लेकर जबरदस्त विरोध हुआ।
🗣️ ADG की सफाई
बढ़ते विरोध को देखते हुए एडीजी कुंदन कृष्णन ने एक वीडियो जारी कर सफाई दी। उन्होंने कहा:
“मेरे बयान का मक़सद कभी भी किसानों या खेतिहर मजदूरों को अपराधी बताना नहीं था। मेरे शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। अगर किसी को मेरे बयान से ठेस पहुँची है तो मैं क्षमा चाहता हूँ।“
उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनका खुद का पारिवारिक पृष्ठभूमि कृषि से जुड़ा रहा है, और वे किसानों को अन्नदाता मानते हैं, जिनका सम्मान करना हर नागरिक का कर्तव्य है।
🔍 मुद्दे के पीछे की चिंता
ADG की मूल चिंता यह थी कि कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग फसल के खाली समय में अपराध में सक्रिय हो जाते हैं और ‘सुपारी किलिंग’ जैसी घटनाएं सामने आती हैं। लेकिन बयान में किसान समुदाय को संदर्भित किए जाने से गलतफहमी और जन आक्रोश उत्पन्न हो गया।
📌 विश्लेषण:
यह घटना बताती है कि जनता से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर बोलते समय उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। शब्दों का चयन ना सिर्फ सामाजिक प्रभाव डालता है, बल्कि सरकार और जनता के बीच की विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है।