सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना जैसे संवेदनशील मामलों में बड़ा और दूरगामी असर डालने वाला फैसला सुनाया है। अब भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के अंतर्गत दर्ज मामलों में एफआईआर होने के बाद दो महीने तक पुलिस आरोपी की गिरफ्तारी नहीं कर सकेगी। कोर्ट ने इस समयावधि को “शांति अवधि” (Cooling-off Period) कहा है, जिससे झूठे मामलों में गिरफ्तारी जैसी कठोर कार्रवाई से पहले सभी पहलुओं की निष्पक्ष जांच हो सके।
🔍 फैसले की पृष्ठभूमि और मुख्य निर्देश:
यह ऐतिहासिक आदेश मंगलवार को देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनाया। पीठ ने 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों को पुनः मान्यता दी, जो IPC की धारा 498A के कथित दुरुपयोग की पृष्ठभूमि में तैयार किए गए थे।
मुख्य बिंदु:
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दो माह तक गिरफ्तारी नहीं: एफआईआर या शिकायत दर्ज होने के बाद पुलिस कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी, जिससे निर्दोष लोगों को राहत मिल सके।
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परिवार कल्याण समिति (FWC) को सौंपा जाएगा मामला: शिकायत मिलने के बाद तुरंत संबंधित जिले की FWC को भेजा जाएगा, जो इस पर जांच कर अपनी रिपोर्ट देगी।
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गंभीर धाराएं नहीं होंगी शामिल: केवल उन्हीं मामलों को FWC को भेजा जाएगा जिनमें IPC की धारा 498A के साथ अन्य हल्की धाराएं शामिल हों, जैसे कि धारा 323, 504, 506 आदि। यदि मामले में IPC की धारा 307 (हत्या की कोशिश) या अन्य गंभीर अपराध शामिल हैं, तो यह दिशा-निर्देश लागू नहीं होंगे।
👩⚖️ महिला आईपीएस के मामले में सुनवाई के दौरान दिया गया आदेश
यह आदेश एक महिला आईपीएस अधिकारी के मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिन्होंने अपने पति और उसके परिवार पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था। कोर्ट ने पाया कि मामला पेचीदा है और तत्काल गिरफ्तारी से पहले सभी पक्षों की सुनवाई ज़रूरी है। कोर्ट ने महिला अधिकारी को अखबारों में माफी प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया।
🧩 क्यों ज़रूरी था यह फैसला?
धारा 498A का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना से सुरक्षा देना है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसके दुरुपयोग की भी कई घटनाएं सामने आई हैं। कई बार महिलाओं द्वारा झूठे आरोप लगाकर पूरे ससुराल परिवार को फंसाने की घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं।
इस आदेश से यह सुनिश्चित होगा कि:
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निर्दोष लोगों को राहत मिले।घरेलू हिंसा मामलों में राहत: सुप्रीम कोर्ट ने लागू की 2 महीने की ‘शांति अवधि’
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शिकायतों की निष्पक्ष जांच हो।
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पुलिस की जल्दबाज़ी में की गई कार्रवाई पर रोक लगे।
📜 2017 से 2024: दिशा-निर्देशों का सफर
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2017: सुप्रीम कोर्ट ने ‘राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार’ मामले में 498A के दुरुपयोग को रोकने के लिए परिवार कल्याण समितियों की स्थापना का सुझाव दिया था।
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2018: सुप्रीम कोर्ट ने इन दिशा-निर्देशों को निरस्त कर दिया था और FWC को निष्क्रिय कर दिया गया था।
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2022: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने FWC को पुनः सक्रिय करने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए।
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2024: अब सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं दिशा-निर्देशों को पूरे भारत में लागू करने का आदेश दिया है।