एटा में 13 वर्षीय मुस्लिम छात्रा के साथ बलात्कार और पुलिस की निष्क्रियता: एक सामाजिक और कानूनी विफलता

उत्तर प्रदेश के एटा जिले में 13 वर्षीय मुस्लिम छात्रा के साथ कथित बलात्कार की घटना ने स्थानीय समुदाय को झकझोर दिया है। सोशल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, इस घटना में एक स्थानीय व्यक्ति, प्रियांशु, और उसकी सहपाठी, शिवानी, पर आरोप है कि उन्होंने मिलकर इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया। बताया जाता है कि शिवानी ने पीड़िता को बहला-फुसलाकर गांव के बाहरी इलाके में ले जाया, जहां प्रियांशु ने बलात्कार किया। यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है, जिसमें पीड़िता के भरोसे का दुरुपयोग किया गया।

हैरानी की बात यह है कि इस मामले में पुलिस ने अभी तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया है। इसके उलट, पीड़िता के समर्थन में आवाज उठाने वाले लोगों को अलीगढ़ पुलिस ने कथित तौर पर हाउस अरेस्ट कर लिया है। यह कार्रवाई न केवल पुलिस की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाती है, बल्कि पीड़िता और उसके समर्थकों के साथ अन्याय को भी उजागर करती है। इसके अतिरिक्त, पुलिस ने कथित तौर पर पीड़िता की मेडिकल जांच में देरी की है और कोई औपचारिक मामला दर्ज नहीं किया गया है, जो इस मामले की गंभीरता को कमतर करता है।

सामाजिक और धार्मिक संदर्भ

यह घटना विशेष रूप से परेशान करने वाली है, क्योंकि पीड़िता एक अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम) से है और नाबालिग है। सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया है कि यह घटना सामुदायिक घृणा और लक्षित हिंसा का परिणाम हो सकती है। इस तरह की घटनाएं उन सामाजिक असमानताओं को रेखांकित करती हैं, जहां आर्थिक रूप से कमजोर, नाबालिग, और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की लड़कियां यौन हिंसा का आसान शिकार बनती हैं।

एटा जिले में पहले भी नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार के मामले सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, 2021 में पांच और आठ वर्षीय बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था।

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