मुंबई ट्रेन बम धमाकों में दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट की रोक: हाईकोर्ट के फैसले को नहीं माना जाएगा कानूनी मिसाल
नई दिल्ली/मुंबई (आवाज़ प्लस विशेष रिपोर्ट) –
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में हुए मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में बड़ा निर्णय सुनाया है। गुरुवार को शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा सभी 12 आरोपियों को बरी करने के फैसले पर आंशिक रूप से रोक लगा दी है। साथ ही कहा गया है कि यह निर्णय भविष्य में किसी कानूनी मिसाल (precedent) के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
🔍 क्या है मामला?
11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सात सीरियल बम धमाके हुए थे।
➡️ इन धमाकों में 189 लोगों की जान गई और 820 से अधिक लोग घायल हुए।
➡️ इस घटना को “7/11 मुंबई ब्लास्ट” के नाम से भी जाना जाता है।
➡️ विशेष अदालत ने इस मामले में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था – जिनमें 5 को फांसी और 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
⚖️ हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और “विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने ही यह अपराध किया।” इसके आधार पर सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया गया।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पीठ (जस्टिस एम. एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह) ने:
- हाईकोर्ट के फैसले को कानूनी मिसाल न मानने का निर्देश दिया।
- यह स्पष्ट किया कि फैसले की सीमित रोक सिर्फ विधिक प्रभाव को रोकने के लिए है।
- चूंकि आरोपी रिहा हो चुके हैं, इसलिए उन्हें दोबारा जेल भेजने की जरूरत नहीं।
⚠️ राज्य सरकार की आपत्ति और आपील
महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि:
- हाईकोर्ट का फैसला कई MCOCA (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) मामलों को प्रभावित कर सकता है।
- इसलिए इस पर रोक लगाना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलीलों को विचार योग्य माना और सभी आरोपियों को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है।
🕵️♂️ जांच और आरोपियों पर आरोप
- इस मामले की जांच महाराष्ट्र ATS (एंटी टेररिज्म स्क्वॉड) ने की थी।
- हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी भी की कि ATS ने आरोपियों को प्रताड़ित किया और उन पर ज़बरदस्ती अपराध कबूल करवाने का दबाव बनाया गया।
📌 न्यायिक दृष्टिकोण और कानूनी प्रभाव
- सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक बड़ा संतुलन प्रस्तुत करता है – एक ओर, निर्दोष लोगों की रिहाई का समर्थन, और दूसरी ओर, विधिक प्रक्रिया और कानूनी मिसालों की सुरक्षा।
- यह मामला अब एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है।
📢 निष्कर्ष:
मुंबई ब्लास्ट के 18 साल बाद भी यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा, न्याय व्यवस्था और मानवाधिकारों के बीच संतुलन की मिसाल बनता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य में ऐसे गंभीर मामलों में न्यायिक प्रक्रिया की अनदेखी न हो।