दिल्ली दंगे 2020: हाईकोर्ट ने शरजील इमाम और उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज की, सख्त टिप्पणी के साथ
2020 में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के मामले में शरजील इमाम और उमर खालिद को दिल्ली हाईकोर्ट से एक बार फिर बड़ा झटका लगा है। मंगलवार को हाईकोर्ट ने दोनों की जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की और कहा कि संविधान प्रदर्शन की आजादी देता है, लेकिन इसका इस्तेमाल साजिशन हिंसा के लिए नहीं किया जा सकता। यह मामला फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों से जुड़ा है, जिसमें 50 से अधिक लोगों की जान गई थी, दर्जनों लोग घायल हुए थे और करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ था। शरजील इमाम और उमर खालिद, जो इन दंगों के सिलसिले में पिछले पांच साल से जेल में हैं, पर गंभीर आरोप हैं कि उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ विरोध को भड़काने और दंगों की साजिश रचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी: प्रदर्शन की आड़ में हिंसा अस्वीकार्य
हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत सभी नागरिकों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार की सीमाएं हैं। कोर्ट ने कहा, “प्रदर्शन की आड़ में हिंसा को बढ़ावा देना या साजिश रचना अस्वीकार्य है। अगर बिना रोक-टोक के प्रदर्शन की छूट दी जाए, तो यह कानून-व्यवस्था और संवैधानिक ढांचे को नुकसान पहुंचा सकता है।” कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ऐसी परिस्थितियों में राज्य की मशीनरी को स्थिति पर नियंत्रण रखना होगा।
हाईकोर्ट ने शरजील इमाम और उमर खालिद की भूमिका को गंभीरता से लिया। कोर्ट ने माना कि दोनों ने CAA और NRC को मुस्लिम विरोधी बताकर लोगों को भड़काने का काम किया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, दोनों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाए, पैम्फलेट बांटे और मुस्लिम बहुल इलाकों में चक्का जाम जैसे विरोध प्रदर्शनों की अपील की। कोर्ट ने उनके बयानों को भड़काऊ और उत्तेजक करार दिया, जो दंगों की साजिश की ओर इशारा करते हैं।
शरजील और उमर की भूमिका: साजिश के प्रमुख खिलाड़ी
हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी स्पष्ट किया कि भले ही शरजील इमाम और उमर खालिद दंगों के समय घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनकी भूमिका कम थी। कोर्ट ने कहा कि दंगों की साजिश रचने और घटनाओं की रूपरेखा तैयार करने में दोनों की अहम भूमिका थी। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि CAA के पारित होने के तुरंत बाद दोनों ने संगठित तरीके से विरोध प्रदर्शन को हिंसक बनाने की योजना बनाई। व्हाट्सएप ग्रुप्स, पैम्फलेट्स और भड़काऊ भाषणों के जरिए उन्होंने लोगों को उकसाया, जिसके परिणामस्वरूप फरवरी 2020 में दिल्ली में हिंसक दंगे भड़क उठे।
शरजील इमाम को 25 अगस्त 2020 को और उमर खालिद को 14 सितंबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था। दोनों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत गंभीर आरोप लगाए गए हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि उनकी गतिविधियां और बयान साजिश की गंभीरता को दर्शाते हैं, जो देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा बन सकती थीं।
ट्रायल में देरी पर कोर्ट का रुख
दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले में ट्रायल की धीमी गति पर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के जटिल मामलों में सुनवाई स्वाभाविक रूप से धीमी होती है, क्योंकि इनमें कई पक्ष और सबूत शामिल होते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जल्दबाजी में ट्रायल करना न तो अभियोजन पक्ष के लिए और न ही बचाव पक्ष के लिए उचित होगा। वर्तमान में इस मामले में आरोप तय करने की प्रक्रिया चल रही है, और मुकदमा आगे बढ़ रहा है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि केवल लंबे समय तक जेल में रहने या ट्रायल में देरी के आधार पर हर मामले में जमानत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने इस मामले को “पूर्व-नियोजित और सुनियोजित साजिश” करार देते हुए कहा कि यह देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए खतरा था।
दिल्ली दंगे 2020: पृष्ठभूमि
फरवरी 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्सों में हुए दंगे देश की राजधानी में एक काला अध्याय बन गए। इन दंगों में 50 से अधिक लोगों की जान गई, सैकड़ों लोग घायल हुए और सार्वजनिक व निजी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचा। यह हिंसा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी। अभियोजन पक्ष का दावा है कि शरजील इमाम और उमर खालिद जैसे व्यक्तियों ने इन विरोध प्रदर्शनों को हिंसक बनाने में अहम भूमिका निभाई।