मित्रों नमस्कार! दि0 15.03.2025 की सुबह ही बेबाक ने टिप्पणी की थी कि “दुल्हन सजकर तैयार है बस बारात आने एवं नजराना तय होने की है देर”। दोपहर बाद ही ऊर्जा प्रबन्धन द्वारा निजीकरण हेतु ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की बिड खोलकर, बारात आने के संकेत दे दिये गये थे। इसी के साथ, ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की बिड खोलने को लेकर भोजनावकाश के समय, ऊर्जा प्रबन्धन द्वारा, कतिपय कार्मिक संगठनों के सहयोग से प्रायोजित रंगारंग कार्यक्रम का एक अध्याय समाप्त हुआ। समाचार के अनुसार अब अगले माह, बाहरी प्रदेशों के विशेषज्ञ कलाकारों के द्वारा आकर प्रस्तुति की जायेगी।
बेबाक एक बार फिर अपने शब्दों को दोहराना चाहता है, कि निजीकरण की पूरी प्रक्रिया पहले से ही निर्धारित एवं लिखी गई स्क्रिप्ट के अनुसार ही, निर्धारित गति से आगे बढ़ रहे हैं। बेबाक शुरु से चेताता आया है कि ऊर्जा निगमों के द्वारों पर, भोजनावकाश के समय, निजीकरण के विरुद्ध कतिपय सेवानिवृत्त एवं बाहरी लोगों का विरोध प्रदर्शन, प्रायोजित फोटो सेशन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जिसका मूल उद्देश्य ही रंगमंच के कलाकारों की भांति, भोजनावकाश के समय, ऊर्जा प्रबन्धन एवं कार्मिकों के मनोरंजन हेतु एक रंगारंग कार्यक्रम के तहत, काल्पनिक आन्दोलन की प्रस्तुति करना था। जिसके पीछे एक महत्वपूर्ण रहस्यात्मक उद्देश्य भी छिपा हुआ है, कि किसी भी प्रकार से निजीकरण जैसे अति संवेदनशील मसले पर, सम्भावित विरोध की चिन्गारी को फूटने से पहले नियन्त्रित करना तथा उनके अतिरिक्त अन्य कोई आन्दोलन में आकर, उनके एवं उनके आकाओं के पेट पर लात न मार दे, यह सुनिश्चित करना है।
ऊर्जा निगमों की दीवारों ने कल पहली बार वह नारा सुना, ”भ्रष्टाचार बंद करो, कुर्सी छोड़ो-कुर्सी छोड़ो“, काश जिसे यदि कुछ वर्ष पूर्व सुना गया होता, तो आज निगमों के निजीकरण के लिये प्रबन्धन को कोई आसान बहाना न मिलता। परन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि भ्रष्टाचार बंद करने एवं कुर्सी छोड़ने की मांग किससे की जा रही है। क्योंकि यदि भ्रष्टाचारी कुर्सी छोड़ देंगे तो न तो मांगने वाले रहेंगे और न ही देने वाले। कतिपय कार्मिक पदाधिकारियों का यह कहना कि प्रबन्धन द्वारा अवैधानिक ढंग से ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की बिड खोली गयी है, हास्यापद, गैरजिम्मेदाराना, अपरिपक्व एवं सदस्यों को भ्रमित करने वाला, मात्र बयान की औपचारिकता निभाने वाला बयान है। यक्ष प्रश्न उठता है कि क्या वितरण निगमों के कार्यालयों जैसेः अधीक्षण अभियन्ता, मुख्य अभियन्ता, डिस्काम मुख्यालय एवं पा0का0लि0 मुख्यालय से आमन्त्रित निविदाओं की आड़ में, जो खेल खेला जाता है, वह वैधानिक है? जहां निविदा हेतु गठित समिति के समस्त अधिकारियों के गोपनीय एवं अतिमहत्वपूर्ण Digital Signature की मूल Pen Drive संविदा पर नियुक्त कमप्यूटर आपरेटर के पास उपलब्ध होती है। जिनका पारदर्शिता के नाम पर, सम्बन्धित अधिकारियों की अनुपस्थिति में, एक संविदा कमप्यूटर आपरेटर द्वारा सभी समयों पर, स्वतन्त्र रुप से प्रयोग किया जाता है।
विदित हो कि निर्धारित Digital Signatures के बिना, न तो कोई निविदा Upload की जा सकती है, न ही शर्तों में संशोधन और न ही Open की जा सकती है। जो स्वतः इस बात का प्रमाण है कि किस प्रकार से निविदाओं में खेल, खेला जाता है। जिस खेल को सीधे-सीधे प्रबन्धन ही नहीं, अपितु कार्मिक संगठनों के पदाधिकारियों का भी संरक्षण प्राप्त है। जहां निविदायें जनहित के कार्यों की आड़ में, अधिकारियों एवं ठेकेदारों के विकास के लिये ज्यादा होती हैं। जिसके लिये, पहले से ही कुछ इस प्रकार की शर्तें रखी जाती हैं, कि इच्छित व्यक्ति ही टेक्निकल बिड में सफल हो पाता है। यह आम चर्चायें हैं कि बिना मोटी हिस्सेदारी के कोई भी अनुबन्ध नहीं होता है और अनुबन्ध के बाद गुणवत्ताहीन सामग्री एवं कार्य के साथ-साथ, बिना कोई कार्य कराये भी, पूर्ण भुगतान कराये जाते हैं। यह हिस्सेदारी का ही तो खेल है, जिसमें ERP के माध्यम से भुगतान करने हेतु, ठेकेदारों को मुख्यालय बुलाकर बैठकें की जाती हैं।
यदि Business Plan के तहत कराये जाने वाले कार्यों का विश्लेषण किया जाये, तो ज्ञात होगा, कि Business Plan मुख्य अभियन्ता से लेकर अवर अभियन्ता तक के, व्यक्तिगत् व्यापार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। जहां बिना कार्य और सामग्री के भी, कार्य समापन एवं भुगतान दिखलाई दे जायेगा। वितरण कम्पनियों के घाटे के एक लाख करोड़ कहां गये उसके मूल कुंजी भी निविदायें ही हैं। स्पष्ट है कि जिस प्रकार से निर्माण एवं अनुश्रवण के नाम पर खेला होता है, उसके समक्ष विद्युत चोरी तो कुछ भी नहीं है। इसी के साथ-साथ अतिरिक्त कार्यभार के साथ एवं नये-नये बने अधीक्षण एवं मुख्य अभियन्ताओं की गति तो Hypersonic Missile की गति से भी कहीं ज्यादा है। जिनका मूल उद्देश्य जहाज डूबने से पहले, जहाज को जितना भी लूटा जा सके, लूट लिया जाये। परन्तु यह कथन कि CVC की Guidelines के विरुद्ध Conflict of Interest के अति आवश्यक प्राविधान का उल्लंघन करते हुए, पॉवर कॉरपोरेशन प्रबन्धन द्वारा ऐसी कंपनियों से बिड ली है, जोकि बड़ी बिजली कंपनियों के साथ काम कर रही हैं।
तो स्पष्ट है कि वह ऊर्जा निगमों की कार्य प्रणाली के मूल सिद्धान्त के अनुरूप है। जहां आपसी हितों में सामन्जस्य स्थापित करने के सिद्धांत के तहत, कि “तू मेरा ख्याल रख और मैं तेरा” जैसे को तैसा की तर्ज पर है। सर्वविदित है कि उपरोक्त सिद्धान्त का पालन करने में असमर्थ रहले वालों के लिये निलम्बन एवं स्थानान्तरण जैसी कार्यवाहियां आम होती हैं। निजीकरण के विरोध की वास्तविक आवाज कहीं दूर-दूर तक भी नहीं है। जो आवाज है, वह मात्र भाड़े के रंगकर्मियों की आवाज है। यदि नियमित कार्मिक काली पट्टी एवं मोमबत्तियों के रंगारंग कार्यक्रम में ही लीन रहकर, इस गाने में ही डूबे रहना चाहते हैं कि “आग लगे अपनी झोपड़िया में, हम गावें मल्हार” तो कोई कुछ नहीं कर सकता। राष्ट्रहित में समर्पित! जय हिन्द!
-बी0के0 शर्मा, महासचिव PPEWA. M.No. 9868851027.