Justice Yashwant Varma Cash Recovery: ‘यह खतरनाक मिसाल’, कपिल सिब्‍बल सुप्रीम कोर्ट के कदम पर बोले- समय बताएगा

दिल्‍ली हाईकोर्ट के जज रहे यशवंत वर्मा के बंगले से बड़ी मात्रा में कैश बरामदगी के बाद हंगामा मचा है. इस बीच, राज्‍यसभा सदस्‍य और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्‍यक्ष कपिल…और पढ़ें

नई दिल्‍ली. देश की राजधानी दिल्‍ली में हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में कैश बरामदगी के बाद हंगामा मचा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्‍ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है. इससे पहले कैश बरामदगी मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक वीडियो जारी किया गया था. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इस मामले में इंटर्नल इन्‍क्‍वायरी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का फैसला किया. अब इसपर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्‍यक्ष और राज्‍यसभा सदस्‍य कपिल सिब्‍बल का बड़ा बयान सामने आया है. उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट के इस कदम को खतरनाक मिसाल करार दिया है. साथ ही कहा कि टॉप कोर्ट का यह कदम सही है या गलत यह तो आने वाला वक्‍त ही बताएगा.

राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने कहा है कि जस्टिस यशवंत वर्मा प्रकरण में आंतरिक जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का शीर्ष अदालत का फैसला खतरनाक मिसाल है. जस्टिस वर्मा तब से विवादों के घेरे में हैं, जब 14 मार्च को उनके नई दिल्ली स्थित घर में आग लगने के दौरान कथित तौर पर नकदी पाई गई थी. उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद स्थित उनके पैरेंट हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था.

‘यह उनके विवेक पर निर्भर करता है’
सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च को घोषणा की कि जस्टिस यशवंत वर्मा मामले की जांच पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट के सीजे जस्टिस अनु शिवरामन की तीन सदस्यीय समिति करेगी. अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट की इंटरनल इन्‍क्‍वायरी रिपोर्ट भी सार्वजनिक की और दिल्ली के सीपी संजय अरोड़ा द्वारा कथित तौर पर दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय के साथ साझा किए गए वीडियो और तस्वीरें भी अपलोड कीं. इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने के फैसले पर सिब्बल ने कहा, ‘यह उनके विवेक पर निर्भर करता है. यह सही था या गलत यह तो समय ही बताएगा. दस्तावेज का स्रोत खुद अदालत है, ऐसे में लोग उस पर विश्वास कर लेते हैं. यह सच है या नहीं, यह बाद में तय किया जाएगा. मेरे हिसाब से यह एक खतरनाक मिसाल है. इंस्‍टीट्यूशनल रिस्‍पांस एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसे संस्था लिखित रूप में लागू करे कि क्या होना चाहिए, क्योंकि संविधान के तहत उनके पास संसद द्वारा व्यक्ति पर महाभियोग चलाने के अलावा कोई और शक्ति नहीं है. यह उन्हें ही सोचना है कि इससे कैसे निपटना है.’

‘बार काउंसिल से करना चाहिए था परामर्श’
सिब्बल ने आगे कहा, ‘साफ-साफ कहूं तो इसपर बार काउंसिल के साथ परामर्श करके निर्णय लिया जाना चाहिए. हम जजों के बारे में उतना ही जानते हैं, जितना वे जानते हैं. एक व्यापक आधार वाली समिति होनी चाहिए जो इन मुद्दों पर चर्चा करे और फिर इन मुद्दों से निपटने के लिए एक तंत्र बनाए…अगर आप इन चीजों को सार्वजनिक डोमेन में रखते हैं, तो संस्था पहले ही हार चुकी है.’ जस्टिस वर्मा की घटना पर सिब्बल ने कहा, ‘जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, मुझे नहीं लगता कि भारत के किसी भी जिम्मेदार नागरिक को इस पर टिप्पणी करनी चाहिए, न ही बार को यह रुख अपनाना चाहिए कि हम हड़ताल पर चले जाएं, क्योंकि आप मान लेते हैं कि कोई दोषी है. मैं उम्मीद करता हूं कि यह देश इस सिद्धांत पर चलता रहेगा कि जब तक कोई व्यक्ति दोषी नहीं पाया जाता, वह निर्दोष है और इस मामले में तो जांच भी पूरी नहीं हुई है.’