14 अगस्त की दोपहर 12:25 बजे जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले के सुदूरवर्ती पहाड़ी गांव चशोती में अचानक बादल फटने की भीषण घटना हुई, जिसने पूरे इलाके को तबाही के मंजर में बदल दिया। इस आपदा में अब तक 60 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हैं, जिनमें से 38 की हालत गंभीर बताई जा रही है। करीब 60–70 लोग लापता हैं, और स्थानीय लोगों का मानना है कि यह आंकड़ा और भी अधिक हो सकता है, क्योंकि कई लोग तेज़ बहाव और मलबे में दब गए होंगे।
घटना का प्रभाव
- बाढ़ ने एक अस्थायी बाजार, लंगर स्थल, सुरक्षा चौकी, 16 आवासीय मकान, सरकारी इमारतें, 3 मंदिर, 4 पनचक्की, एक 30 मीटर लंबा पुल और एक दर्जन से अधिक वाहन पूरी तरह नष्ट कर दिए।
- इस हादसे में CISF के 2 जवान और स्थानीय पुलिस का एक SPO भी शामिल हैं।
- वार्षिक मचैल माता यात्रा, जो 25 जुलाई से शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक चलनी थी, हादसे के तीसरे दिन भी स्थगित रखी गई है। यह यात्रा किश्तवाड़ से लगभग 90 किलोमीटर दूर और 9,500 फुट ऊंचाई पर स्थित मंदिर तक 8.5 किलोमीटर की कठिन पैदल चढ़ाई से पूरी होती है।
बचाव व राहत कार्य
- पुलिस, सेना, NDRF, SDRF, BRO, नागरिक प्रशासन और ऊंचाई वाले इलाकों के स्थानीय स्वयंसेवक लगातार तीसरे दिन भी मलबा हटाने और फंसे लोगों को बचाने में लगे हुए हैं।
- अब तक 167 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है।
- भारी मलबा हटाने के लिए दर्जनभर अर्थ-मूवर्स और NDRF के विशेष उपकरण, साथ ही डॉग स्क्वॉड की मदद ली जा रही है।
नेताओं का दौरा और बयान
- केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और J&K के डीजीपी नलिन प्रभात शुक्रवार रात घटनास्थल पर पहुंचे और राहत कार्यों का जायज़ा लिया।
- मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला शुक्रवार शाम किश्तवाड़ पहुंचे, उन्होंने आपदा प्रभावित क्षेत्र का निरीक्षण किया और स्थानीय लोगों से मुलाकात कर स्थिति की जानकारी ली।
- अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से बात की, जिन्होंने हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया।
- सीएम ने इसे “बहुत बड़ी त्रासदी और बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना” बताया और कहा कि मौसम विभाग द्वारा चेतावनी देने के बावजूद क्या पर्याप्त एहतियाती कदम उठाए गए थे, इस पर भी चर्चा की जाएगी।
स्थानीय लोगों की पीड़ा
गांव के लोगों ने बताया कि अचानक आई बाढ़ का बहाव इतना तेज़ था कि लोग समझ ही नहीं पाए और देखते ही देखते पत्थर, लकड़ियां और मलबा उनके घरों और दुकानों को बहा ले गया। कई परिवार पूरी तरह उजड़ गए हैं, और सैकड़ों लोग अब बेघर होकर अस्थायी राहत शिविरों में रह रहे हैं।
क्यों है यह घटना ऐतिहासिक रूप से बड़ी त्रासदी
चशोती गांव किश्तवाड़ के सबसे ऊंचाई वाले और दुर्गम क्षेत्रों में से एक है। यहां पहुंचना खुद एक चुनौती है, और यही वजह है कि बचाव कार्य भी बेहद कठिन है। पहाड़ी भूभाग, टूटी सड़कों और लगातार खराब मौसम के कारण राहत दलों को जगह-जगह रुककर काम करना पड़ रहा है।
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि यह घटना हाल के वर्षों में किश्तवाड़ की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा है, जिसने न केवल जनहानि पहुंचाई है, बल्कि बुनियादी ढांचे को भी बुरी तरह तबाह कर दिया है।