लखनऊ। राजधानी लखनऊ में खुले नाले लगातार लोगों की ज़िंदगी के लिए खतरा बने हुए हैं। पिछले डेढ़ महीने के भीतर तीन बड़े हादसे हो चुके हैं। इनमें ठाकुरगंज में एक युवक की जान चली गई, जबकि रकाबगंज और गोमतीनगर में लोग हादसे का शिकार होकर गंभीर रूप से घायल हुए। इन घटनाओं ने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हादसों का सिलसिला
12 जुलाई को ठाकुरगंज इलाके में भारी बारिश के दौरान एक युवक खुले नाले में गिर गया और उसकी मौत हो गई।
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02 अगस्त को रकाबगंज इलाके में एक बच्चा अपनी साइकिल समेत खुले नाले में जा गिरा। गनीमत रही कि लोगों ने समय रहते उसे बचा लिया। 
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15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर गोमतीनगर के हैनीमैन चौराहे पर आयोजित तिरंगा यात्रा के दौरान एक युवक खुले नाले में गिरकर घायल हो गया। 
इन घटनाओं से साफ है कि शहर में खुले नालों का खतरा लगातार बढ़ रहा है।
हादसों के बाद रुका काम
ठाकुरगंज हादसे के बाद नगर निगम ने कई इलाकों में नालों को ढकने का काम शुरू किया था। शुरुआत में इसे गंभीरता से लिया गया और सीमेंट स्लैब लगाकर कई जगह नाले ढके भी गए। निगम के अनुसार अब तक करीब 3 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। मगर यह रकम नाकाफी है।
शहर के सभी नालों को पूरी तरह से ढकने के लिए लगभग 20 करोड़ रुपये की ज़रूरत है। लेकिन फिलहाल निगम के पास इतनी राशि उपलब्ध नहीं है। अधिकारी कहते हैं कि अवस्थापना निधि (Infrastructure Fund) और 15वें वित्त आयोग से बजट की मांग की गई है।
शहर के हालात
राजधानी के कई हिस्सों में नाले अब भी खुले हैं:
- अलीगंज : बेलीगारद के पास, बाल निकुंज स्कूल और सेक्टर-के के मेन रोड पर।
- गोमतीनगर विस्तार : वर्धमान खंड और हुसड़िया चौराहे के पास।
- राजभवन रोड : मुख्य मार्ग पर कई स्थानों पर नाले खुले।
ये सभी इलाके घनी आबादी वाले हैं और दिन-रात यातायात रहता है। ऐसे में किसी भी समय बड़ा हादसा हो सकता है।
बजट और राजनीति का खेल
नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि पार्षद अपने-अपने कोटे से भी नाले ढकवा सकते हैं। लेकिन इसमें उन्हें सीधा राजनीतिक लाभ नज़र नहीं आता, इसलिए काम को प्राथमिकता नहीं दी जाती। यही कारण है कि हादसे के बावजूद समस्या जस की तस बनी हुई है।
नागरिकों की नाराज़गी
स्थानीय लोगों का कहना है कि नगर निगम केवल हादसे होने के बाद सक्रिय होता है और कुछ दिन बाद काम धीमा पड़ जाता है। आम जनता सवाल कर रही है कि जब करोड़ों रुपये विभिन्न योजनाओं पर खर्च किए जा सकते हैं तो नागरिकों की जान बचाने के लिए 20 करोड़ रुपये का इंतज़ाम क्यों नहीं हो पा रहा?
निगम का तर्क
नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि बड़े और चौड़े नालों को ढकना तकनीकी और वित्तीय दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है। फिर भी प्राथमिकता के आधार पर सबसे खतरनाक जगहों को सीमेंट स्लैब से ढकने का काम चल रहा है। जैसे ही अतिरिक्त बजट मिलेगा, सभी नाले ढके जाएंगे।
⚠️ निष्कर्ष
लखनऊ में खुले नाले केवल अव्यवस्था का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि लोगों की जान के लिए सीधा खतरा बन चुके हैं। पिछले कुछ समय में हुए हादसे प्रशासन और नगर निगम की जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर रहे हैं। ज़रूरत है कि बजट और राजनीति के झमेले से ऊपर उठकर इसे तात्कालिक समस्या मानकर हल किया जाए।

 
									 
			 
			 
			