भारतीय क्रिकेट टीम और पाकिस्तान के बीच खेले जाने वाले मुकाबले हमेशा से ही सिर्फ खेल तक सीमित नहीं रहे हैं। इन मैचों में क्रिकेट के साथ-साथ राजनीतिक, कूटनीतिक और भावनात्मक परतें भी जुड़ जाती हैं। रविवार को दुबई में खेले गए एशिया कप मैच में भारत ने पाकिस्तान को सात विकेट से हराकर शानदार जीत दर्ज की, लेकिन इसके बाद जो हुआ उसने खेल जगत से लेकर राजनीति तक नई बहस छेड़ दी।
हाथ न मिलाने का मुद्दा
मैच खत्म होने के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने पाकिस्तान टीम से हाथ मिलाने से इंकार कर दिया। सामान्य परिस्थितियों में किसी मैच के बाद दोनों टीमें आपस में हाथ मिलाकर खेल भावना का परिचय देती हैं। लेकिन इस बार भारतीय खिलाड़ियों ने यह परंपरा निभाने से साफ इनकार कर दिया।
भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने साफ कहा कि यह जीत उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले में शहीद हुए भारतीयों और “ऑपरेशन सिंदूर” में शामिल सुरक्षाबलों को समर्पित की है। यानी खिलाड़ियों के हाथ न मिलाने का संदेश खेल से आगे निकलकर सीधे राष्ट्रीय भावनाओं और सुरक्षा के मुद्दे से जुड़ गया।
पाकिस्तान की तिलमिलाहट
मैदान में हार झेलने के बाद पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने इस रवैये को खेल भावना के खिलाफ बताते हुए एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) तक शिकायत दर्ज करा दी। पीसीबी प्रमुख और एसीसी चेयरमैन मोहसिन नकवी ने न सिर्फ मैच रेफरी एंडी पायक्राफ्ट को हटाने की मांग की, बल्कि यहां तक कह दिया कि अगर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो पाकिस्तान 17 सितंबर को यूएई के खिलाफ होने वाले मैच से हट जाएगा।
पाकिस्तान का कहना है कि हाथ न मिलाना आईसीसी के आचार संहिता और एमसीसी के नियमों का उल्लंघन है। उनका आरोप है कि भारत ने जानबूझकर खेल की भावना को चोट पहुंचाई है।
भारत का जवाब
भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इसमें नियम तोड़ने जैसी कोई बात नहीं है। किसी भी खेल में हाथ मिलाना अनिवार्य नहीं होता। यह पूरी तरह खिलाड़ियों का निजी फैसला होता है। दुनिया के कई खेलों में ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। भारत का साफ संदेश है कि खिलाड़ियों ने किसी भी तरह का नियम नहीं तोड़ा और यह उनका संप्रभु निर्णय था।
राजनीतिक पृष्ठभूमि
यह विवाद केवल क्रिकेट तक सीमित नहीं है। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। भारतीय टीम ने हाथ न मिलाकर यह संदेश दिया कि जब तक आतंकवाद की छाया पाकिस्तान से जुड़ी रहेगी, तब तक खेल और सामान्य रिश्ते एक साथ नहीं चल सकते। यह कदम भारत की राजनीतिक और कूटनीतिक रणनीति का विस्तार माना जा रहा है।
संभावित असर
अगर पाकिस्तान अपनी धमकी के मुताबिक एशिया कप से हटता है, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान उसे ही होगा। टूर्नामेंट से बाहर होना उसकी क्रिकेटीय साख को और कमजोर करेगा। वहीं, भारत इस मुद्दे पर अपने खिलाड़ियों और राष्ट्रीय भावनाओं के साथ मजबूती से खड़ा दिखेगा।
निष्कर्ष
भारत-पाक क्रिकेट रिश्ते लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं। दुबई के मैदान पर हाथ न मिलाने का छोटा सा फैसला एक बड़े संदेश में बदल गया है। यह सिर्फ खेल भावना का मामला नहीं बल्कि इस बात का प्रतीक है कि जब तक सीमा पार आतंकवाद की गूंज सुनाई देती रहेगी, तब तक भारत और पाकिस्तान के बीच खेल और दोस्ती की तस्वीर अधूरी ही रहेगी।