अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को H-1B वीजा प्रोग्राम के नियमों में ऐतिहासिक बदलाव करते हुए इसकी फीस को $100,000 (करीब ₹88 लाख) सालाना कर दिया है। इस फैसले से सबसे बड़ा झटका भारतीय आईटी कंपनियों और इंजीनियरों को लगा है, क्योंकि अमेरिका में H-1B पर काम करने वालों में भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा है।
📌 क्या है नया नियम?
- अब से हर H-1B वीज़ा आवेदन के लिए कंपनियों को $100,000 फीस चुकानी होगी।
- अभी तक सिर्फ $215 रजिस्ट्रेशन फीस और $780 फॉर्म फीस लगती थी।
- नया नियम छोटे बिजनेस और स्टार्टअप्स के लिए बेहद भारी साबित होगा, क्योंकि इतनी मोटी रकम चुकाना उनके लिए लगभग असंभव है।
📌 सरकार का तर्क
- ट्रंप प्रशासन का कहना है कि H-1B सिस्टम का दुरुपयोग हो रहा था।
- बड़ी कंपनियां हजारों-लाखों आवेदन डाल देती थीं, जिससे अमेरिकी युवाओं की नौकरियां छिन रही थीं।
- अब कंपनियां सिर्फ उन्हीं विदेशी कर्मचारियों को स्पॉन्सर करेंगी जिनकी स्किल्स बेहद दुर्लभ और जरूरी होंगी।
📌 भारतीयों पर असर
- अमेरिका में H-1B वीजा धारकों में 70% से ज्यादा भारतीय हैं।
- TCS, Infosys, Wipro, HCL और Cognizant जैसी भारतीय कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को अमेरिका भेजती हैं।
- अब इतनी ऊंची फीस के कारण ये कंपनियां केवल सीनियर और हाई-स्किल्ड प्रोफेशनल्स को ही अमेरिका भेज पाएंगी।
- इसका सीधा असर फ्रेशर्स और मिड-लेवल इंजीनियर्स पर पड़ेगा।
📌 क्यों उठाया यह कदम?
- अमेरिकी कंपनियां विदेशी इंजीनियरों को अक्सर $60,000 सालाना सैलरी पर रखती थीं, जबकि अमेरिकी नागरिकों को वही काम करने पर $100,000+ देना पड़ता।
- इस वजह से अमेरिका में स्थानीय कर्मचारियों को नौकरी नहीं मिल रही थी और कंपनियां कॉस्ट कटिंग के लिए विदेशियों को प्राथमिकता देती थीं।
- ट्रंप ने कहा – “H-1B अब सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए होना चाहिए जिनकी स्किल अमेरिका में दुर्लभ है।”
📌 भारत के लिए क्या मायने?
- भारत का IT एक्सपोर्ट सेक्टर अमेरिका पर सबसे ज्यादा निर्भर है।
- हर साल लाखों भारतीय इंजीनियर H-1B वीजा पर अमेरिका जाते हैं।
- अब कंपनियों की लागत बढ़ने से भारतीय इंजीनियरों के लिए अमेरिका के दरवाजे और संकरे हो सकते हैं।
- इससे भारत के टेक सेक्टर और नौकरी के अवसरों पर भी असर पड़ सकता है।
