फिल्मकार अनुराग कश्यप ने हाल ही में एक इंटरव्यू/प्रमोशनल क्लिप में उन लोगों का जमकर जवाब दिया जो उन्हें सोशल मीडिया और पब्लिक प्लेटफॉर्म पर ‘नशेड़ी’, ‘गंजेड़ी’ या ‘वासेपुर वालों’ जैसे तंज कसते हैं। अनुराग अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं और इस बार उन्होंने भी सीधी—साफ़ बात कही: जो लोग बिना वजह आरोप लगाते हैं, उनपर उन्होंने खुलकर नाराज़गी जताई।
इंटरव्यू के दौरान अनुराग ने कुछ कटु टिप्पणियों का मज़ाकिया अंदाज़ में जवाब देते हुए कहा कि उनकी बड़ी आँखें ही हैं जिनकी वजह से लोग उन्हें कुछ भी बुला देते हैं — लेकिन यह उनकी आँखों की गलती नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने उन लोगों पर भी तीखी बात कही जो उनकी फिल्मों को आलोचना करते हैं पर थिएटर में जाकर देखने की जहमत नहीं उठाते। उनका तर्क सरल था — अगर आलोचक उनकी फिल्मों को थिएटर में देखकर सपोर्ट करते तो उनकी कमाई पर फर्क पड़ता, पर वे बस बोलते रहते हैं और कभी असल समर्थन नहीं दिखाते।
“वासेपुर” और गुस्सा — क्या कहा अनुराग ने?
उनके मशहूर प्रोजेक्ट ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का ज़िक्र भी हुआ। अनुराग ने कहा कि वासेपुर से उनकी नफरत है — एक तरह का अतिशयोक्ति भरा बयान — और जो लोग बार-बार “वासेपुर वाले” जैसी टाइप की बात करते हैं, उनपर उनका गुस्सा उबल आता है। उन्होंने मज़ाकिया और तीखे लहज़े में कहा कि कई बार उनके मन में “जूता निकालकर मारने” जैसा ख्याल आता है — यह इशारा उस गहरे रोष का था जो बार-बार बिना परख के की गई टिप्पणियों से आता है।
अहम बात यह है कि यह बयान भावनात्मक स्तर पर तीखा है — अनुराग ने प्रहार किया है पर सामने वाले को वास्तविक हिंसा के लिए प्रोत्साहित करने का इरादा जाहिर नहीं किया; यह गुस्से और तंज का मेल है।
आलोचना बनाम समर्थन — अनुराग का तर्क
अनुराग ने आलोचकों के उस रवैये को भी चुनौती दी जो सिर्फ बोलते हैं और कुछ नहीं करते। उनका कहना था कि बहुत से लोग आलोचना करते हैं — “तुम्हारी फिल्म फ्लॉप है”, “तुमने कोई हिट नहीं दी” — पर वही लोग थिएटर में जाकर फिल्में नहीं देखते। अनुराग ने तर्क दिया कि आलोचना करने वालों का असर कम होता है जब वे असल में फिल्म देखकर अपना मत नहीं बनाते; असल आर्थिक और सांस्कृतिक समर्थन वही है जो दर्शक सिनेमा हॉल में जाकर देते हैं।
हाल की फिल्में और आगे की योजनाएँ
क्लिप में अनुराग ने अपनी फ़िल्मी यात्रा के बारे में भी बात की — ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी कल्ट फिल्में, और उनकी हालिया फ़िल्म ‘निशानची’ (आर्टिकल में नाम जैसा दिया गया है) का भी ज़िक्र हुआ — जो बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाई। अनुराग ने बताया कि ‘निशानची’ अब प्राइम वीडियो पर उपलब्ध है और इसका दूसरा पार्ट अगले साल शुरू में सिनेमाघरों में आएगा। साथ ही उनकी और फिल्में जैसे ‘बंदर’ (बॉबी देओल वाली) और ‘केनेडी’ का भी जिक्र रहा — कुछ रिलीज़ हो चुकी हैं, कुछ लंबित हैं।
क्या सीखने को मिला — निष्कर्ष
- अनुराग की बेबाकी वही बनी रहेगी — वे सीधे-सीधे बाकियों की निंदा करते हैं और आलोचना का सामना खुलकर करते हैं।
- आलोचना और समर्थन में फर्क समझें — आलोचना करना आसान है; पर वास्तविक समर्थन (थिएटर जाकर फिल्म देखना) मायने रखता है।
- कलात्मक स्वायत्तता पर ज़ोर — अनुराग का संदेश यह भी है कि एक निर्देशक को लगातार कटु टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए; उनका काम, उनकी भाषा और उनकी फ़िल्में उनकी पहचान हैं।
- शोखिम लेना और परिणाम स्वीकारना — हर फिल्म हिट नहीं होती; निर्देशक को इसके साथ जीना आता है — और अनुराग यह बात खुलकर मानते और बोलते हैं।
