उत्तर प्रदेश सरकार ने जातिगत भेदभाव कम करने और संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य में अब सार्वजनिक स्थानों, पुलिस रिकॉर्ड और अन्य सरकारी दस्तावेजों में नाम के साथ जाति लिखने पर पूरी तरह रोक लगाई गई है। इसके अलावा, जाति आधारित रैलियों और आयोजनों पर भी प्रतिबंध रहेगा, जिससे राजनीतिक दलों की जातीय राजनीति पर असर पड़ सकता है।
आदेश का महत्व और लागू होने का तरीका
- मुख्य सचिव दीपक कुमार ने सभी उच्च अधिकारियों, पुलिस आयुक्तों, जिला मजिस्ट्रेटों और एसएसपी/एसपी को इस फैसले की जानकारी देते हुए निर्देश जारी किए हैं।
- अब FIR, गिरफ्तारी मेमो, पुलिस रिकॉर्ड में आरोपी या गवाह की जाति नहीं लिखी जाएगी, बल्कि माता-पिता का नाम लिखा जाएगा।
- थानों के नोटिस बोर्ड, वाहनों और साइनबोर्ड से जातिगत संकेत और नारे हटाए जाएंगे।
- इंटरनेट मीडिया पर जाति आधारित सामग्री पर रोक लगाई जाएगी।
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ध्यान दें: एससी/एसटी एक्ट जैसे मामलों में आरोपियों के नाम के साथ जाति लिखने पर रोक नहीं है।
आदेश का राजनीतिक असर
- यह आदेश पंचायत चुनावों और आगामी विधानसभा चुनावों के समय लागू किया गया है।
- समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे जातीय राजनीति करने वाले दलों के लिए यह बड़ा झटका हो सकता है।
- हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधुनिक समय में तकनीकी साधन पहचान के लिए पर्याप्त हैं, इसलिए जाति का उल्लेख समाज को विभाजित करने वाला कदम है।
- हाईकोर्ट की पृष्ठभूमि
- मामला शुरू हुआ था 29 अप्रैल 2023 के एक पुलिस अभियान से, जिसमें आरोपियों की जाति दर्ज की गई थी।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 28 पेज के आदेश में कहा कि पुलिस दस्तावेजों और सार्वजनिक सूचना बोर्ड पर जाति का उल्लेख बंद किया जाए।
- अदालत ने सुझाव दिया कि पुलिस फॉर्म में पिता और मां दोनों का नाम दर्ज किया जाए और इंटरनेट पर शिकायत की आसान व्यवस्था हो।
- अदालत ने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में जाति उन्मूलन केंद्रीय एजेंडा होना चाहिए।
- निष्कर्ष
- उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम जातिगत भेदभाव समाप्त करने और संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने की दिशा में अहम है। जाति आधारित रैलियों पर रोक और सरकारी रिकॉर्ड में जाति उल्लेख न करने का निर्णय राजनीतिक दलों की रणनीतियों और समाज में सामाजिक समावेशन दोनों पर असर डालेगा।
