बिहार चुनाव 2025: ‘25 से 30 नरेंद्र-नीतीश’ बनाम ‘6 और 11 NDA नौ-दो-ग्यारह’ — नारों की जंग में चढ़ा सियासी तापमान

बिहार में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है, और जैसे ही चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान किया, राज्य का सियासी माहौल गर्म हो गया है। इस बार चुनाव दो चरणों में होंगे — 6 और 11 नवंबर को मतदान, जबकि 14 नवंबर को नतीजों का ऐलान किया जाएगा। तारीखों की घोषणा के साथ ही अब राजनीतिक दल मैदान में उतर आए हैं, और प्रचार की शुरुआत “विकास”, “स्थिरता” या “परिवर्तन” की बातों से नहीं, बल्कि नारों की जंग से हुई है।

🗳️ नारा जिसने शुरुआत की: “25 से 30, हमारे दो भाई नरेंद्र और नीतीश”

चुनाव आयोग की घोषणा के कुछ घंटे बाद ही बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा (भारतीय जनता पार्टी) ने एक नया नारा दिया —

“25 से 30, हमारे दो भाई — नरेंद्र और नीतीश।”

इस नारे का सीधा संदेश था कि 2025 से 2030 तक बिहार में एनडीए (NDA) की सरकार और नीतीश कुमार का ही नेतृत्व रहेगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ।
यह नारा बीजेपी और जेडीयू (JDU) के बीच एकता का प्रतीक बताने की कोशिश थी, ताकि जनता के बीच “स्थिरता” और “विश्वसनीयता” की छवि बनाई जा सके।

🔥 लालू यादव का पलटवार: “6 और 11, NDA नौ-दो-ग्यारह”

लेकिन राजनीति में नारे का मतलब सिर्फ़ प्रचार नहीं होता — यह तंज़ का हथियार भी बन जाता है।
आरजेडी (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने विजय सिन्हा के नारे पर तीखा जवाब दिया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (ट्विटर) पर पोस्ट किया —

“6 और 11, NDA नौ-दो-ग्यारह।”

इस नारे में तारीखों का भी दिलचस्प संदर्भ था — 6 और 11 नवंबर को ही बिहार में मतदान होना है। लालू यादव का मतलब था कि इन दोनों तारीखों के बाद एनडीए सरकार ‘नौ-दो-ग्यारह’ यानी गायब हो जाएगी।
यह तंज़ सिर्फ़ एक जवाब नहीं था, बल्कि लालू यादव की राजनीतिक शैली का हिस्सा — हास्य, व्यंग्य और सटीक हमला।

🏛️ जेडीयू का अपना नारा: “पच्चीस से तीस, फिर से नीतीश”

दरअसल, इससे पहले जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) की ओर से भी एक नारा चलाया गया था —

“पच्चीस से तीस, फिर से नीतीश।”

इस नारे के जरिए पार्टी ने यह स्पष्ट संदेश दिया था कि नीतीश कुमार ही एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा हैं और वे आगामी कार्यकाल के लिए फिर से तैयार हैं।
जेडीयू का यह नारा “स्थिरता” और “अनुभव” पर आधारित था, जो नीतीश की लंबे कार्यकाल की छवि को मजबूत करने की कोशिश करता है।

📅 छठ पूजा के बाद चुनाव: सभी दलों की मांग पूरी

चुनाव की तारीखों को लेकर एक बात पर सभी दल सहमत दिखे — कि मतदान छठ पूजा के बाद होना चाहिए।
छठ बिहार की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान से जुड़ा सबसे बड़ा पर्व है।
इसलिए सभी प्रमुख दलों — जेडीयू, आरजेडी, बीजेपी और कांग्रेस — ने चुनाव आयोग से आग्रह किया था कि चुनाव की तारीखें 25 से 28 अक्टूबर तक चलने वाले छठ पर्व के बाद रखी जाएं।
चुनाव आयोग ने यह मांग मानते हुए 6 और 11 नवंबर को मतदान का ऐलान किया।

🔍 पहले चरण में 71 सीटें, दूसरे में बाकी — 14 को नतीजे

पहले चरण में 16 जिलों की 71 विधानसभा सीटों पर 6 नवंबर को वोट डाले जाएंगे,
जबकि बाकी सीटों पर 11 नवंबर को मतदान होगा।
मतगणना 14 नवंबर को होगी, और उसी दिन तय होगा कि 2025 से 2030 तक बिहार पर किसका राज रहेगा।

📢 नारों की जंग का असर

बिहार की राजनीति में नारे सिर्फ़ शब्द नहीं, बल्कि जनता की नब्ज़ को पकड़ने का जरिया हैं।
चाहे “जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा लालू” हो या “बिहारी बनाम बाहरी”, बिहार के चुनावी इतिहास में नारे हमेशा चुनावी हवा बदलते रहे हैं।

इस बार भी “25 से 30, नरेंद्र-नीतीश” बनाम “6 और 11, NDA नौ-दो-ग्यारह” जैसी नारों की फाइट जनता के बीच माहौल बना रही है।
एक तरफ एनडीए “विकास, डबल इंजन और स्थिर सरकार” की बात कर रहा है,
वहीं विपक्ष “बदलाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार” के मुद्दे पर हमला बोल रहा है।

⚙️ सियासी समीकरण

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक,

  • जेडीयू और बीजेपी मिलकर सत्ता बचाने की रणनीति बना रहे हैं,
  • जबकि आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां जनता के असंतोष को भुनाने की कोशिश में हैं।
  • चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव जैसे नेता भी मैदान में सक्रिय हैं, जो इस चुनाव को तीसरे मोर्चे के लिए संभावित बना रहे हैं।

🗣️ अंतिम बात

बिहार में चुनावी रण का असली रंग अब दिखना शुरू हो गया है —
जहां भाषणों से ज्यादा असर नारों का है,
और गठबंधन से ज्यादा अहम जनता के मूड का।
अब देखना यह है कि 6 और 11 नवंबर को कौन-सा नारा जनता के दिल में उतरता है —
“25 से 30, नरेंद्र-नीतीश” या “NDA नौ-दो-ग्यारह”?