देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद — मुख्य न्यायाधीश (CJI) — पर जूता फेंकने की कोशिश ने देशभर में राजनीतिक और सामाजिक बहस छेड़ दी है। इस घटना को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि ऐसे असभ्य कृत्य करने वाले लोग “अहंकार और वर्चस्ववाद” के शिकार हैं, जिनकी मानसिकता समाज को बांटने की कोशिश करती है।
🗣️ “कुछ लोगों के हाथ में जाकर जूता भी अपमानित महसूस करता है” — अखिलेश यादव
अखिलेश यादव ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा:
“कुछ लोगों के हाथ में जाकर तो जूता भी अपमानित महसूस करता है। पीडीए समाज का अपमान करनेवाले ऐसे असभ्य लोग दरअसल अपने दंभ और अहंकार के मारे होते हैं।”
उन्होंने कहा कि देश में एक ऐसी मानसिकता पनप रही है जो सम्मान और मर्यादा की सीमाओं को तोड़ रही है। यह मानसिकता लोकतंत्र के लिए खतरनाक है और समाज के कमजोर वर्गों के प्रति गहरी नफरत रखती है।
⚖️ “सर्वोच्च न्यायिक पद का अपमान, लोकतंत्र की मर्यादा पर प्रहार”
सपा प्रमुख ने कहा कि देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के प्रति ऐसी हरकतें केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरी न्यायिक व्यवस्था का अपमान हैं।
उन्होंने कहा,
“जिनके भीतर प्रभुत्व की मानसिकता और वर्चस्व की बीमारी है, वे समाज में बराबरी नहीं चाहते। ऐसे लोग नफ़रत को जन्म देते हैं, जो देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए जितनी होती है, उतनी ही समाज के सबसे कमज़ोर व्यक्ति के लिए भी।”
‘पीडीए’ समाज का अपमान अब और नहीं सहेगा
अखिलेश यादव ने अपने राजनीतिक और सामाजिक एजेंडा ‘पीडीए’ (पीड़ित, दुखी, अपमानित) का ज़िक्र करते हुए कहा कि अब यह समाज चुप नहीं रहेगा।
उन्होंने कहा —
“पीडीए समाज की उदारता और भलमनसाहत 5000 सालों से ऐसे लोगों को माफ़ करती आई है, लेकिन इस हद तक अपमान के बाद अब पीडीए समाज और नहीं सहेगा।”
यह बयान अखिलेश की उस राजनीतिक लाइन से जुड़ा है जिसमें वे ‘पीडीए बनाम प्रभुत्ववादी वर्ग’ के संघर्ष को केंद्र में रख रहे हैं — यानी यह सिर्फ़ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक आंदोलन का भी हिस्सा बन चुका है।
🔥 भाजपा पर तीखा हमला: “सत्ता के अंतिम दौर में हैं भाजपाई”
इस घटना के बहाने अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके सहयोगियों पर भी सीधा हमला बोला।
उन्होंने कहा —
“भाजपा और उसके संगी-साथी अपनी सत्ता के अंतिम दौर में हैं। उनकी भ्रष्ट चुनावी साज़िश का भंडाफोड़ हो चुका है, वो अब कभी नहीं जीतेंगे। हताशा में ऐसे कुकृत्य कर रहे हैं।”
सपा प्रमुख ने दावा किया कि देश की 90% आबादी अब अपने हक़ और अधिकारों को लेकर जाग चुकी है।
“जब आबादी का 90% हिस्सा अपने हक़ के लिए उठ खड़ा हो जाए, तो 10% का घमंड और सिंहासन अब टिकने वाला नहीं है।”
⚖️ “यह दौर अपमान बनाम सम्मान का संघर्ष है”
अखिलेश यादव ने कहा कि भारत के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास में यह दौर केवल सत्ता का नहीं, बल्कि सम्मान बनाम अपमान के संघर्ष का है।
उन्होंने कहा —
“यह संघर्ष केवल सत्ता पाने का नहीं, बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति के सम्मान को बहाल करने का है जिसे सालों तक अपमानित किया गया। पीडीए अपने स्वाभिमान और स्वमान की इस लड़ाई को निर्णायक रूप से जीतेगा।”
🔍 पृष्ठभूमि: क्या है पूरा मामला
हाल ही में एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान जूता फेंकने की कोशिश की, हालांकि सुरक्षाकर्मियों ने उसे तुरंत काबू कर लिया और कोई नुकसान नहीं हुआ।
घटना के बाद सभी राजनीतिक दलों ने इसे “लोकतंत्र की मर्यादा के खिलाफ” बताया।
हालांकि, विपक्ष ने इसे “सत्ता के प्रति बढ़ती नाराजगी का प्रतीक” भी कहा, जबकि सत्ता पक्ष ने इसे “राजनीतिक साजिश” करार दिया।
🧭 अखिलेश के बयान के राजनीतिक मायने
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव इस घटना को केवल नैतिक मुद्दे के रूप में नहीं देख रहे, बल्कि इसे सामाजिक न्याय बनाम अहंकार के नैरेटिव से जोड़ रहे हैं।
‘जूता फेंकने’ जैसे प्रतीकात्मक घटनाक्रम का इस्तेमाल वे यह दिखाने के लिए कर रहे हैं कि सत्ता का अहंकार अब असहनीय हो चुका है — और यही संदेश वे जनता तक पहुंचाना चाहते हैं।
🗣️ अंतिम बात
इस बयान से यह साफ़ है कि अखिलेश यादव ने इस घटना को सिर्फ़ निंदा करने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे राजनीतिक-वैचारिक लड़ाई के रूप में पेश किया है।
“जूता” यहां प्रतीक बन गया है —
उस समाज के अपमान का,
जिसके सम्मान के लिए अखिलेश “पीडीए” का झंडा उठा रहे हैं।
अब सवाल यह है कि क्या इस बयान से अखिलेश यादव की “सम्मान बनाम अपमान” की राजनीति को नई ताकत मिलेगी —
या यह सिर्फ़ एक और चुनावी बयान बनकर रह जाएगा।
