उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव का आधिकारिक फेसबुक पेज शुक्रवार शाम अचानक ब्लॉक कर दिया गया, जिससे सोशल मीडिया और सियासी गलियारों में हलचल मच गई।
इस पेज के 80 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं और यह पार्टी की डिजिटल मौजूदगी का सबसे बड़ा माध्यम माना जाता है।
🔹 ब्लॉक होने के पीछे की वजह — फेसबुक की नीति, न कि सरकार का हस्तक्षेप
सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह कार्रवाई फेसबुक की कम्युनिटी गाइडलाइंस के तहत की गई थी। बताया गया कि पेज पर एक “हिंसक और अश्लील सामग्री वाली पोस्ट” अपलोड की गई थी, जो प्लेटफॉर्म की पॉलिसी का उल्लंघन करती थी।
फेसबुक की तरफ से यह कदम स्वचालित मॉनिटरिंग सिस्टम और रिपोर्टिंग प्रोटोकॉल के तहत उठाया गया, न कि किसी सरकारी आदेश पर।
🔹 सपा का आरोप — ‘लोकतंत्र पर हमला’ और ‘अघोषित इमरजेंसी’
दूसरी तरफ, समाजवादी पार्टी ने इस कार्रवाई को राजनीतिक साजिश बताया।
सपा प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने बयान जारी कर कहा:
“देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फेसबुक अकाउंट सस्पेंड करना लोकतंत्र पर सीधा हमला है। भाजपा सरकार ने देश में अघोषित इमरजेंसी लगा दी है, जहां हर विरोधी आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।”
कई सपा नेताओं ने सोशल मीडिया पर सरकार और फेसबुक दोनों पर “डिजिटल सेंसरशिप” का आरोप लगाया।
🔹 मेटा (फेसबुक) के हस्तक्षेप के बाद अकाउंट हुआ बहाल
शनिवार सुबह करीब 10 बजे अखिलेश यादव का फेसबुक पेज फिर से एक्टिवेट कर दिया गया।
जानकारी के मुताबिक, सपा की आईटी सेल ने फेसबुक इंडिया और मेटा के ग्लोबल हेडक्वार्टर को तुरंत मेल भेजा था।
समीक्षा के बाद फेसबुक ने पाया कि मामला “टेक्निकल रिपोर्टिंग” या “नीति-आधारित अस्थायी ब्लॉकिंग” से जुड़ा था।
अकाउंट के बहाल होते ही अखिलेश यादव के पुराने पोस्ट, वीडियो और पब्लिक इवेंट अपडेट्स फिर से दिखाई देने लगे।
🔹 राजनीतिक विश्लेषण — सोशल मीडिया पर सेंसरशिप की बहस दोबारा तेज
इस घटना ने सोशल मीडिया पर एक बड़ा प्रश्न खड़ा किया है —
क्या राजनीतिक नेताओं की डिजिटल उपस्थिति टेक कंपनियों के नियंत्रण में है?
क्या प्लेटफॉर्म्स को यह अधिकार होना चाहिए कि वे जनप्रतिनिधियों के पेज को एकतरफा ब्लॉक कर सकें, भले ही अस्थायी रूप से?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना केवल तकनीकी नहीं, बल्कि डिजिटल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाती है।
🔹 पृष्ठभूमि: सपा और डिजिटल मीडिया का रिश्ता
अखिलेश यादव पिछले कई वर्षों से अपने फेसबुक, एक्स (ट्विटर) और यूट्यूब चैनलों के माध्यम से जनता से सीधे संवाद करते हैं।
उनका पेज पार्टी की डिजिटल कैंपेनिंग और रीयल-टाइम कम्युनिकेशन का प्रमुख माध्यम रहा है।
ऐसे में पेज का अचानक ब्लॉक होना सपा के लिए एक बड़ा झटका माना गया।
🗣️ निष्कर्ष — डिजिटल लोकतंत्र की चुनौती
यह पूरा मामला भारत में राजनीति और टेक्नोलॉजी के टकराव का प्रतीक बन गया है।
जहाँ एक तरफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स अपने एल्गोरिदमिक नियमों और नीतियों का पालन करते हैं, वहीं राजनीतिक दल इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला मानते हैं।
अखिलेश यादव का अकाउंट भले ही बहाल हो गया हो, लेकिन इस घटना ने यह सवाल ज़रूर खड़ा कर दिया है कि क्या भारत का डिजिटल लोकतंत्र वास्तव में उतना स्वतंत्र है जितना वह दिखता है।
