जन सुराज की पहली सूची से बिहार में सियासी भूचाल — बीजेपी की 18 सीटों पर खतरे की घंटी, प्रशांत किशोर की रणनीति बनी ‘गेम चेंजर’

बिहार की राजनीति में एक नई हलचल शुरू हो गई है। प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की अगुवाई वाली जन सुराज पार्टी (Jasupa) ने जैसे ही अपनी पहली उम्मीदवार सूची जारी की, कई राजनीतिक दलों, ख़ासकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के भीतर बेचैनी बढ़ गई है।

इस सूची में शामिल 18 विधानसभा सीटों ने कई मौजूदा विधायकों की नींद उड़ा दी है, क्योंकि जसुपा ने ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जो न केवल स्थानीय स्तर पर मज़बूत हैं, बल्कि भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक में भी सेंध लगाने की स्थिति में हैं।

🔹 कहां-कहां बीजेपी के लिए बढ़ीं मुश्किलें

रिपोर्ट के अनुसार, जसुपा की सूची में बिहार के प्रमुख क्षेत्र —
मुजफ्फरपुर, दरभंगा, गोपालगंज, कुम्हरार, सोनपुर, आरा, प्राणपुर — जैसे निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं।
इनमें से अधिकांश सीटें ऐसी हैं जहाँ भाजपा ने 2020 के विधानसभा चुनावों में बेहद कम अंतर से जीत हासिल की थी।

उदाहरण के तौर पर —

विधानसभा क्षेत्र 2020 विजेता हारने वाला उम्मीदवार जीत का अंतर
गोपालगंज कुसुम देवी (भाजपा) मोहर गुप्ता 2183 मत
दरभंगा ग्रामीण ललित यादव (राजद) डॉ. फराज फातमी 2141 मत
प्राणपुर निशा सिंह (भाजपा) तौकिर आलम 2972 मत
आरा अमरेंद्र प्रताप सिंह (भाजपा) कयामुद्दीन अंसारी 3002 मत
सोनपुर रामानुज यादव (राजद) विनय सिंह (भाजपा) 6686 मत

इन इलाकों में जसुपा ने प्रभावशाली और सामाजिक रूप से सक्रिय चेहरों को उतारा है — जो भाजपा और जदयू दोनों के लिए नई चुनौती बनकर उभरे हैं।

🔹 जसुपा की रणनीति: ‘सिस्टम बदलो’ और ‘स्थानीय नेतृत्व’ पर फोकस

प्रशांत किशोर की पार्टी ने उम्मीदवार चयन में युवा, शिक्षित और सामाजिक रूप से सक्रिय चेहरों को प्राथमिकता दी है।
साथ ही, जसुपा के चुनाव अभियान का मुख्य नारा है —

“जनता का शासन, जनता के बीच से नेतृत्व।”

उनकी ‘जनसंवाद यात्रा’ और ‘सिस्टम बदलने’ का संदेश बिहार के युवाओं और मध्यम वर्ग के बीच गहराई से असर छोड़ रहा है।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जसुपा इस बार भले ही अधिक सीटें न जीते, लेकिन वोटों का समीकरण बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा सकती है।

🔹 बीजेपी के वोट बैंक में सेंध की आशंका

जसुपा के कई प्रत्याशी सीधे भाजपा के परंपरागत समर्थक वर्गों — खासकर शहरी मध्यवर्ग, पिछड़ा वर्ग और युवा वोटरों — को टारगेट कर रहे हैं।
जहाँ भाजपा ने पिछली बार मामूली अंतर से जीत हासिल की थी, वहाँ अब मुकाबला त्रिकोणीय (तीन-तरफा) होता दिख रहा है।

उदाहरण के तौर पर:

  • दरभंगा सीट से जसुपा ने पूर्व डीजी आरके मिश्र को उतारा है, जो प्रशासनिक साख और जनसंपर्क दोनों में मज़बूत माने जाते हैं।
  • गोपालगंज सीट पर जसुपा ने डॉ. शशि शेखर सिन्हा को टिकट दिया है, जिससे पूर्व मंत्री स्वर्गीय सुभाष सिंह की पत्नी और मौजूदा विधायक कुसुम देवी की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

🔹 राजनीतिक विश्लेषकों की राय

विश्लेषक मानते हैं कि प्रशांत किशोर की रणनीति लॉन्ग-टर्म गेम है।
उनका लक्ष्य सिर्फ सीट जीतना नहीं, बल्कि राजनीतिक स्पेस बनाना है।
यदि जसुपा भाजपा के वोट में 5-7% की भी सेंध लगाती है, तो कई सीटों पर विपक्षी गठबंधन (महागठबंधन) को अप्रत्याशित लाभ मिल सकता है।

राजनीतिक टिप्पणीकार अरुण मिश्रा के अनुसार,

“प्रशांत किशोर की ताकत उनके माइक्रो लेवल डेटा और लोकल कनेक्ट में है।
भाजपा को अब हर सीट पर दो नहीं, तीन मोर्चों पर लड़ाई लड़नी होगी।”

🔹 बीजेपी की प्रतिक्रिया

भाजपा नेताओं ने हालांकि जन सुराज पार्टी के प्रभाव को सीमित बताया है।
राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा:

“प्रशांत किशोर सोशल मीडिया और मीडिया में सक्रिय हैं, ज़मीनी स्तर पर नहीं।
जनता प्रधानमंत्री मोदी के विकास एजेंडे पर भरोसा करती है, और भाजपा संगठन के बूते पर चुनाव लड़ेगी।”

लेकिन ज़मीनी समीकरण बताते हैं कि कई सीटों पर जसुपा किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है।

🔹 निष्कर्ष — बिहार में 2025 की जंग होगी तीन तरफा

जन सुराज पार्टी की पहली सूची ने साफ़ संकेत दे दिया है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 सिर्फ भाजपा बनाम महागठबंधन की लड़ाई नहीं रहने वाली।
अब मैदान में तीसरा मोर्चा भी मज़बूती से उतर चुका है — जो सत्ता के दोनों खेमों की रणनीतियों को नए सिरे से परिभाषित करेगा।