महाराष्ट्र में हिंदी बनाम मराठी भाषा विवाद एक बार फिर से सियासी गर्मी का मुद्दा बन गया है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने शुक्रवार को मीरा-भायंदर की एक रैली में आक्रामक रुख अपनाते हुए राज्य के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के फैसले का कड़ा विरोध किया। उन्होंने चेतावनी दी,
“अगर पहली से पाँचवीं तक हिंदी पढ़ाना अनिवार्य किया गया, तो हम स्कूल बंद कर देंगे।”
💬 राज ठाकरे का तीखा बयान
राज ठाकरे ने कहा:
“मैं किसी भाषा का विरोधी नहीं हूं, लेकिन हिंदी जबरन नहीं थोपी जा सकती। अगर इस ज़मीन पर किसी का हक़ है, तो वो मराठियों का है। तुम महाराष्ट्र के बेटे हो, बाकी लोग बाहर से आए हैं। अगर कोई ज़्यादती करे, तो उसकी पिटाई कर दो।”
उनका यह बयान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के उस बयान के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “राज्य के स्कूलों में किसी भी कीमत पर हिंदी पढ़ाई जाएगी।”
🤝 राज-उद्धव की एकजुटता
इस मुद्दे पर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने 20 साल बाद मंच साझा किया। राज्य सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले के खिलाफ संयुक्त मार्च निकालने की योजना थी, लेकिन राज्य सरकार ने फैसला वापस ले लिया।
इसके बाद विजय रैली के मंच से दोनों नेताओं ने मराठी अस्मिता की एकजुटता दिखाई।
🗣️ उद्धव ठाकरे का बयान
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा:
“हम किसी भाषा के विरोधी नहीं हैं, लेकिन ज़बरदस्ती मंज़ूर नहीं। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, और इसके महत्व को कम करने की कोशिश हो रही है। जो कोई भी मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की कोशिश करेगा, मैं उसके टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा।”
📌 विश्लेषण:
इस पूरे विवाद ने एक बार फिर मराठी अस्मिता, भाषायी पहचान, और राज्य की राजनीति में भाषा के मुद्दे को केंद्र में ला दिया है।
जहाँ एक ओर कुछ नेता इसे संस्कृति की रक्षा मान रहे हैं, वहीं आलोचक इसे राजनीतिक ध्रुवीकरण का प्रयास बता रहे हैं।