दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव (DUSU Election 2025) के नतीजे आज शाम तक आ जाएंगे। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि आखिर इस पद को लेकर इतनी मारामारी क्यों होती है?
DUSU अध्यक्ष की भूमिका और महत्व
दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ का अध्यक्ष सिर्फ कॉलेज स्तर पर काम करने वाला प्रतिनिधि नहीं होता, बल्कि यह पद राष्ट्रीय राजनीति की नर्सरी कहा जाता है।
- छात्रों की आवाज: अध्यक्ष यूनिवर्सिटी प्रशासन और सरकार के सामने छात्रों की समस्याओं को उठाता है।
- राजनीतिक कद का मंच: शिक्षा नीति, हॉस्टल, फीस, सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अध्यक्ष खुलकर बोलता है और बड़े नेताओं की नजर में आता है।
- मीडिया और पहचान: अध्यक्ष का नाम, बयान और तस्वीरें लगातार मीडिया में रहती हैं। यह उसे राजनीति या सामाजिक जीवन में पहचान दिलाता है।
DUSU अध्यक्ष को क्या-क्या मिलता है?
- नाम और नेटवर्किंग: यूनिवर्सिटी-स्तर पर बड़ी पहचान और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से संपर्क।
- लीडरशिप अनुभव: चुनाव जीतने और अध्यक्ष पद पर काम करने से संगठन, कैंपेनिंग, पब्लिक स्पीकिंग और प्रशासनिक अनुभव मिलता है।
- ऑफिस और रिसोर्सेस: वेतन तो नहीं मिलता, लेकिन ऑफिस, संपर्क अधिकार और संसाधनों की सुविधा मिलती है।
चुनाव में इतनी मारामारी क्यों होती है?
- राजनीतिक दलों की दखल: ABVP, NSUI और वामपंथी संगठनों की गहरी भागीदारी होती है। छात्र राजनीति इन्हीं दलों के लिए भविष्य के नेताओं को तैयार करती है।
- पैसा और प्रचार: सोशल मीडिया कैंपेन, पोस्टर-बैनर, प्रिंट-ऑनलाइन प्रचार में लाखों खर्च होते हैं। इस बार ‘1 लाख रुपये बॉन्ड’ और दीवारों पर पोस्टर लगाने की मनाही भी विवाद का हिस्सा रही।
- विवाद और पारदर्शिता के सवाल: EVM इंक विवाद, बैलेट पेपर की गड़बड़ियां और चुनावी धांधली के आरोप छात्रों में अविश्वास पैदा करते हैं।
छात्र राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति तक का सफर
दिल्ली यूनिवर्सिटी से अतीत में कई बड़े नेता निकले हैं—अरुण जेटली, अजय माकन, विजय गोयल, अलका लांबा जैसे नाम DUSU चुनाव से ही राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे। यही वजह है कि यह चुनाव महज कैंपस की लड़ाई नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीति की तैयारी मानी जाती है।