बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की सुप्रीमो मायावती लंबे अंतराल के बाद 09 अक्टूबर को लखनऊ में एक मेगा रैली करने जा रही हैं। यह रैली न केवल कांशीराम की पुण्यतिथि पर राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन होगी बल्कि इसे बीएसपी के कमबैक प्लान का शुरुआती बिंदु भी माना जा रहा है।
🔹 क्यों है यह रैली खास?
- 4 साल बाद बड़ी रैली: 2021 के बाद से मायावती ने कोई बड़ा जनसमूह संबोधित नहीं किया।
- लक्ष्य – 2 लाख की भीड़: कार्यकर्ताओं को “लखनऊ चलो” का नारा दिया गया है।
- 2027 चुनाव फोकस: यह रैली बीएसपी की 2027 विधानसभा चुनाव रणनीति का हिस्सा है।
🔹 बीएसपी की मौजूदा चुनौतियां
- वोट शेयर गिरावट: 2007 में 30% से घटकर 2022 में सिर्फ 13%।
- सीटें: 2007 में पूर्ण बहुमत → 2017 में 19 → 2022 में सिर्फ 1।
- वोट बैंक का बिखराव: दलित वोटरों का बड़ा हिस्सा अब बीजेपी और सपा में चला गया है।
- नेतृत्व संकट: दूसरे पंक्ति के नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, ग्राउंड नेटवर्क कमजोर है।
🔹 मायावती का कमबैक प्लान
- कार्यकर्ताओं की ऊर्जा बढ़ाना – बड़े जनसमूह से कार्यकर्ताओं का मनोबल उठाना।
- दलित-मुस्लिम-ओबीसी गठजोड़ – पारंपरिक वोट बैंक को जोड़ना और नई रणनीति बनाना।
- आकाश आनंद की एंट्री – भतीजे को राष्ट्रीय समन्वयक बनाकर नई पीढ़ी को आगे लाना।
- स्थानीय मुद्दे – पंचायत चुनावों में सक्रियता और दलित अत्याचार जैसे विषयों को उभारना।
- नई छवि गढ़ना – बीजेपी की “बी टीम” की छवि से निकलकर खुद को विपक्षी ध्रुव साबित करना।
🔹 रैली के असर पर सवाल
- शॉर्ट टर्म: विशेषज्ञ मानते हैं कि इस रैली से तुरंत बड़ा बदलाव नहीं होगा क्योंकि चुनाव अभी दूर हैं।
- लॉन्ग टर्म: लगातार सक्रियता और ग्रासरूट नेटवर्क को पुनर्जीवित करने पर ही मायावती की राजनीति में नई जान आ सकती है।
- आकाश आनंद: उनके लिए जनता के बीच लोकप्रियता बनाना अभी बड़ी चुनौती है।
🔹 मायावती का राजनीतिक सफर
- 1980: कांशीराम से मुलाकात, राजनीति में प्रवेश।
- 1989: पहली बार विधायक चुनी गईं।
- 1995: पहली बार मुख्यमंत्री बनीं (6 महीने)।
- 1997 और 2002-03: फिर से सीएम (भाजपा गठबंधन के साथ)।
- 2007-2012: पूर्ण बहुमत से सरकार, पूरा कार्यकाल।
- 2012 के बाद: लगातार गिरावट, अब ‘कमबैक’ की कोशिश।
