नई दिल्ली: कथा वाचकों और धर्मगुरुओं द्वारा महिलाओं के पहनावे और आचरण को लेकर दिए गए बयानों की श्रृंखला में अब साध्वी ऋतंभरा का नाम भी जुड़ गया है। अपने एक प्रवचन में उन्होंने रील बनाने वाली और आधुनिक पहनावे वाली लड़कियों को लेकर कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है और तीखी आलोचना का केंद्र बन गया है।
🧕 साध्वी ऋतंभरा ने क्या कहा?
साध्वी ऋतंभरा ने प्रवचन में कहा:
“शर्म आती है जब लड़कियाँ गंदे ठुमके लगाकर, गंदे गाने गाकर पैसा कमाती हैं। नग्न होकर पैसे कमाने की ये प्रवृत्ति उनके पिता और पति कैसे बर्दाश्त करते हैं? गंदी कमाई घर में आती है तो पितर लोक में तड़पने लगते हैं।”
उन्होंने लड़कियों से ‘मर्यादित जीवन’ जीने की नसीहत देते हुए यह भी कहा कि:
“तुम राक्षसों के घर देवता जन्म देती हो। अगर तुम न चाहो तो ऋषि के घर रावण जन्म लेता है।”
🔥 पूर्व में भी विवादों में रहे धर्मगुरु
📍 प्रेमानंद जी महाराज:
वृंदावन के प्रेमानंद जी महाराज ने हाल ही में कहा था कि:
“जब चार होटल का खाना खाओगे तो घर का खाना अच्छा नहीं लगेगा। जब स्त्री चार पुरुषों से संबंध रखेगी तो वह पति से संतुष्ट नहीं रहेगी।”
उन्होंने आधुनिक पहनावे, डेटिंग और ब्रेकअप को “व्यभिचार की आदत” बताया था।
📍 अनिरुद्धाचार्य:
कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने भी हाल में एक प्रवचन में महिलाओं की उम्र और संबंधों को लेकर अशोभनीय टिप्पणी की थी। विवाद बढ़ने पर उन्होंने माफी मांगी और सफाई दी कि उनका इरादा महिलाओं का अपमान करने का नहीं था।
🧭 क्या यह धार्मिक चेतावनी या स्त्रीविरोधी सोच है?
इन बयानों पर समाज में तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों का कहना है कि:
“धार्मिक मंच अब महिलाओं की गरिमा पर हमले का माध्यम बनते जा रहे हैं। प्रवचन के नाम पर चरित्र पर शक करना, पहनावे पर टिप्णी करना और स्त्रियों को ‘पतन’ का कारण बताना समाज को पीछे की ओर धकेल रहा है।”
⚖️ कानूनी दृष्टिकोण क्या कहता है?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 महिलाओं को बराबरी, गरिमा और निजता का अधिकार देता है। ऐसे बयानों को यदि सार्वजनिक भड़काऊ, अपमानजनक या अभद्र भाषण की श्रेणी में माना जाए, तो आईटी एक्ट, आईपीसी की धारा 295A, 509 जैसे प्रावधान लागू हो सकते हैं।
📌 विश्लेषण: धर्म के मंच से समाज को दिशा या उलझन?
“प्रवचन और प्रचार के बीच की रेखा तब धुंधली हो जाती है, जब मंच से समाज को सुधारने के बजाय किसी वर्ग को अपमानित किया जाए।”
साध्वी ऋतंभरा, प्रेमानंदजी या अनिरुद्धाचार्य जैसे वक्ताओं के शब्द लाखों लोगों तक पहुँचते हैं — ऐसे में सवाल उठता है:
क्या उनके वक्तव्यों की कोई सामाजिक ज़िम्मेदारी है?