आगरा के फिरोजाबाद जिले में एक आठ वर्षीय मासूम बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या की गई। इस मामले में फिरोजाबाद की पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस) अदालत ने त्वरित और कठोर कार्रवाई करते हुए मुख्य आरोपी, एक 19 वर्षीय युवक, को ‘आखिरी सांस तक’ आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके साथ ही, अपराध को छिपाने में संलिप्त उसके माता-पिता और 22 वर्षीय भाई को सात-सात वर्ष की कैद और जुर्माने की सजा दी गई। यह मामला न केवल अपनी क्रूरता के कारण चर्चा में है, बल्कि इसकी त्वरित कानूनी प्रक्रिया के लिए भी उल्लेखनीय है, जिसमें जांच से लेकर सजा तक की प्रक्रिया मात्र 44 दिनों में पूरी हुई। आइए, इस घटना, जांच, कानूनी प्रक्रिया, और सजा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।
घटना का विवरण
घटना जून 2025 में फिरोजाबाद में हुई। पीड़िता, एक आठ वर्षीय बच्ची, हाथरस की रहने वाली थी और चौथी कक्षा की छात्रा थी। वह गर्मी की छुट्टियों के दौरान अपनी नानी के घर फिरोजाबाद आई हुई थी। बच्ची अपनी नानी के घर के बाहर खेल रही थी, जब वह अचानक लापता हो गई। अतिरिक्त जिला शासकीय अधिवक्ता (एडीजीसी) अवधेश भारद्वाज के अनुसार, जांच में पता चला कि उस दिन पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति ने बच्ची को पास की दुकान से खाना खरीदने के लिए भेजा था। यहीं से अपराध की शुरुआत हुई।
अपराध और मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी
पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच शुरू की। जांच के दौरान, पुलिस को मुख्य आरोपी, 19 वर्षीय युवक, पर शक हुआ। एक मुठभेड़ के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उसके पास से एक अवैध हथियार और बच्ची के गले की चेन बरामद हुई, जो अपराध से उसका सीधा संबंध दर्शाती थी। पूछताछ में आरोपी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और पुलिस को अपने घर ले गया। वहां, ईंटों के ढेर के नीचे छिपाई गई एक बोरी से बच्ची का शव बरामद हुआ। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और पुलिस जांच से पता चला कि बच्ची के साथ बलात्कार किया गया था और उसकी गला घोंटकर हत्या की गई थी।
परिवार की संलिप्तता
जांच में यह भी सामने आया कि मुख्य आरोपी ने इस जघन्य अपराध को अकेले नहीं किया था। शव को छिपाने और अपराध को दबाने में उसके माता-पिता और 22 वर्षीय भाई ने भी उसका साथ दिया। अपराध की गंभीरता को कम करने और सबूत मिटाने के लिए उन्होंने शव को बोरे में भरकर ईंटों के ढेर के नीचे छिपाया। इस संलिप्तता के आधार पर पुलिस ने तीनों को भी गिरफ्तार कर लिया।
कानूनी कार्रवाई और आरोप
चारों आरोपियों—मुख्य आरोपी, उसके माता-पिता, और भाई—के खिलाफ पोक्सो एक्ट, 2012 के तहत मामला दर्ज किया गया। इसके अतिरिक्त, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 65-2 (16 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग के साथ बलात्कार) और धारा 66 (हत्या) के तहत भी आरोप लगाए गए। पोक्सो एक्ट बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए बनाया गया एक विशेष कानून है, जो नाबालिगों के खिलाफ अपराधों में कठोर सजा और त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करता है। इस मामले में, अपराध की जघन्यता और बच्ची की कम उम्र को देखते हुए, पुलिस और अभियोजन पक्ष ने इसे प्राथमिकता दी।
त्वरित जांच और सुनवाई
इस मामले की सबसे उल्लेखनीय बात इसकी त्वरित कानूनी प्रक्रिया थी। पुलिस ने बताया कि बच्ची के लापता होने की शिकायत दर्ज होने से लेकर सजा के ऐलान तक पूरी प्रक्रिया में केवल 44 दिन लगे। इसमें से मुकदमे की सुनवाई मात्र 25 दिनों में पूरी हुई। यह पोक्सो एक्ट के तहत गठित विशेष अदालतों की प्रभावशीलता को दर्शाता है, जो ऐसे मामलों में तेजी से फैसले सुनाने के लिए बनाई गई हैं। जांच दल ने साक्ष्य संकलन, गवाहों के बयान, और फॉरेंसिक सबूतों को समयबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला मजबूत हुआ।
अदालत का फैसला
विशेष पोक्सो अदालत के न्यायाधीश मुमताज अली ने बुधवार, 30 जुलाई 2025, को फैसला सुनाया। सभी चारों आरोपियों को दोषी पाया गया। सजा के विवरण निम्नलिखित हैं:
- मुख्य आरोपी (19 वर्षीय युवक): बलात्कार और हत्या के लिए ‘आखिरी सांस तक’ आजीवन कारावास, साथ ही 1.4 लाख रुपये का जुर्माना। यह सजा इस बात को दर्शाती है कि उसे जीवन भर जेल में रहना होगा, बिना पैरोल या रिहाई की संभावना के।
- माता-पिता और भाई (22 वर्षीय): अपराध छिपाने और सबूत मिटाने के लिए सात-सात वर्ष की कैद, साथ ही प्रत्येक पर 20,000 रुपये का जुर्माना।
जुर्माने की राशि आमतौर पर पीड़ित के परिवार को मुआवजे के रूप में दी जाती है या कानूनी प्रक्रिया के खर्चों में उपयोग होती है।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
यह मामला कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
- त्वरित न्याय: 44 दिनों में जांच से सजा तक की प्रक्रिया पूरी होना भारतीय न्याय प्रणाली में पोक्सो अदालतों की दक्षता को दर्शाता है। यह अन्य जघन्य अपराधों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित करता है।
- कठोर सजा: मुख्य आरोपी को आजीवन कारावास और परिवार के अन्य सदस्यों को सजा देना समाज को यह संदेश देता है कि नाबालिगों के खिलाफ अपराध और उनकी सहायता करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।
- पारिवारिक संलिप्तता: इस मामले में परिवार के सदस्यों की भागीदारी विशेष रूप से परेशान करने वाली है। यह दर्शाता है कि सामाजिक जागरूकता और नैतिकता की कमी कितनी गंभीर हो सकती है।
- बच्चों की सुरक्षा: यह घटना बच्चों की सुरक्षा, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, पर सवाल उठाती है। माता-पिता और समुदाय को बच्चों की निगरानी और सुरक्षित वातावरण प्रदान करने की जरूरत पर बल देती है।