लखनऊ। सहारा सिटी पर लखनऊ नगर निगम के कब्जे को लेकर शुरू हुआ विवाद अब हाईकोर्ट पहुंच गया है। बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सहारा इंडिया कॉमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और नगर निगम दोनों से 30 अक्तूबर तक जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि मामले में विस्तृत विचार की आवश्यकता है।
🏛️ क्या है मामला?
सहारा ने अपनी याचिका में नगर निगम द्वारा सहारा सिटी (सहारा शहर) में लीज पर दी गई जमीनों और उन पर बनी संपत्तियों में हस्तक्षेप को चुनौती दी है। सहारा का कहना है कि नगर निगम ने मनमाने ढंग से कार्रवाई की, जबकि इस मामले में पहले से ही सिविल कोर्ट का स्थगन आदेश लागू है।
कंपनी ने यह भी बताया कि आर्बिट्रेशन कार्यवाही के दौरान नगर निगम को लीज एग्रीमेंट बढ़ाने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन इस पर अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया।
⚖️ कोर्ट की सख्त टिप्पणी और निर्देश
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में विस्तृत जवाब की आवश्यकता है। अदालत ने नगर निगम और राज्य सरकार दोनों को 30 अक्तूबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
इसके साथ ही, कोर्ट ने सहारा सिटी परिसर में मौजूद मवेशियों को कान्हा उपवन शिफ्ट करने और उनकी समुचित देखभाल सुनिश्चित करने के भी आदेश दिए हैं।
🏗️ सहारा का पक्ष
सहारा की ओर से कहा गया कि 1994 और 1995 में गोमतीनगर क्षेत्र में नगर निगम ने जमीन पट्टे पर दी थी, जिस पर 2,480 करोड़ रुपये की लागत से 87 आवासीय और वाणिज्यिक संपत्तियां विकसित की गईं।
कंपनी का दावा है कि नगर निगम ने बिना उचित नोटिस और बिना सुनवाई का अवसर दिए कार्रवाई की है।
🧾 नगर निगम का पक्ष
वहीं, नगर निगम ने कोर्ट में कहा कि सहारा ने 1994 की लीज की शर्तों का उल्लंघन किया है। इसी कारण 2020 और 2025 में नोटिस जारी किए गए।
निगम के अनुसार, सुनवाई का मौका देने के बाद ही निर्धारित प्रक्रिया के तहत सीलिंग की कार्रवाई की गई।
🔍 आगे क्या होगा?
अब इस पूरे मामले में 30 अक्तूबर को अगली सुनवाई होगी। कोर्ट ने नगर निगम और राज्य सरकार दोनों से इस तारीख तक अपना विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है।
तब तक सहारा सिटी में किसी नई कार्रवाई पर रोक नहीं लगाई गई है, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि मामला कानूनी समीक्षा के अधीन रहेगा।
