“तुषार मेहता बोले – ये सिर्फ दंगा नहीं, देश तोड़ने की साजिश थी; उमर-शरजील की जमानत पर रोक की मांग”

2020 दिल्ली दंगों के कथित मास्टरमाइंड उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा और अन्य की जमानत याचिकाओं पर दिल्ली हाईकोर्ट में अहम सुनवाई हुई। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन याचिकाओं का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह कोई सामान्य दंगा नहीं, बल्कि एक गहरी और सुनियोजित साजिश थी, जिसका मकसद था देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करना और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि को धूमिल करना।

कोर्ट में क्या बोले तुषार मेहता?

“यह राष्ट्र-विरोधी मुहिम दिल्ली की राजधानी से शुरू की गई थी, जो पूरे देश में प्रभाव डालने वाली थी। ये लोग देश को धार्मिक आधार पर बांटना चाहते थे।”

*उन्होंने कहा कि जेल में लंबी हिरासत जमानत का आधार नहीं हो सकती।

*दंगों की साजिश व्हाट्सऐप ग्रुप्स और आपसी संवाद के जरिए रची गई।

*शरजील इमाम द्वारा दिए गए एक भाषण का जिक्र करते हुए दावा किया गया कि उन्होंने चार हफ्तों की टाइमलाइन तय की थी।

ब्रिटेन के ‘द गार्जियन’ की रिपोर्ट का भी हवाला

तुषार मेहता ने यह भी कहा कि दंगों के तारीख का चयन भी जानबूझकर वैश्विक मीडिया कवरेज के लिए किया गया ताकि भारत को बदनाम किया जा सके।

बचाव पक्ष का तर्क: ट्रायल में हो रही देरी

*आरोप तय नहीं हुए हैं, हिरासत में वर्षों बीत चुके हैं

*सभी आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं, ट्रायल में अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं

*इसलिए मानवाधिकारों और न्याय के सिद्धांतों के आधार पर जमानत दी जानी चाहिए

क्या है पूरा मामला?

*CAA विरोध प्रदर्शन के दौरान फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों में

-53 लोगों की मौत हुई

-200 से अधिक लोग घायल हुए

*पुलिस का दावा: यह पूर्व नियोजित साजिश थी, जिसमें कई छात्र नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और संगठनों का नाम सामने आया

कोर्ट का रुख: फैसला सुरक्षित

*सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच — जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर के समक्ष हुई

*सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है

*अब पूरे देश की निगाहें हाईकोर्ट के इस फैसले पर टिकी हैं

सवाल खड़े कर रही है ये सुनवाई

*क्या बिना आरोप तय हुए इतने वर्षों तक हिरासत में रखना न्यायसंगत है?

*क्या यह न्याय प्रक्रिया की देरी है या राष्ट्र सुरक्षा की प्राथमिकता?

*इस केस का आने वाला फैसला देश के न्यायिक इतिहास में एक मिसाल बन सकता है