उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभा रही समाजवादी पार्टी की सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव हाल ही में पार्टी बैठक में शामिल होने दिल्ली के संसद मार्ग स्थित एक मस्जिद पहुंचीं। इस बैठक में अखिलेश यादव, जियाउर्रहमान बर्क और अन्य मुस्लिम नेता भी मौजूद थे। यही बैठक विवाद का कारण बन गई।
🕌 मस्जिद में बैठक क्यों बनी विवाद की जड़:
इस बैठक को लेकर धार्मिक संगठनों और मौलानाओं ने आपत्ति जताई कि मस्जिद के अंदर इबादत के अलावा किसी भी गैर-धार्मिक कार्य की इजाजत नहीं है, और यह कि महिलाओं का मस्जिद में प्रवेश इस्लामिक परंपराओं के खिलाफ है।
विवाद तब और बढ़ा जब ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने एक टीवी चैनल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि डिंपल यादव मस्जिद में बिना सिर ढके बैठी थीं, जो इस्लामी मर्यादाओं का उल्लंघन है।
💬 मौलाना की आपत्तिजनक टिप्पणी और सोशल मीडिया पर बवाल:
मौलाना रशीदी की टिप्पणी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने डिंपल यादव को लेकर अभद्र और आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया। इस बयान की पूरे देश में निंदा हुई। कई राजनीतिक दलों ने इसे स्त्री-विरोधी और असभ्य बताया।⚖️ FIR दर्ज, कानूनी कार्रवाई शुरू:
समाजवादी पार्टी के नेता प्रवेश यादव ने इस बयान को गंभीरता से लेते हुए लखनऊ के विभूतिखंड थाने में मौलाना साजिद रशीदी के खिलाफ तहरीर दी।
इस पर मौलाना के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 79, 196, 197, 352, 353 और IT एक्ट की धारा 67 के तहत FIR दर्ज की गई। आरोप है कि उन्होंने न केवल महिला गरिमा को ठेस पहुंचाई बल्कि धार्मिक उन्माद भी फैलाने का प्रयास किया।
🕋 मस्जिद की पवित्रता को लेकर नया मोर्चा
इस विवाद को धार्मिक और राजनीतिक रूप से और हवा दी “ऑल इंडिया मुस्लिम जमात” के अध्यक्ष शहाबुद्दीन रजवी ने। उन्होंने दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर यह मांग की कि:
- मस्जिद में राजनीतिक बैठक करने के कारण, सांसद मुहिबुल्ला नदवी को मस्जिद के इमाम पद से हटाया जाए।
- मस्जिद में महिलाओं का प्रवेश नाजायज़ है, इसलिए वहां बैठक कराना मजहबी नियमों का उल्लंघन है।
- मस्जिद में बैठक का मकसद राजनीतिक लाभ उठाना है और इससे मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं।
🧕🏻 महिला की गरिमा बनाम धार्मिक परंपरा:
यह विवाद महिलाओं की सार्वजनिक भागीदारी और धार्मिक स्थलों में महिला की भूमिका को लेकर भी बहस का विषय बन गया। जहां एक ओर मौलाना का यह कहना कि “महिलाएं मस्जिद में नहीं जा सकतीं” कई प्रगतिशील मुस्लिमों को नागवार गुजरा, वहीं कुछ रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों ने इसका समर्थन भी किया।
⚖️ राजनीति और धर्म का टकराव
यह घटना भारतीय राजनीति के उस संवेदनशील मोड़ को दिखाती है जहां:
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धार्मिक आस्थाएं और राजनीतिक रणनीतियां आमने-सामने आ जाती हैं।
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एक तरफ सपा की कोशिश है मुस्लिम समुदाय को साधने की, दूसरी ओर कई मुस्लिम संगठन इसे मजहब की सियासी साजिश बता रहे हैं।