जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत हुई, जिनमें कई परिवार अपने एकमात्र कमाने वाले सदस्य को खो बैठे। इस मानवीय त्रासदी के बीच एक संवेदनशील और सशक्त संदेश देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 22 अनाथ बच्चों की जिम्मेदारी लेने की घोषणा की है। यह निर्णय न केवल एक राजनीतिक कदम है, बल्कि एक सामाजिक और नैतिक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
कांग्रेस के जम्मू-कश्मीर प्रदेश अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा ने बताया कि राहुल गांधी इन बच्चों की शिक्षा, भरण-पोषण और मानसिक देखभाल की जिम्मेदारी तब तक निभाएंगे, जब तक वे अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी नहीं कर लेते। इस प्रयास की शुरुआत बुधवार से की जाएगी, जब पहली वित्तीय सहायता इन बच्चों को दी जाएगी। यह कदम देश भर के उन राजनेताओं के लिए एक प्रेरणा बन सकता है, जो केवल संवेदनाएं जताने तक सीमित रहते हैं।
राहुल गांधी ने हाल ही में पुंछ का दौरा कर प्रभावित परिवारों से मुलाकात की और बच्चों को विश्वास दिलाया कि वे अकेले नहीं हैं। उन्होंने बच्चों से कहा, “मुझे तुम पर गर्व है। मुझे पता है कि तुम्हें अपने दोस्तों की याद आती है और तुम डर महसूस कर रहे हो, लेकिन चिंता मत करो, सब सामान्य हो जाएगा। तुम्हें पढ़ाई करनी है, खेलना है और अपने भविष्य को बेहतर बनाना है।” उनकी इस मुलाकात ने केवल बच्चों को ही नहीं, बल्कि देश को भी भावुक कर दिया।
22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया, जिसमें सीमापार 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया गया। इस अभियान के बाद सीमा पर 4 दिन तक तनाव बना रहा, जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान पुंछ जिले को झेलना पड़ा। कई नागरिक इस संघर्ष में मारे गए और अनेक घर उजड़ गए।
इस घटनाक्रम पर राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा की आलोचना की थी। उन्होंने मांग की थी कि हमले में मारे गए नागरिकों को ‘शहीद’ का दर्जा दिया जाए। इसके जवाब में भाजपा नेताओं ने उन पर राजनीति करने और पाकिस्तान के नैरेटिव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। विशेष रूप से बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि जब पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी थी, तब राहुल गांधी सरकार की आलोचना कर रहे थे।
हालांकि, इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच राहुल गांधी का यह कदम राजनीति से परे एक नैतिक पहल के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने न केवल संवेदना जताई, बल्कि ज़मीनी मदद भी सुनिश्चित की — वह भी उन बच्चों के लिए, जिनका भविष्य अधर में लटक गया था।