वा विस्तार की सिफारिश पर बवाल: निदेशक वित्त निधि नारंग को लेकर बिजली विभाग में घमासान

उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन (UPPCL) में निदेशक वित्त निधि कुमार नारंग को तीसरी बार सेवा विस्तार देने की सिफारिश को लेकर जबरदस्त विवाद खड़ा हो गया है। जबकि राज्य सरकार पहले ही 30 जुलाई को उनका कार्यकाल बढ़ाने से इनकार कर चुकी है, इसके बावजूद 31 जुलाई को पावर कॉर्पोरेशन ने नए सिरे से सेवा विस्तार की चिट्ठी भेज दी, जिससे बिजली कर्मचारियों में उबाल है।

🔥 आक्रोश की चिंगारी:

विद्युत कर्मचारी संगठनों ने इस सिफारिश को निजीकरण की साजिश करार देते हुए यूपीपीसीएल चेयरमैन डॉ. आशीष गोयल पर गंभीर आरोप लगाए हैं। संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने दावा किया कि निदेशक निधि नारंग निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए नियुक्त किए गए ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्नटन के बेहद करीबी हैं और गोपनीय दस्तावेज भी उनके साथ साझा कर चुके हैं।

🔍 शासन ने पहले ही खारिज किया था प्रस्ताव

30 जुलाई को ऊर्जा विभाग के विशेष सचिव राजकुमार ने स्पष्ट शब्दों में सेवा विस्तार प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि “कोई औचित्य नहीं बनता।” बावजूद इसके, यूपीपीसीएल ने 31 जुलाई को एक नया पत्र भेजकर छह महीने का सेवा विस्तार या नए निदेशक के कार्यग्रहण तक नारंग को बनाए रखने की मांग की।

📄 यूपीपीसीएल के पांच तर्क जो शासन को भेजे गए:

  1. निदेशक पदों की चयन प्रक्रिया जारी है, जब तक नया चयन न हो, तब तक निरंतरता बनी रहे।

  2. नारंग का अनुभव एनटीपीसी, एमबी पावर, रिलायंस इन्फ्रा जैसी कंपनियों में रहा है।

  3. निजीकरण प्रक्रिया के लिए अनुभवी निदेशक की जरूरत है।

  4. असेट वैल्यूएशन, बैलेंस शीट तैयारी और रेगुलेटर समन्वय जैसे कार्य लंबित हैं।

  5. एनर्जी टास्क फोर्स की समिति में निजीकरण की रणनीति पेश की जा चुकी है, जिसमें निदेशक वित्त की महत्वपूर्ण भूमिका है।

📌 विवाद का केंद्र: निजीकरण और वित्तीय घाटा

विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने आरोप लगाया कि निदेशक नारंग के रहते वित्तीय अनियमितताएं चरम पर पहुंच गईं। वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड 19,644 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज हुआ, जो अब तक का सबसे अधिक है। उन्होंने कहा कि यह घाटा निजीकरण की स्क्रिप्ट का हिस्सा है, जिससे निजी घरानों को बिजली वितरण सौंपा जा सके।

🧾 निजीकरण के ड्राफ्ट की आड़ में बैठकें

वर्मा के अनुसार, 1 अगस्त को नियामक आयोग में हुई गुप्त बैठक में कॉस्ट डेटा बुक के मसौदे पर चर्चा हुई, जिसमें 50% तक उपभोक्ताओं पर भार डालने की तैयारी है। यह बैठक सरकारी प्रक्रिया से बाहर और उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ मानी जा रही है।

📬 मुख्य सचिव को संघर्ष समिति का पत्र

संघर्ष समिति ने मुख्य सचिव शशि प्रकाश गोयल को पत्र भेजकर आग्रह किया है कि मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार पर “जीरो टॉलरेंस” नीति के तहत नारंग को सेवा विस्तार न दिया जाए। समिति ने यह भी आरोप लगाया कि ग्रांट थॉर्नटन द्वारा फर्जी एफिडेविट के बावजूद नारंग ने एजेंसी को क्लीन चिट दी थी।


🔴 सवाल जो शासन और जनता दोनों से जवाब मांगते हैं:

  • जब शासन ने पहले ही सेवा विस्तार ठुकरा दिया था, तो दोबारा पत्र क्यों?

  • क्या नारंग के अनुभव की आड़ में निजीकरण की फाइलों को आगे बढ़ाया जा रहा है?

  • आखिर क्यों यूपीपीसीएल में निदेशक वित्त के लिए पारदर्शी चयन प्रक्रिया को टाला जा रहा है?

“निजीकरण विरोध की आग में एक बार फिर घी डाल दिया गया है। यूपीपीसीएल में पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है।”
आवाज प्लस संपादकीय टिप्पणी


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