प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन पर देशभर से शुभकामनाओं का तांता लगा रहा। लेकिन इन सबके बीच सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं बॉलीवुड अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा ने। उन्होंने सोशल मीडिया पर पीएम मोदी के साथ अपनी तस्वीर साझा करते हुए लिखा—“Once a friend, always a friend (एक बार का दोस्त, हमेशा के लिए दोस्त)”।
उनका यह संदेश न केवल बधाई था बल्कि राजनीतिक गलियारों में इसे “संदेश से ज्यादा संकेत” के तौर पर देखा जा रहा है। खासकर तब, जब बिहार विधानसभा चुनाव करीब हैं और शत्रुघ्न सिन्हा का राजनीतिक सफर बीते कुछ सालों से उठापटक से गुजर रहा है।
मोदी और शत्रु की दोस्ती से दूरी तक
- दोनों नेताओं ने अपनी सियासी यात्रा की शुरुआत बीजेपी से की।
- अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शत्रुघ्न केंद्रीय मंत्री भी रहे।
- लेकिन 2013-14 में जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की कवायद शुरू हुई, तो शत्रुघ्न आडवाणी खेमे के साथ खड़े हो गए।
- उन्होंने खुलकर कहा था कि “मोदी को आगे बढ़ना है तो आडवाणी जी के नेतृत्व में ही बढ़ना होगा।”
- यहीं से दोनों के रिश्तों में दरार आ गई।
बीजेपी में ‘हाशिये’ पर शत्रुघ्न
- 2014 में पटना सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने, लेकिन मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली।
- धीरे-धीरे वे पार्टी में हाशिये पर चले गए।
- 2015 बिहार चुनाव में बीजेपी की हार के बाद उन्होंने सीधे तौर पर मोदी और नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया।
- 2019 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा, लेकिन चुनाव हार गए।
- इसके बाद 2020 में उन्होंने बेटे को चुनाव लड़ाया, पर जीत नहीं मिली।
- फिर उन्होंने टीएमसी जॉइन की और लोकसभा सांसद बने, लेकिन वहां भी उन्हें अपेक्षित राजनीतिक तवज्जो नहीं मिली।
अब फिर मोदी को ‘दोस्त’ कहने का समय क्यों?
- पीएम मोदी के जन्मदिन पर अचानक आई यह पोस्ट चुनावी मौसम में “सियासी संकेत” मानी जा रही है।
- सवाल उठ रहे हैं कि क्या शत्रुघ्न सिन्हा की “घर वापसी” बीजेपी में संभव है?
- बीजेपी में भी कुछ नेता मानते हैं कि “मतभेद रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं, और पुराने साथियों के लिए दरवाजे बंद नहीं होने चाहिए।”
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
- एक यूज़र ने लिखा—“लगता है ममता बानो से मन भर गया, अब पुरानी पार्टी याद आ रही है।”
- दूसरे ने टिप्पणी की—“बीजेपी से नाता तोड़कर आज तक किसी नेता का भला नहीं हुआ।”
- कई समर्थकों ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि मोदी और शत्रुघ्न फिर साथ आएं।
बड़ा सवाल: क्या होगा ‘घर वापसी’?
राजनीति में “न दोस्त स्थायी, न दुश्मन”—यह कहावत शत्रुघ्न सिन्हा और नरेंद्र मोदी के रिश्ते पर पूरी तरह फिट बैठती है। बिहार चुनाव से ठीक पहले आई यह दोस्ती वाली पोस्ट, न केवल पुराने रिश्तों को ताज़ा करती है बल्कि यह भी संकेत देती है कि राजनीति में हर दरवाज़ा खुला रहता है।
अब देखने वाली बात होगी कि शत्रुघ्न सिन्हा केवल जन्मदिन पर दोस्ती निभा रहे हैं या सच में बीजेपी में वापसी की तैयारी है।