बिहार के जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र में एनडीए और महागठबंधन (राजद) के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। यह इलाका इतिहास और जातीय समीकरणों के लिहाज से हमेशा से राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहा है।
🗳️ पिछला चुनावी इतिहास
- 1952 से अब तक जगदीशपुर में कई पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की।
- श्रीभगवान सिंह कुशवाहा ने इस सीट से तीन बार जीत दर्ज की और जदयू के साथ मिलकर दो बार मंत्री पद भी संभाला।
- 2008 के परिसीमन के बाद राजद ने इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाई।
- 2010, 2015 और 2020 में रामविशुन सिंह लोहिया (राजद) ने लगातार जीत दर्ज की।
🏛️ क्षेत्रीय समीकरण और जातीय प्रभाव
- जगदीशपुर का क्षेत्र कुशवंशी और यदुवंशी के बीच चुनावी प्रतिस्पर्धा का मैदान रहा है।
- रघुवंशी जाति के उम्मीदवार अक्सर निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।
- निर्वाचन क्षेत्र में जगदीशपुर प्रखंड और पीरो की 16 पंचायतें शामिल हैं।
🔹 विकास और वादे
पिछले कार्यकाल में विधायक रामविशुन सिंह लोहिया ने कई विकास कार्यों को पूरा किया:
- ककिला में राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज का निर्माण और संचालन।
- हरिगांव और अन्य इलाकों में नहरों, तालाबों और पावर सबस्टेशन का विकास।
- बिहिया-पीरो स्टेट हाईवे का जीर्णोद्धार।
लेकिन क्षेत्रीय आलोचक श्रीभगवान सिंह कुशवाहा का कहना है कि मौजूदा विधायक ने विकास राशि का सही उपयोग नहीं किया और कई वादे पूरे नहीं हुए:
- बाबू वीर कुंवर सिंह के किले को पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिला।
- अनुमंडलीय न्यायालय और बस पड़ाव निर्माण अधूरा रहा।
- सरकारी नलकूपों का संचालन नहीं हो पाया।
🔮 भाजपा का मिशन मगध और शाहाबाद
- एनडीए इस बार पवन सिंह को स्टार प्रचारक के तौर पर मैदान में उतार सकती है।
- पार्टी का लक्ष्य जगदीशपुर में राजद की मजबूत पकड़ को चुनौती देना है।
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले क्षेत्र में दो बार सरकारी कार्यक्रमों में सक्रिय उपस्थिति दर्ज की।
⚡ निष्कर्ष
जगदीशपुर का राजनीतिक और सामाजिक समीकरण हमेशा से जटिल रहा है।
- राजद ने पिछले तीन चुनावों में लगातार जीत दर्ज की है।
- एनडीए अब पवन सिंह और स्थानीय नेताओं की सक्रियता के सहारे सीट जीतने की रणनीति पर काम कर रही है।
- विकास, जातीय समीकरण और उम्मीदवार की लोकप्रियता इस बार निर्णायक साबित हो सकती है।
