अहमदाबाद के नोबल नगर क्षेत्र में बुधवार को एक दर्दनाक हादसा सामने आया, जिसने पूरे इलाके को सदमे में डाल दिया। 3 साल की एक मासूम बच्ची, जो अपने घर के बाहर खेल रही थी, एक नाबालिग द्वारा चलाई जा रही कार की चपेट में आ गई।
इस घटना ने न केवल एक परिवार की जिंदगी को हिला कर रख दिया, बल्कि समाज और कानून व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
घटनाक्रम:
- घटना बुधवार दोपहर अहमदाबाद के नॉबल नगर इलाके में हुई।
- बच्ची अपने घर के बाहर खेल रही थी, तभी अचानक एक कार तेज रफ़्तार में आई और उसे कुचलती हुई निकल गई।
- कार चलाने वाला किशोर नाबालिग था और ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने की उम्र से बहुत कम।
- हादसे के बाद बच्ची को तुरंत गंभीर हालत में पास के अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसका उपचार जारी है।
- डॉक्टरों के मुताबिक, बच्ची को कई जगह गंभीर चोटें आईं हैं, जिनमें सिर और पेट पर भी गहरे जख्म शामिल हैं।
परिवार का दर्द और गुस्सा:
बच्ची के परिजनों के अनुसार,
“हमारी बेटी हमेशा की तरह खेल रही थी। किसी को अंदाज़ा नहीं था कि ऐसा कुछ हो जाएगा। हादसे के बाद हमारी दुनिया पलभर में बदल गई।”
परिजनों ने नाबालिग ड्राइवर पर कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि ऐसा लापरवाह रवैया किसी भी दूसरी मासूम की जिंदगी छीन सकता है।
इलाक़े में रोष:
स्थानीय निवासियों ने इस घटना पर भारी आक्रोश व्यक्त किया है। उनका कहना है कि:
- नौजवान बिना लाइसेंस के गाड़ियां चलाते हैं, और माता-पिता भी इसकी अनदेखी करते हैं।
- यह हादसा सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि लापरवाही और कानून की अवहेलना का परिणाम है।
- उन्होंने पुलिस और प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की है, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
कानून की नज़र से:
भारत में नाबालिग द्वारा वाहन चलाना कानूनी अपराध है।
- मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति वाहन नहीं चला सकता।
- अगर नाबालिग किसी दुर्घटना में शामिल होता है, तो उसके माता-पिता या अभिभावक पर भी कानूनी कार्रवाई होती है।
यह मामला भी इसी श्रेणी में आता है, और अब देखना यह है कि पुलिस कितनी तेजी से कानून लागू करती है।
सवाल जो उठते हैं:
- क्या माता-पिता नाबालिग को वाहन सौंपने से पहले सचेत होते हैं?
- क्या समाज बिना लाइसेंस युवाओं की ड्राइविंग को नजरअंदाज़ कर रहा है?
- क्या मासूमों की जान इतनी सस्ती हो गई है?
निष्कर्ष:
इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि लापरवाही का शिकार सबसे पहले मासूम ही होते हैं।
कानून के साथ-साथ समाज को भी जिम्मेदारी लेनी होगी।
बच्चियों को घर के बाहर खेलते समय भी पूरी सुरक्षा मिले, यह व्यवस्था बनाना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।
