राजधानी में लावारिस कुत्तों को पकड़ने के एमसीडी अभियान की शुरुआत होते ही विवाद और विरोध ने जोर पकड़ लिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सोमवार से शुरू हुई इस कार्रवाई के खिलाफ स्थानीय लोग और पशु-प्रेमी सड़कों पर उतर आए। कई इलाकों में माहौल इतना तनावपूर्ण हो गया कि एमसीडी टीमों को न केवल खाली हाथ लौटना पड़ा, बल्कि उनके वाहनों में तोड़फोड़ तक की गई।
एमसीडी का अभियान और पहला दिन
एमसीडी ने अपने मुख्यालय सिविक सेंटर से अभियान की शुरुआत करते हुए करीब दर्जनभर कुत्तों को पकड़ा। लेकिन जैसे ही टीमें अलग-अलग आवासीय इलाकों में पहुंचीं, वहां विरोध शुरू हो गया।
- लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए।
- कर्मचारियों को कुत्ते पकड़ने से रोक दिया गया।
- पहले से पकड़े गए कई कुत्ते भी छुड़वा लिए गए।
विरोध करने वालों का पक्ष
स्थानीय निवासियों और पशु-प्रेमियों का कहना है कि –
- इस तरह अचानक कुत्तों को उठाना अमानवीय है।
- अब तक की नीति के अनुसार, कुत्तों की नसबंदी कर उन्हें उनके इलाके में वापस छोड़ा जाता था।
- लेकिन इस बार आदेश के मुताबिक कुत्तों को कैद में रखा जा रहा है, जो पशु अधिकारों का उल्लंघन है।
कई पशु-प्रेमियों का तर्क है कि कुत्तों को समाज का हिस्सा मानकर उनके प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिए, न कि उन्हें जबरन पकड़कर पिंजरे में डाल देना चाहिए।
एमसीडी का बचाव
एमसीडी अधिकारियों ने साफ किया है कि वे सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहे हैं।
- अदालत ने निर्देश दिया है कि कुत्तों को नसबंदी के बाद उनके इलाके में वापस छोड़ने के बजाय निगम के नियंत्रण वाले केंद्रों में ही रखा जाए।
- अभी तक 800 से अधिक कुत्ते पकड़े जा चुके हैं और उन्हें एमसीडी केंद्रों में रखा गया है।
विरोध की तीखी तस्वीर
- कई जोनों में एमसीडी एक भी कुत्ता नहीं पकड़ पाई।
- वाहन में तोड़फोड़ हुई और कर्मचारियों को पीछे हटना पड़ा।
- विरोध इतना व्यापक रहा कि अभियान कई जगहों पर पूरी तरह असफल साबित हुआ।
बड़ा सवाल
अब राजधानी में यह सवाल उठ रहा है कि –
- क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करना जमीनी स्तर पर संभव है?
- क्या इस तरह का अभियान दिल्लीवासियों और पशु-प्रेमियों के बीच तनाव और टकराव को और नहीं बढ़ाएगा?
- और क्या एमसीडी इस मामले में कोई मध्य मार्ग निकाल पाएगी?
