51 करोड़ से 4 हजार का जुर्माना: हरदा के अवैध खनन मामले में बवाल, IAS नागार्जुन गौड़ा ने दी सफाई — कहा ‘निर्णय साक्ष्यों पर आधारित’

मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले में अवैध खनन से जुड़ा एक मामला अब राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में सुर्खियों में है।
एक सड़क निर्माण कंपनी पर 51.67 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था, लेकिन यह जुर्माना रहस्यमय तरीके से घटकर सिर्फ ₹4,032 रह गया।

इस चौंकाने वाले अंतर ने सवाल खड़े कर दिए हैं —
क्या यह “न्यायिक विवेक” का मामला है या “प्रशासनिक मिलीभगत” का उदाहरण?

🏗️ मामले की शुरुआत: कब और कैसे लगा था 51 करोड़ का जुर्माना?

साल 2023 में हरदा जिले के तत्कालीन अपर कलेक्टर प्रवीण फूलपगारे ने सड़क निर्माण कंपनी पाथ इंडिया के खिलाफ कार्रवाई की थी।
आरोप था कि कंपनी ने बिना वैध अनुमति के 3.11 लाख घन मीटर मुरम मिट्टी की खुदाई की थी — यानी अवैध खनन।

इसके बाद कंपनी पर ₹25.83 करोड़ का जुर्माना और इतनी ही राशि पर्यावरण क्षति शुल्क के तौर पर लगाई गई।
कुल मिलाकर कंपनी को ₹51.67 करोड़ का नोटिस जारी हुआ था।

हालांकि कुछ ही समय बाद फूलपगारे का तबादला हो गया और उनकी जगह IAS डॉ. बी. नागार्जुन बी गौड़ा को हरदा का नया अपर कलेक्टर बनाया गया।

💰 कैसे 51 करोड़ का जुर्माना घटकर ₹4,032 हुआ?

नए अपर कलेक्टर डॉ. नागार्जुन गौड़ा ने इस प्रकरण की पुनःसुनवाई की।
कंपनी की ओर से बताया गया कि उसने खनन अनुमति प्राप्त खसरे (land parcel) में ही किया था, केवल कुछ सीमाओं के भीतर “गलती से” खुदाई हुई।

जांच में कंपनी ने 2,688 घन मीटर अवैध खुदाई स्वीकार की।
इसके आधार पर गौड़ा ने आदेश पारित किया कि:

  • अवैध उत्खनन के लिए ₹2,016
  • पर्यावरण क्षति के लिए ₹2,016

कुल मिलाकर ₹4,032 का जुर्माना लगाया गया।

📜 RTI कार्यकर्ता का दावा — ‘यह फैसला संदिग्ध, हुआ लेन-देन’

इस पूरे मामले को RTI कार्यकर्ता आनंद जाट ने उजागर किया।
उन्होंने सूचना अधिकार के तहत दस्तावेज प्राप्त किए और दावा किया कि:

“यह आदेश भ्रष्टाचार की बू देता है। करोड़ों के जुर्माने को हजारों में बदलने के पीछे रुपयों का लेन-देन हुआ है।”

आनंद जाट ने इस मामले को लेकर ED जांच की मांग की है और कहा कि यह निर्णय
सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वाला प्रशासनिक अपराध” है।

🗣️ IAS नागार्जुन गौड़ा का जवाब — ‘निर्णय पूरी तरह दस्तावेज़ों पर आधारित’

विवाद बढ़ने के बाद डॉ. बी. नागार्जुन बी गौड़ा ने आजतक से बातचीत में आरोपों से इनकार किया।
उन्होंने कहा —

“मैंने बतौर न्यायिक अधिकारी दस्तावेज़ी साक्ष्यों और अधिवक्ता के तर्कों के आधार पर फैसला सुनाया।
किसी प्रकार का दबाव या सौदेबाजी नहीं हुई। यदि किसी को आपत्ति है, तो वह अपील कर सकता है।”

गौड़ा ने यह भी जोड़ा कि मामला पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया के तहत निपटाया गया है।

🏛️ कलेक्टर सिद्धार्थ जैन का बयान — ‘अपील करें, आदेश न्यायिक है’

हरदा के मौजूदा कलेक्टर सिद्धार्थ जैन ने स्पष्ट किया कि यह आदेश अपर कलेक्टर ने मजिस्ट्रियल शक्ति के तहत दिया था।

“यह न्यायिक आदेश है, और यदि किसी को असहमति है तो वह अपील का रास्ता चुन सकता है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद ही निर्णय दिया गया।”

⚖️ NGT और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला

इस विवाद ने जब स्थानीय स्तर पर हलचल मचाई,
तो ग्रामीणों ने NGT (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) का दरवाजा खटखटाया।

NGT ने जांच में पाया कि पर्यावरण को गंभीर क्षति हुई है,
और आदेश दिया कि पाथ इंडिया कंपनी ₹3.5 करोड़ का मुआवजा अदा करे।

साथ ही, ED (Enforcement Directorate) को निर्देश दिया गया कि वह

“अधिकारियों और कंपनी के बीच संभावित पैसों के लेन-देन की जांच करे।”

हालांकि, कंपनी ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है,
जहां मामला वर्तमान में लंबित है।

📂 तकनीकी गड़बड़ी — गलत मद में दर्ज हुआ मामला

जांच में एक और दिलचस्प बात सामने आई —
यह प्रकरण शुरू में “विविध मद (B 121)” में दर्ज किया गया था,
जबकि नियमानुसार इसे “खनिज मद (A 67)” में दर्ज किया जाना चाहिए था।

इस गलती से भी अधिकारियों पर संदेह गहराया कि क्या जानबूझकर प्रक्रिया को
“कम सख्त” श्रेणी में रखा गया ताकि जुर्माना घटाया जा सके।

🔍 अब जांच पर सबकी नजरें

इस पूरे प्रकरण ने प्रशासनिक पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा किया है —
क्या IAS अधिकारियों के विवेकाधिकार का इस्तेमाल सही तरीके से हुआ,
या यह “प्रशासनिक दुरुपयोग” का मामला है?

वर्तमान में मामला सुप्रीम कोर्ट और ED की जांच के अधीन है,
और आने वाले दिनों में यह तय होगा कि

“51 करोड़ से 4 हजार का यह फर्क कानूनी था या मनमानी?”