रूस और भारत के बीच रक्षा क्षेत्र में साझेदारी एक बार फिर बेहद अहम मोड़ पर पहुंच गई है। पुतिन की 4–5 दिसंबर को प्रस्तावित भारत यात्रा से पहले रूसी संसद के निचले सदन, स्टेट ड्यूमा, ने RELOS सैन्य समझौते (Reciprocal Exchange of Logistic Support) को औपचारिक मंजूरी दे दी है। यह मंजूरी न सिर्फ दोनों देशों के बीच बढ़ते सामरिक विश्वास को दर्शाती है, बल्कि 21वीं सदी की बदलती भू-राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका की पुष्टि भी करती है।
स्पीकर ने भारत की तारीफ क्यों की?
स्टेट ड्यूमा के स्पीकर व्याचेस्लाव वोलोदिन ने इस समझौते पर चर्चा के दौरान भारत को “रणनीतिक, बड़ा और विश्वसनीय साझेदार” बताया। उनका यह बयान संकेत देता है कि मॉस्को, बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच नई दिल्ली को बेहद महत्व देता है।
वोलोदिन ने कहा कि इस समझौते की मंजूरी “दोनों देशों के रिश्ते मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम” है।
RELOS क्या है? इसका महत्व समझिए
RELOS एक सैन्य-लॉजिस्टिक सहयोग समझौता है जो दोनों देशों की सेनाओं को कई तरह की सुविधाएं प्रदान करेगा:
- भारत और रूस एक-दूसरे के हवाई क्षेत्र, सैन्य ठिकानों और बंदरगाहों का उपयोग कर सकेंगे।
- दोनों देश एक-दूसरे को ईंधन, गोला-बारूद, स्पेयर पार्ट्स, तकनीकी सहायता और मरम्मत सुविधाएं उपलब्ध करा सकेंगे।
- इसका उपयोग होगा—
✔ संयुक्त सैन्य अभ्यास
✔ मानवीय सहायता
✔ प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य
✔ प्रशिक्षण और सामरिक संचालन
यह वही मॉडल है जिसे भारत अमेरिका, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ भी लागू कर चुका है। रूस के साथ यह समझौता विशेष है क्योंकि दोनों देश दशकों से रक्षा-भागीदारी के महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं।
पुतिन की यात्रा से इसका क्या संबंध?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जल्द ही भारत की राजकीय यात्रा पर आ रहे हैं। ऐसे में इस समझौते की मंजूरी एक रणनीतिक संदेश भी देती है—
रूस दिखाना चाहता है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद वह भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता देता है।
अमेरिकी दबाव के बीच रूस का संकेत
रूस ने यह मंजूरी ऐसे समय दी है जब
- भारत पर अमेरिकी प्रशासन लगातार रूसी तेल खरीद को लेकर दबाव बना रहा है
- अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल आयात के चलते 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया हुआ है
इसके बावजूद भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता की नीति को जारी रखा है। यही कारण है कि मॉस्को न्यू दिल्ली के इस “स्वतंत्र रुख” की प्रशंसा करता है।
भारत–रूस साझेदारी की बड़ी तस्वीर
भारत और रूस दशकों से रक्षा, अंतरिक्ष, ऊर्जा, परमाणु तकनीक और आर्थिक सहयोग के बड़े साझेदार हैं।
RELOS समझौता इस रिश्ते को और भी व्यवहारिक और मजबूत बनाता है।
- भारतीय नौसेना के लिए यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रूस के आर्कटिक और फार ईस्ट क्षेत्रों तक आसानी से पहुंच संभव हो पाएगी।
- रूस के जहाज़ भी भारतीय महासागरीय क्षेत्र में रिफ्यूलिंग और तकनीकी सपोर्ट ले सकेंगे।
इससे दोनों देशों की सैन्य क्षमताओं और रणनीतिक सहयोग में नई ऊर्जा आएगी।
निष्कर्ष
रूस द्वारा RELOS समझौते को हरी झंडी देना इस बात का संकेत है कि
➡ भारत और रूस आज भी एक-दूसरे के लिए अत्यंत विश्वसनीय और रणनीतिक साझेदार हैं।
➡ पुतिन की आगामी भारत यात्रा के दौरान रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में बड़े फैसलों की संभावना मजबूत हो गई है।
➡ वैश्विक दबावों के बावजूद दोनों देश अपने संबंधों को स्वतंत्र और मजबूत बनाए रखना चाहते हैं।
