लखनऊ में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक अहम फैसले में अदालत ने अपर आयुक्त चकबंदी कार्यालय में तैनात चपरासी राजकुमार सिंह को रिश्वत लेने के मामले में दोषी करार देते हुए चार वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही अदालत ने दोषी पर 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यह फैसला पीसी एक्ट के विशेष न्यायाधीश श्याम मोहन जायसवाल की अदालत ने सुनाया।
क्या है पूरा मामला
यह मामला वर्ष 2018 का है। बाराबंकी निवासी शिकायतकर्ता राजेश कुमार सिंह ने 11 जून 2018 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना पत्र देकर शिकायत की थी। शिकायतकर्ता के गांव में चकबंदी योजना चल रही थी, लेकिन कुछ भूमाफिया चकबंदी प्रक्रिया को जानबूझकर बाधित कर रहे थे।
जब शिकायतकर्ता ने स्थानीय चकबंदी अधिकारियों से संपर्क किया, तो उसे सलाह दी गई कि वह अपनी शिकायत लेकर चकबंदी आयुक्त, लखनऊ के कार्यालय जाए, तभी उसका काम आगे बढ़ेगा।
इंदिरा भवन में हुई मुलाकात
शिकायतकर्ता जब इंदिरा भवन स्थित चकबंदी आयुक्त कार्यालय पहुंचा, तो उसकी मुलाकात कार्यालय के बाहर बैठे चपरासी राजकुमार सिंह से हुई। आरोपी चपरासी ने शिकायतकर्ता की मुलाकात अपर आयुक्त सुरेश यादव और ज्वाइंट डायरेक्टर रविंद्र दुबे से करवाई।
आरोप है कि इन अधिकारियों ने चपरासी से कहा कि वह शिकायतकर्ता को “काम करने का तरीका” समझा दे।
10 हजार रुपये की रिश्वत की मांग
इसके बाद चपरासी राजकुमार सिंह ने शिकायतकर्ता से स्पष्ट रूप से कहा कि अगर काम कराना है तो 10 हजार रुपये देने होंगे, वरना कोई कार्रवाई नहीं होगी। रिश्वत की इस मांग से परेशान होकर शिकायतकर्ता ने सीधे भ्रष्टाचार निवारण विभाग से संपर्क कर पूरे मामले की शिकायत दर्ज करा दी।
ट्रैप टीम ने रंगे हाथों पकड़ा
शिकायत के बाद एंटी करप्शन विभाग ने योजना बनाकर 13 जून 2018 को ट्रैप टीम गठित की। टीम ने रिट्ज होटल के सामने चपरासी राजकुमार सिंह को 10 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए स्वतंत्र गवाहों के सामने रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने न केवल चपरासी को दोषी पाया, बल्कि विवेचना (जांच) को लेकर भी गंभीर नाराजगी जताई।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि विवेचक ने मामले में संलिप्त बताए गए चकबंदी अधिकारियों के खिलाफ उचित जांच नहीं की, जिससे उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
वरिष्ठ अधिकारियों तक भेजा गया आदेश
अदालत ने इस गंभीर लापरवाही को देखते हुए आदेश की एक प्रति
- पुलिस महानिदेशक, एंटी करप्शन
- उत्तर प्रदेश शासन
को भी भेजने का निर्देश दिया है, ताकि पूरे मामले की निष्पक्ष समीक्षा हो सके।
