भारत का ट्रंप को करारा जवाब: तेल की राजनीति में ‘सटीक वार’

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा, और यह भरोसा उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया है।
लेकिन भारत ने इस पर जिस तेजी और सटीकता से जवाब दिया, उसने न सिर्फ ट्रंप के दावे को खारिज किया बल्कि यह भी साफ कर दिया कि भारत की ऊर्जा नीति किसी बाहरी दबाव से नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों से तय होती है।

🔍 विदेश मंत्रालय का स्पष्ट रुख

विदेश मंत्रालय ने दो टूक कहा —

“भारत की तेल नीति भारतीय उपभोक्ताओं और ऊर्जा सुरक्षा के हितों के आधार पर तय होती है। हमारा लक्ष्य है — स्थिर कीमतें और सुनिश्चित आपूर्ति।”

यह बयान ऐसे समय में आया जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है। ट्रंप का बयान कई विशेषज्ञों की नजर में कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश है।

⚙️ तेल और ताकत का समीकरण

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है —
कुल जरूरत का लगभग 85% तेल बाहर से आता है।
इनमें से 35–40% रूस से आता है —
जबकि यूक्रेन युद्ध से पहले यह आंकड़ा सिर्फ 1–2% था।
यानी, रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत ने न सिर्फ अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा बल्कि वैश्विक तेल बाजार को भी संतुलित किया।

💬 ट्रंप को क्यों चुभा भारत का रुख

ट्रंप की नाराज़गी दरअसल भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से है।
जब पूरी दुनिया रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रही थी, भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी।
विडंबना यह है कि यही नीति अमेरिका की बाइडन सरकार ने भी शुरू में समर्थन दी थी ताकि बाजार में कीमतें न बढ़ें।

🌍 भारत का निर्णय — दुनिया के लिए अहम

रूस वैश्विक तेल उत्पादन का 11% हिस्सा रखता है।
अगर भारत अचानक तेल खरीदना बंद करता है, तो न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया की ऑयल सप्लाई चेन हिल जाएगी।
और सबसे बड़ा फायदा उठाएगा — चीन, जो पहले से ही रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है।

🧭 Awaz Plus विश्लेषण

यह स्पष्ट है कि भारत ने अपने जवाब से दो संदेश दिए
1️⃣ भारत अपनी नीतियों में स्वायत्त है।
2️⃣ अमेरिका की बदलती राजनीतिक हवा से भारत की ऊर्जा रणनीति प्रभावित नहीं होगी।

इसलिए कहा जा सकता है —
👉 ट्रंप का बयान राजनीतिक था, भारत की प्रतिक्रिया रणनीतिक।

🟢 निष्कर्ष:

भारत ने न केवल समय पर जवाब दिया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि आज की दुनिया में “ऊर्जा नीति” ही असली कूटनीति है — और उसमें भारत अब सिर्फ खिलाड़ी नहीं, निर्णायक ताकत बन चुका है।

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