मनरेगा की जगह ‘जी राम जी’ मिशन! 125 दिन रोजगार, लेकिन खर्च में राज्यों की बढ़ी जिम्मेदारी

केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़े बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाया है। लोकसभा में मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने VB–जी राम जी बिल, 2025 पेश किया। इस बिल के पेश होते ही सदन में जोरदार हंगामा देखने को मिला। सरकार का कहना है कि यह विधेयक मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) की जगह लेगा और ग्रामीण रोजगार व्यवस्था को नए सिरे से परिभाषित करेगा।

अगर यह बिल कानून बनता है, तो मनरेगा का नाम बदलकर
“विकसित भारत – गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)”,
यानी ‘जी राम जी’ हो जाएगा।

सरकार का क्या है दावा

सरकार के मुताबिक, यह नया कानून ‘विकसित भारत 2047’ के विजन के अनुरूप है। इसका उद्देश्य केवल मजदूरी देना नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आजीविका, कौशल विकास और उत्पादक रोजगार को बढ़ावा देना है।

रोजगार के दिन बढ़े, लेकिन शर्तों के साथ

नए बिल में ग्रामीण परिवारों को मिलने वाले रोजगार के दिनों को

  • 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव है।

सरकार इसे ग्रामीण गरीबों के लिए राहत के रूप में पेश कर रही है, लेकिन इसके साथ कुछ अहम बदलाव भी किए गए हैं, जिन पर विपक्ष सवाल उठा रहा है।

खर्च की जिम्मेदारी अब राज्यों पर भी

अब तक मनरेगा का पूरा वित्तीय बोझ केंद्र सरकार उठाती थी।
लेकिन जी राम जी बिल में बड़ा बदलाव करते हुए प्रस्ताव रखा गया है कि—

  • राज्यों को योजना की लागत का 10 से 40 प्रतिशत तक खर्च उठाना होगा।

यही प्रावधान विवाद की सबसे बड़ी वजह बन गया है। विपक्ष का कहना है कि इससे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य योजना को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाएंगे।

खेती के मौसम में काम पर भी नई व्यवस्था

प्रस्तावित बिल में यह भी कहा गया है कि—

  • बुवाई और कटाई के मौसम के आसपास लगभग 60 दिनों तक

  • इस योजना के तहत रोजगार को सीमित या पुनर्गठित किया जा सकता है।

सरकार का तर्क है कि इससे कृषि कार्य प्रभावित नहीं होंगे और मजदूरों की उपलब्धता बनी रहेगी। वहीं विपक्ष इसे ग्रामीण मजदूरों के अधिकारों पर चोट बता रहा है।

विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध

विपक्षी दलों का कहना है कि—

  • मनरेगा एक अधिकार आधारित योजना थी, जिसे कमजोर किया जा रहा है

  • खर्च राज्यों पर डालकर केंद्र जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है

  • नाम बदलने और संरचना में बदलाव से गरीबों को नुकसान हो सकता है

इसी मुद्दे को लेकर लोकसभा में बिल पेश होते ही नारेबाजी और हंगामा देखने को मिला।

आगे क्या

फिलहाल यह बिल संसद में पेश किया गया है। इसे संसदीय समिति को भेजे जाने या विस्तृत चर्चा के बाद पारित किए जाने की संभावना है। अगर यह कानून बनता है, तो ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में यह अब तक का सबसे बड़ा बदलाव माना जाएगा।

केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़े बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाया है। लोकसभा में मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने VB–जी राम जी बिल, 2025 पेश किया। इस बिल के पेश होते ही सदन में जोरदार हंगामा देखने को मिला। सरकार का कहना है कि यह विधेयक मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) की जगह लेगा और ग्रामीण रोजगार व्यवस्था को नए सिरे से परिभाषित करेगा।

अगर यह बिल कानून बनता है, तो मनरेगा का नाम बदलकर
“विकसित भारत – गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)”,
यानी ‘जी राम जी’ हो जाएगा।

सरकार का क्या है दावा

सरकार के मुताबिक, यह नया कानून ‘विकसित भारत 2047’ के विजन के अनुरूप है। इसका उद्देश्य केवल मजदूरी देना नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आजीविका, कौशल विकास और उत्पादक रोजगार को बढ़ावा देना है।

रोजगार के दिन बढ़े, लेकिन शर्तों के साथ

नए बिल में ग्रामीण परिवारों को मिलने वाले रोजगार के दिनों को

  • 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव है।

सरकार इसे ग्रामीण गरीबों के लिए राहत के रूप में पेश कर रही है, लेकिन इसके साथ कुछ अहम बदलाव भी किए गए हैं, जिन पर विपक्ष सवाल उठा रहा है।

खर्च की जिम्मेदारी अब राज्यों पर भी

अब तक मनरेगा का पूरा वित्तीय बोझ केंद्र सरकार उठाती थी।
लेकिन जी राम जी बिल में बड़ा बदलाव करते हुए प्रस्ताव रखा गया है कि—

  • राज्यों को योजना की लागत का 10 से 40 प्रतिशत तक खर्च उठाना होगा।

यही प्रावधान विवाद की सबसे बड़ी वजह बन गया है। विपक्ष का कहना है कि इससे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य योजना को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाएंगे।

खेती के मौसम में काम पर भी नई व्यवस्था

प्रस्तावित बिल में यह भी कहा गया है कि—

  • बुवाई और कटाई के मौसम के आसपास लगभग 60 दिनों तक

  • इस योजना के तहत रोजगार को सीमित या पुनर्गठित किया जा सकता है।

सरकार का तर्क है कि इससे कृषि कार्य प्रभावित नहीं होंगे और मजदूरों की उपलब्धता बनी रहेगी। वहीं विपक्ष इसे ग्रामीण मजदूरों के अधिकारों पर चोट बता रहा है।

विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध

विपक्षी दलों का कहना है कि—

  • मनरेगा एक अधिकार आधारित योजना थी, जिसे कमजोर किया जा रहा है

  • खर्च राज्यों पर डालकर केंद्र जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है

  • नाम बदलने और संरचना में बदलाव से गरीबों को नुकसान हो सकता है

इसी मुद्दे को लेकर लोकसभा में बिल पेश होते ही नारेबाजी और हंगामा देखने को मिला।

आगे क्या

फिलहाल यह बिल संसद में पेश किया गया है। इसे संसदीय समिति को भेजे जाने या विस्तृत चर्चा के बाद पारित किए जाने की संभावना है। अगर यह कानून बनता है, तो ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में यह अब तक का सबसे बड़ा बदलाव माना जाएगा।

केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़े बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाया है। लोकसभा में मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने VB–जी राम जी बिल, 2025 पेश किया। इस बिल के पेश होते ही सदन में जोरदार हंगामा देखने को मिला। सरकार का कहना है कि यह विधेयक मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) की जगह लेगा और ग्रामीण रोजगार व्यवस्था को नए सिरे से परिभाषित करेगा।

अगर यह बिल कानून बनता है, तो मनरेगा का नाम बदलकर
“विकसित भारत – गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)”,
यानी ‘जी राम जी’ हो जाएगा।

सरकार का क्या है दावा

सरकार के मुताबिक, यह नया कानून ‘विकसित भारत 2047’ के विजन के अनुरूप है। इसका उद्देश्य केवल मजदूरी देना नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आजीविका, कौशल विकास और उत्पादक रोजगार को बढ़ावा देना है।

रोजगार के दिन बढ़े, लेकिन शर्तों के साथ

नए बिल में ग्रामीण परिवारों को मिलने वाले रोजगार के दिनों को

  • 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव है।

सरकार इसे ग्रामीण गरीबों के लिए राहत के रूप में पेश कर रही है, लेकिन इसके साथ कुछ अहम बदलाव भी किए गए हैं, जिन पर विपक्ष सवाल उठा रहा है।

खर्च की जिम्मेदारी अब राज्यों पर भी

अब तक मनरेगा का पूरा वित्तीय बोझ केंद्र सरकार उठाती थी।
लेकिन जी राम जी बिल में बड़ा बदलाव करते हुए प्रस्ताव रखा गया है कि—

  • राज्यों को योजना की लागत का 10 से 40 प्रतिशत तक खर्च उठाना होगा।

यही प्रावधान विवाद की सबसे बड़ी वजह बन गया है। विपक्ष का कहना है कि इससे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य योजना को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाएंगे।

खेती के मौसम में काम पर भी नई व्यवस्था

प्रस्तावित बिल में यह भी कहा गया है कि—

  • बुवाई और कटाई के मौसम के आसपास लगभग 60 दिनों तक

  • इस योजना के तहत रोजगार को सीमित या पुनर्गठित किया जा सकता है।

सरकार का तर्क है कि इससे कृषि कार्य प्रभावित नहीं होंगे और मजदूरों की उपलब्धता बनी रहेगी। वहीं विपक्ष इसे ग्रामीण मजदूरों के अधिकारों पर चोट बता रहा है।

विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध

विपक्षी दलों का कहना है कि—

  • मनरेगा एक अधिकार आधारित योजना थी, जिसे कमजोर किया जा रहा है

  • खर्च राज्यों पर डालकर केंद्र जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है

  • नाम बदलने और संरचना में बदलाव से गरीबों को नुकसान हो सकता है

इसी मुद्दे को लेकर लोकसभा में बिल पेश होते ही नारेबाजी और हंगामा देखने को मिला।

आगे क्या

फिलहाल यह बिल संसद में पेश किया गया है। इसे संसदीय समिति को भेजे जाने या विस्तृत चर्चा के बाद पारित किए जाने की संभावना है। अगर यह कानून बनता है, तो ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में यह अब तक का सबसे बड़ा बदलाव माना जाएगा।

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